रूस यूक्रेन के बीच मध्यस्थ क्यों बनना चाहता है चीन
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

चीन और रूस की दोस्ती जगजाहिर है, तो फिर वह यूक्रेन के साथ संघर्ष में शांतिदूत क्यों बनना चाहता है? राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा है कि वह यूक्रेन में अपना दूत भेज कर रूस के साथ लड़ाई के राजनीतिक समाधान की कोशिश करेंगे.चीन अब तक दूसरे देशों के संघर्ष में शामिल होने से बचता आया है. हालांकि अब ऐसा लग रहा है कि वह वैश्विक स्तर पर कूटनीतिक ताकत के रूप में उभरना चाहता है. खासतौर से मार्च में सऊदी अरब और ईरान के बीच सात साल से रुके राजनयिक रिश्तों को बहाल कराने के बाद ऐसे कयासों को और बल मिला है.

शी जिनपिंग ने यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के साथ फोन पर बातचीत में कहा है कि एक चीनी दूत यूक्रेन और दूसरे देशों में जाकर राजनीतिक समाधान की संभावनाएं तलाशेगा. यह दूत रूस में चीन का राजदूत रह चुका है. सरकार की तरफ से जारी बयान में यह जानकारी दी गई है. इसमें ना तो रूस का कोई जिक्र है ना ही पिछले साल शुरू हुए यूक्रेन पर हमलों का. इसमें यह जानकारी भी नहीं दी गई है कि यह दूत रूस जायेगा या नहीं. चीन ने कहा था कि वह इस मामले में मध्यस्थता करेगा और तभी से शी जिनपिंग और जेलेंस्की के बीच फोन पर बातचीत की उम्मीद की जा रही थी.

यह पहल कितनी अहम है?

चीन अकेला बड़ा देश है जिसके रूस के साथ दोस्ताना संबंध है और जो आर्थिक लाभ भी ले रहा है. अमेरिका और उसके सहयोगियों के तेल गैस खरीदना बंद करने के बाद चीन रूसी ऊर्जा का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है.

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चीन दुनिया पर अमेरिकी दबदबे का विरोध करने में रूस को कूटनीतिक सहयोगी के रूप में देखता है. उसने यूक्रेन पर हमले की आलोचना करने से मना कर दिया. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों के रूप में वह रूस पर होने वाले कूटनीतिक हमलों को कुंद कर देता है. जेलेंस्की ने पहले कहा था कि वह चीन की ओर से मध्यस्थता के प्रस्ताव का स्वागत करेंगे.

चीन ने मध्यस्थता की कोशिश क्यों की?

शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन की सरकार वैश्विक कूटनीति में बड़ी भूमिका की तलाश में है. सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी चीन को राजनीतिक और आर्थिक नेता के रूप में स्थापित करने के साथ ही ऐसी विश्व व्यवस्था चाहती है जो चीन के हितों का ख्याल रखे. कई दशकों तक दूसरे देशों के संघर्षों और ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय मामलों से खुद को दूर रखने की नीति से यह बिल्कुल उल्टा है. उस दौरान उसने अपना सारा ध्यान सिर्फ घरेलू आर्थिक विकास पर लगाये रखा.

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इसी साल मार्च में सऊदी अरब और ईरान ने बीजिंग में बातचीत के बाद एक दूसरे की राजधानी में दूतावास खोलने की चौंकाऊ घोषणा की. सात साल से दोनों देशों के बीच कूटनीतिक रिश्ते ठप्प पड़े हुए थे. इन दोनों के साथ बड़े तेल खरीदार के रूप में चीन के अच्छे संबंध हैं.

पिछले हफ्ते चीन के विदेश मंत्री क्विन गांग ने अपने इस्रायली और फलस्तीनी समकक्षों से कहा कि उनका देश दोनों के बीच शांति वार्ता में मदद करने के लिए तैयार है.

बुधवार के बयान में परमाणु युद्ध के खतरे के खिलाफ भी चेतावनी दी गई थी. इससे ऐसा लगता है कि चीन शायद इसलिए इसे करना चाहता है क्योंकि युद्ध के ज्यादा विनाशकारी होने का खतरा बढ़ रहा है.

यूक्रेन और रूस के बीच मध्यस्थता से चीन की पूर्वी यूरोप में मौजूदगी बढ़ेगी. यहां चीन दूसरी सरकारों के साथ भी संबंध जोड़ने की कोशिश में है. इसके चलते कुछ यूरोपीय नेताओं ने यह शिकायत भी की कि चीन यूरोपीय संघ का फायदा उठाने की कोशिश में है. न्यूयॉर्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी के बर्नार्ड कॉलेज में राजनीति पढ़ाने वाली प्रोफेसर किंबरले मार्टेन को चीन के शांतिदूत की भूमिका में सफल होने पर संदेह है, "मेरे लिए यह यकीन करना मुश्किल है कि चीन एक शांतिदूत के रूप में सफल होगा. वह रूस के कुछ ज्यादा ही करीब है."

रूस के चीन के साथ कैसे संबंध हैं?

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की अलग थलग पड़ चुकी सरकार के लिए चीन अकेला देश है जो बेहद करीब और बड़ा सहयोगी है. फरवरी 2022 में हमला शुरू करने के पहले दोनों देशों ने यह घोषणा की थी कि उनकी सरकारों के बीच "असीम दोस्ती" है. चीन ने इस मामले में खुद को तटस्थ दिखाने की कोशिश की लेकिन इसके साथ ही हमले के लिए रूस के बताये कारणों को दोहराया.

इस साल मार्च में मॉस्को दौरे पर गये शी जिनपिंग का गर्मजोशी से स्वागत हुआ. चीन ने रूस से तेल और गैस की खरीदारी बढ़ा दी है. पश्चिमी देशों के प्रतिबंध के कारण हो रहे राजस्व के नुकसान की कुछ भरपाई चीन इस बढ़ी खरीदारी से कर रहा है. इसके बदले में चीन को कम कीमत पर ऊर्जा मिल रही है. हालांकि इसके ब्यौरे सार्वजनिक नहीं किये गये हैं.

मार्टेन का कहना है कि शी और जेलेंस्की की बातचीत एक तरह से, "रूस के मुंह पर तमाचा है, क्योंकि रूस चीन को अपने सहयोगी के रूप में दिखाता है." उनका कहना है कि चीन यूक्रेन की सीधी बातचीत का मतलब है, "चीन कम से कम रूस से एक कदम दूर गया."

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चीन के यूक्रेन के साथ कैसे रिश्ते हैं?

चीन और यूक्रेन का युद्ध के पहले सबसे बड़ा कारोबारी साझीदार था. हालांकि चीन और रूस के बीच होने वाले व्यापार से यह कम था. 2021 में यूक्रेन ने चीनी कंपनियों के लिए कारोबार से जुड़े बुनियादी ढांचे बनाने का एलान किया था. जेलेंस्की सरकार चीन को लेकर तब थोड़ी उलझन में आ गई जब यह साफ हो गया कि चीन रूसी हमले को नहीं रोक पायेगा. हालांकि दोनों देशों के आपसी रिश्ते सौहार्दपूर्ण बने रहे.

एक यूक्रेनी अधिकारी ने दोनों नेताओं की बातचीत के बाद कहा, "रूसी हमले के पहले चीन यूक्रेन का सबसे बड़ा कारोबारी साझीदार था. मुझे यकीन है कि हमारी बातचीत वापसी, संरक्षण और सभी स्तरों पर इस गतिशीलता के लिए एक ताकतवर प्रेरणा बनेगी."

विदेश मंत्री क्विन ने इसी महीने यह वादा किया था कि चीन दोनों पक्षों में से किसी को हथियार नहीं देगा. इस वादे का यूक्रेन को फायदा हो सकता है जिसे अमेरिका और यूरोपीय देशों से हथियार मिल रहे हैं.

फ्रांस में चीन के राजदूत ने यह कह कर यूरोप में बवाल मचा दिया कि पूर्वी सोवियत गणराज्य संप्रभु देश नहीं बन सकेंगे. इन देशों में यूक्रेन भी है. यह बयान पुतिन के उन बयानों से मेल खाता है जिनमें वह यूक्रेन की संप्रभुता को नकारते हैं. इसके बाद चीन ने पूर्व सोवियत देशों को भरोसा दिलाया कि वह उनकी संप्रभुता का सम्मान करता है और राजदूत का बयान उनकी निजी राय थी, यह चीन की आधिकारिक नीति नहीं है.

अमेरिकी थिंक टैंक सीएनए और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वेदरहेड ईस्ट एशियन इंस्टीट्यूट की एलिजाबेथ विशनिक ने ईमेल से भेजे एक प्रश्न के जवाब में कहा है कि चीनी राजदूत के बयान पर उठे बवाल के बाद, "मैं हैरान हूं कि कहीं शी का फोन कॉल जल्दबाजी में ध्यान भटकाने के लिए तो नहीं किया गया."

एनआर/एमजे (एपी)