नयी दिल्ली, 27 नवंबर आवासीय भवनों में पकाये जाने वाले भोजन और इस दौरान निकलने वाली उष्मा, बिजली उत्पादन और उद्योगों से होने वाला उत्सर्जन भारत के पीएम2.5 प्रदूषण में 60 प्रतिशत तक का योगदान करता है। इसमें से लगभग 80 प्रतिशत जीवाश्म ईंधन के दहन से आता है। एक नए अध्ययन में यह जानकारी सामने आयी।
एमडीपीआई की पत्रिका “एयर” में प्रकाशित समीक्षा अध्ययन में क्षेत्रीय जलवायु और प्रदूषण स्रोतों के आधार पर भारत को 15 ‘एयरशेड’ में विभाजित करने का सुझाव दिया गया है।
एयरशेड एक भौगोलिक क्षेत्र है जहां वायु की गुणवत्ता हवा के पैटर्न और प्रदूषण स्रोतों जैसे सामान्य कारकों से प्रभावित होती है। चूंकि प्रदूषण पूरे क्षेत्र में फैल सकता है, इसलिए एयरशेड दृष्टिकोण राज्यों के बीच समन्वित कार्रवाई को बढ़ावा देता है।
अध्ययन के मुख्य लेखक और ‘अर्बनएमीशन डॉट इंफो’ के संस्थापक शरत गुट्टीकुंडा ने कहा, “घरों में पकाये जाने वाले भोजन और उससे उत्पन्न होने वाली उष्मा, बिजली उत्पादन और अन्य सभी उद्योग मिलकर सभी एयरशेड में पीएम 2.5 प्रदूषण के 40-60 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार हैं, और लगभग 80 प्रतिशत प्रदूषण का स्रोत जीवाश्म ईंधन है।”
अध्ययन में कहा गया है कि फसल कटाई के बाद अवशेषों को जलाने सहित बायोमास जलाने से वार्षिक पीएम 2.5 के स्तर में 3 प्रतिशत से भी कम का योगदान होता है, जबकि परिवहन से सभी एयरशेड में 5-10 प्रतिशत का योगदान होता है।
पीएम 2.5 सूक्ष्म कण होते हैं जिनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है, जो लगभग मानव बाल की चौड़ाई के बराबर होता है। ये इतने छोटे होते हैं कि ये फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश कर सकते हैं और यहां तक कि रक्तप्रवाह में भी प्रवेश कर सकते हैं, जिससे स्वास्थ्य को गंभीर खतरा हो सकता है।
ईंधन की खपत, ऊर्जा मांग और उत्सर्जन पर राज्य-स्तरीय आंकड़ों के साथ-साथ 1998 से 2020 तक पीएम 2.5 प्रवृत्तियों के विश्लेषण से पता चला है कि 15 में से 11 एयरशेड भारत के वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण थे और समन्वित हस्तक्षेप की आवश्यकता थी।
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