यूरोप में क्यों बढ़ी सीरियाई शरणार्थियों की मुश्किल?
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

सीरिया में राजनीतिक बदलाव के बाद यूरोपीय देशों में मांग जोर पकड़ रही है कि अब सीरियाई शरणार्थियों को अपने देश लौट जाना चाहिए. जर्मनी समेत कई देशों ने सीरियाई शरणार्थियों के असाइलम आवेदनों पर फिलहाल रोक लगा दी है.सीरिया में बशर अल-असद को सत्ता से बाहर किए जाने के बाद दुनियाभर में सीरियाई लोगों ने जश्न मनाया. जर्मनी समेत कई देशों में रह रहे सीरियाई शरणार्थी "फ्री सीरिया" (आजाद सीरिया) के पोस्टर लेकर खुशी मनाते दिखे.

सीरिया पर जर्मनी और भारत समेत बाकी देशों ने क्या कहा

इस बीच अब यूरोपीय देशों में सीरियाई शरणार्थियों के असाइलम आवेदनों पर सख्त फैसले लेने और उन्हें वापस भेजने की मांग जोर पकड़ रही है. जर्मनी, फ्रांस, ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, स्वीडन, नॉर्वे, बेल्जियम, ब्रिटेन समेत कई यूरोपीय देशों ने सीरियाई शरणार्थियों की सभी लंबित असाइलम आवेदनों पर रोक लगा दी है.

सीरिया के कितने शरणार्थी यूरोप में हैं?

संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी 'यूएनएचसीआर' के मुताबिक, गृह युद्ध शुरू होने के शुरुआती एक दशक यानी 2011 से 2021 के बीच 66 लाख से ज्यादा सीरियाई लोग देश छोड़कर भागने पर मजबूर हुए. सीरियाई शरणार्थियों ने 130 से ज्यादा देशों में शरण ली. सबसे अधिक शरणार्थी तुर्की, लेबनान, जॉर्डन, इराक और मिस्र जैसे नजदीकी देशों में रह रहे हैं.

तुर्की की मदद से कैसे बिछी असद के पतन की बिसात

इन शरणार्थियों की एक बड़ी संख्या यूरोपीय देशों में भी है. न्यूज मैगजीन 'पॉलिटिको' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2015 से अब तक लगभग 45 लाख सीरियाई लोग यूरोप आए. यूरोपीय संघ (ईयू) ने 2015 से 2023 के बीच लगभग 13 लाख सीरियाई शरणार्थियों को सुरक्षा का दर्जा दे चुका है.

असद के रहते हुए भी ईयू में उठ रही थी शरणार्थियों को लौटाने की मांग

असद को अपदस्थ किए जाने से पहले भी कुछ देश सीरियाई शरणार्थियों को असाइलम ना देने और उन्हें वापस भेजने की बात उठा रहे थे. इसमें एक बड़ी तकनीकी बाधा थी, यूरोपियन यूनियन एजेंसी फॉर असाइलम (ईयूएए) द्वारा तय की गई सुरक्षित देश की परिभाषा.

ईयूएए के सेक्शन 4.3.2 के मुताबिक, शरण के लिए आवेदन करने वाले को या शरणार्थी को उसके देश वापस भेजने के लिए जरूरी है कि वह देश 'सेफ कंट्री ऑफ ओरिजिन' की परिधि में आता हो. वहां कानूनों का पालन लोकतांत्रिक तरीके से होता हो, राजनीतिक घटनाक्रम (आमतौर पर और लगातार) उत्पीड़न, यातना, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या सजा का कारण ना बनते हों. या फिर, अंतरराष्ट्रीय या आंतरिक सशस्त्र संघर्ष की स्थिति में अंधाधुंध-अविवेकपूर्ण हिंसा का खतरा ना हो.

इन मापदंडों पर सीरिया सुरक्षित देश नहीं था. बावजूद इसके कुछ देश सीरियाई शरणार्थियों को वापस भेजने पर सहमति बनाने की कोशिश कर रहे थे. मसलन, जब इस्राएल ने लेबनान में जमीनी सैन्य कार्रवाई शुरू की और बड़ी संख्या में लेबनानी नागरिक भागकर पड़ोसी सीरिया में पहुंचे, तो ऑस्ट्रिया के चांसलर कार्ल नेहामर ने कहा कि यह घटना दिखाती है कि सीरिया अब असुरक्षित नहीं रहा. ऑस्ट्रिया में करीब 1,00,000 सीरियाई रहते हैं.

इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी भी इस पक्ष में थीं कि असद के साथ संबंध दुरुस्त कर सीरियाई शरणार्थियों को वापस भेजा जाए. ईयू ने 2011 में सीरिया पर प्रतिबंध लगाए थे. असद सरकार द्वारा शांतिपूर्ण नागरिक प्रदर्शनों पर बल प्रयोग करने के बाद यह फैसला लिया गया था. साल 2012 में ईयू ने सीरिया के साथ अपने कूटनीतिक संबंध तोड़ लिए थे. 12 साल की कूटनीतिक अनुपस्थिति के बाद इसी साल जुलाई में इटली ने सीरिया की राजधानी दमिश्क में अपना दूतावास फिर खोला. स्टेफानो रवागनान को स्थायी प्रतिनिधि बनाकर वहां भेजा गया.

असद को हटाए जाने के बाद मजबूत हो रही है मांग

सीरिया में असद के बाहर होने के बाद अब ईयू और बाकी यूरोप में सीरियाई शरणार्थियों का मुद्दा फिर गर्म हो गया है. समाचार एजेंसी एएफपी के अनुसार, ऑस्ट्रियाई चांसलर नेहामर ने आंतरिक मामलों के मंत्रालय को निर्देश दिया है कि "सीरियाई लोगों के जितने भी शरण संबंधी आवेदन प्रक्रिया में हैं, उन्हें निलंबित किया जाए." साथ ही, जितने भी असाइलम दिए गए हैं उनकी समीक्षा भी की जाए.

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आंतरिक मामलों के मंत्री गेरहार्ड कार्नर ने कहा कि उन्होंने "अपने मंत्रालय को सीरिया के लिए एक सुव्यस्थित स्वदेश वापसी कार्यक्रम तैयार करने का निर्देश दिया है." ऑस्ट्रिया के आंतरिक मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, "सीरिया की राजनीतिक स्थिति आधारभूत रूप से, और सबसे बढ़कर, हालिया दिनों में बहुत तेजी से बदल गई है." मंत्रालय ने यह भी कहा कि वह नई परिस्थितियों की निगरानी और समीक्षा कर रहा है.

जर्मनी में चुनाव, शरणार्थी बड़ा मुद्दा

जर्मनी भी उन देशों में है, जहां सीरियाई शरणार्थियों के आवेदनों को फिलहाल रोक दिया गया है. जर्मनी की आंतरिक मामलों की मंत्री नैंसी फेजर ने 9 दिसंबर को एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, "असद की क्रूरता का अंत उन लोगों के लिए बड़ी राहत है, जिन्होंने अत्याचार, हत्या और आतंक का सामना किया. कई शरणार्थी जिन्हें जर्मनी में सुरक्षा मिली, उन्हें अपने देश लौटने की नई उम्मीद जगी है."

यह जोड़ते हुए कि सीरिया की स्थितियां फिलहाल बहुत स्पष्ट नहीं है और ऐसे में वापस लौटने की ठोस संभावनाओं पर अभी अनुमान नहीं लगाया जा सकता है, फेजर ने घोषणा की, "अनिश्चित स्थितियों को देखते हुए, यह सही है कि बीएएमएफ (माइग्रेशन और रिफ्यूजी विभाग) ने आज असाइलम प्रक्रियाओं से जुड़े निर्णयों पर रोक लगाने का फैसला लिया, जो अभी विचाराधीन हैं." फेजर ने बताया कि जब तक स्थिति स्पष्ट नहीं होती, यह रोक जारी रहेगी. इसके बाद बीएएमएफ नई परिस्थितियों के मुताबिक फैसले लेगा.

जर्मन विदेश मंत्रालय ने भी रेखांकित किया कि असद की सत्ता खत्म होने का मतलब भविष्य में शांति की गारंटी नहीं है. हालांकि, धुर-दक्षिणपंथी धड़े का रुख अलग है. ईयू में सबसे ज्यादा, करीब 10 लाख सीरियाई शरणार्थी जर्मनी में रहते हैं. फरवरी में यहां मध्यावधि चुनाव होना है और शरणार्थी बड़ा चुनावी मुद्दा हैं.

तेजी से जनाधार बढ़ा रही धुर-दक्षिणपंथी पार्टी 'ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी' (एएफडी) शरणार्थियों पर उदार नीति का विरोध करती आई है. एएफडी की नेता एलीस वाइडेल ने कहा, "जर्मनी में रह रहा कोई भी इंसान, जो "आजाद सीरिया" का जश्न मना रहा हो, बेशक उसके पास अब भागने की कोई वजह नहीं है." वाइडेल के बयान का संदर्भ जर्मनी के कई शहरों में हुए उन प्रदर्शनों से है, जिनमें सीरियाई लोगों ने असद को सत्ता से बाहर किए जाने पर जश्न मनाया.

मुख्य विपक्षी दल सीडीयू ने भी कहा है कि जिन सीरियाई शरणार्थियों के आवेदन खारिज किए जा चुके हैं, उन्हें मिलने वाली सुरक्षा खत्म की जानी चाहिए. सीडीयू के सांसद थॉर्स्टन फ्राय ने एक टीवी चैनल से बातचीत में कहा, "अगर सुरक्षा दिए जाने का कारण अब मौजूद नहीं है, तो शरणार्थी को अपने देश लौटना होगा."

सीडीयू के एक अन्य सांसद येन्स स्पा ने सुझाव दिया कि बर्लिन, सीरिया के लिए चार्टर फ्लाइट बुक करे और जो भी सीरियाई अपने देश लौटना चाहे, उसे हजार यूरो देने की पेशकश करे. चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की पार्टी एसडीयू और गठबंधन सरकार में शामिल रही ग्रीन्स पार्टी संयम बरतने और आगामी घटनाक्रमों पर नजर रखने की बात कर रहे हैं.

एसएम/आरपी (एएफपी, रॉयटर्स)