यूरोजोन में ऋण संकट पैदा करेगी फ्रांस की राजनीति?
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

फ्रांस को एक नई सरकार को मिल गई है लेकिन राजनीतिक संकट अब भी बना हुआ है. इससे यूरोजोन में ऋण का संकट एक बार फिर गहराता गया है क्योंकि यूरोपियन यूनियन की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का कर्ज अब नियंत्रण से बाहर हो रहा है.फ्रांस में एक महीने से भी कम समय में प्रधानमंत्री सेबास्टियां लकोर्नू की पिछली सरकार गिर गई थी. उन्होंने 6 अक्टूबर को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. हालांकि राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने उन्हें ही फिर से प्रधानमंत्री नियुक्त किया है. फिलहाल के लिए फ्रांस के पास एक सरकार है लेकिन राजनीतिक संकट अब भी बना हुआ है. जब फ्रांस में सरकार गिरी थी, तो उसके असर के चलते यूरोप के ज्यादातर देशों में चलने वाली करेंसी यूरो में अन्य मुद्राओं के मुकाबले गिरावट आई और फ्रांस के लिए ऋण की लागत तेजी से बढ़ी.

इस अचानक राजनीतिक उठापटक के बाद पेरिस के शेयर बाजार में भी गिरावट देखी गई थी क्योंकि लोगों को ये चिंता थी कि राजनीतिक पार्टियां इस आर्थिक संकट का सामना कैसे करेंगी. हालांकि अब फिर से फ्रांस में सरकार मौजूद है और तुरंत माक्रों पर चुनाव करवाने का दबाव नहीं है.

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लेकिन अब भी फ्रांस के नेता इस बात पर एकमत नहीं हैं कि देश को भारी कर्ज से कैसे उबारा जाए. सहमति ना होने का असर ये हुआ कि फ्रांस के प्रमुख ओएटीएस सरकारी बॉन्ड्स पर मिलने वाला ब्याज यूरोजोन के अन्य देशों की तुलना में काफी अधिक हो गया था.

यूरोप की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को लेकर निवेशकों की चिंता भी बढ़ गई है. निवेशकों का गिरता भरोसा इस बात का संकेत देता है कि 1999 में यूरो मुद्रा की शुरुआत के बाद से पहली बार ओएटीएस बॉन्ड्स अब इटली के बीटीपी बॉन्ड्स की तुलना में थोड़ा अधिक अंतर तक पहुंच गए थे.

लगातार चल रही राजनीतिक उथल पुथल से परेशान होकर निवेशकों ने फ्रांस के शेयरों से दूरी बना ली है. देश का प्रमुख शेयर सूचकांक, सीएसी 40 पिछले साल की शुरुआत से यूरोप के बाकी हिस्सों की तुलना में लगभग 14 फीसदी पिछड़ गया है.

फ्रांस: यूरोप में कर्ज का बादशाह

कर्ज के आंकड़े के मुताबिक यूरोपीय संघ में फ्रांस सबसे बड़ा कर्जदार देश है. इसका सॉवरिन डेट (कर्ज) बढ़कर करीब 3.35 ट्रिलियन यूरो (लगभग 3.9 ट्रिलियन डॉलर) हो गया है जो उसकी जीडीपी का लगभग 113 फीसदी है, और यह आंकड़ा 2030 तक बढ़कर जीडीपी के 125 फीसदी तक पहुंचने के आसार हैं.

फ्रांस में जीडीपी के अनुपात में कर्ज का आंकड़ा इतना अधिक है कि यूरोपीय संघ में सिर्फ ग्रीस और इटली ही इससे आगे हैं. इस साल 5.4 फीसदी से 5.8 फीसदी के बजट घाटे के साथ यूरोपीय संघ के 27 देशों में फ्रांस सबसे अधिक बजट असंतुलन वाला देश भी बन गया है. यूरोपीय संघ ने घाटे के लिए जिस 3 फीसदी का लक्ष्य तय किया है तो बड़े पैमाने पर बचत करने के अलावा कोई चारा नहीं है.

हालांकि फ्रांस में इस समय खर्च में कटौती करना राजनीतिक रूप से संभव नहीं है. इसलिए वित्तीय बाजारों ने फ्रांसीसी बॉन्ड्स पर रिस्क प्रीमियम बढ़ा दिया है. जर्मन बॉन्ड्स पर जहां करीब 2.7 प्रतिशत ब्याज लगता है, तो वहीं फ्रांस सरकार को अपने कर्ज पर लगभग 3.5 प्रतिशत का ब्याज अदा करना पड़ता है. ऐसे में सवाल ये है कि अगर यूरो डगमगा जाए तो क्या यूरो की स्थिरता पर कोई असर पड़ेगा?

जर्मनी के मानहाइम में जेडईडब्ल्यू लाइबनित्स सेंटर फॉर यूरोपियन इकोनॉमिक रिसर्च के अर्थशास्त्री फ्रीडरिष हाइनेमान कहते हैं, "हां, हमें परेशान होना चाहिए. इस पड़ाव पर यूरोजोन में स्थिरता नहीं है." हालांकि, उन्हें हाल के महीनों में किसी अचानक से आने वाले कर्ज संकट की कोई आहट नहीं नजर आती. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "फ्रांस जैसे बड़े देश में जिस तरह हाल के वर्षों के दौरान कर्ज बढ़ता रहा है और अब राजनीतिक अस्थिरता भी बढ़ रही है, उस लिहाज से हमें नजर जरूर रखनी होगी कि आगे क्या हालात बनते हैं."

अन्य देशों में भी कर्ज का संकट

कई अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में कर्ज का पहाड़ बढ़ता ही जा रहा है, लिहाजा उन्हें भी पूंजी बाजार से अरबों की रकम जुटानी ही होगी. मिसाल के तौर पर जर्मनी, जापान और अमेरिका को अपने खर्च का बंदोबस्त करने के लिए नए सरकारी बॉन्ड जारी करने होंगे. यह भी एक बड़ा कारण है कि वैश्विक बॉन्ड बाजार में भारी दबाव बना हुआ है.

बाजार में इसे लेकर अधिक बेचैनी नहीं दिख रही. इसके बारे में हाइनेमान का मानना है कि फ्रांसीसी बॉन्ड के सिलसिले में अभी और तेजी देखने को नहीं मिलेगी और यह उम्मीद भी है कि यूरोपीय केंद्रीय बैंक (ईसीबी) कुछ दखल देगा और बाजार को स्थिरता देने के लिए फ्रांसीसी बॉन्ड खरीदेगा. वह आगे कहते हैं, "मगर ऐसी उम्मीद बेमानी भी हो सकती है, क्योंकि अपनी साख को देखते हुए ईसीबी को एहतियात भी बरतनी होगी."

फ्रांस में एक के बाद एक सरकारों के दौरान राजनीतिक असमंजस देखने को मिला है कि जब भी आर्थिक सुधारों या खर्च में कटौती की कोई पहल की जाती है तो वामपंथी से लेकर दक्षिणपंथी, सभी दल हंगामा करते हुए अपने समर्थकों को जुटाने लगते हैं.

दबाव में यूरोपीय संघ और ईसीबी

फ्रांस फिलहाल सालाना 67 अरब यूरो केवल ब्याज भुगतान पर खर्च करता है और वह भारी दबाव में है, क्योंकि वह ईयू नियमों के अनुसार घाटे को घटाने की प्रतिबद्धता से बंधा है. हाइनेमान इसके लिए यूरोपीय संघ की गतिवधियों को भी दोषी ठहराते हैं क्योंकि उसने इस संकट का दायरा बढ़ने दिया.

उन्होंने कहा, "फ्रांस को लेकर यूरोपियन यूनियन ने दोनों आंखें मूंद लीं. ये राजनीतिक समझौते थे, जो इसलिए किए गए ताकि पॉपुलिस्ट पार्टियां मजबूत ना हों." वह आगे कहते हैं, "फ्रांस अपनी वित्तीय दायरे का बड़ा हिस्सा इस्तेमाल कर चुका है. वहीं, जर्मनी में स्थिति काफी बेहतर है, जहां कुछ उपाय आजमाने की गुंजाइश बनी हुई है."