बदल रही है दक्षिण एशियाई राजनीति की हवा
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

भारत और पाकिस्तान की प्रतिद्वंद्विता अब दक्षिण एशिया की नई कूटनीतिक चालों का आधार बन रही है. भारत अब अफगानिस्तान के तालिबान से नजदीकियां बढ़ा रहा है, जबकि पाकिस्तान बांग्लादेश की नई सरकार से दोस्ती कर रहा है.दक्षिण एशिया की कूटनीतिक स्थिति भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चली आ रही अविश्वास की भावना पर आधारित है. दोनों देश 1947 में ब्रिटिश शासन के अंत के बाद अस्तित्व में आए और तब से कई युद्ध लड़ चुके हैं. यह दुश्मनी अब भी जारी है. जनवरी में भारत ने उन आरोपों को खारिज कर दिया कि उसने पाकिस्तान में घुसकर भारत विरोधी आतंकवादियों को मारने के लिए गुप्त अभियान चलाए. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, "आप अपने आंगन में सांप पालकर यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वे सिर्फ आपके पड़ोसियों को डसेंगे."

इसी तरह, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रिश्ते भी तालिबान के चार साल पहले काबुल में सत्ता संभालने के बाद से बिगड़ गए हैं. पाकिस्तान का आरोप है कि अफगानिस्तान में मौजूद आतंकवादी गुट उसके सुरक्षा बलों पर हमले कर रहे हैं, जिनमें हजारों जवान मारे जा चुके हैं.

दिसंबर में पाकिस्तान ने अफगान सीमा पर हवाई हमले किए थे, जिसके बाद दोनों देशों के बीच गोलीबारी हुई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हिंदू राष्ट्रवाद और तालिबान की कट्टर इस्लामी सोच देखने में बिल्कुल अलग लगती है, लेकिन भारत ने इस अवसर का लाभ उठाने की रणनीति अपनाई है.

वॉशिंगटन स्थित नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी के अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर हसन अब्बास के अनुसार, "भारत लंबे समय से इस नीति पर काम कर रहा है." उन्होंने कहा कि भारत नहीं चाहता कि तालिबान किसी ऐसे गुट को पनाह दे, जो उसके लिए बड़ा खतरा बन सकता है."

तालिबान से संवाद

भारत ने हाल के वर्षों में तालिबान के साथ संपर्क और संवाद बढ़ाया है. जनवरी में भारत के वरिष्ठ राजनयिक विक्रम मिस्री ने दुबई में तालिबान के विदेश मंत्री मौलवी आमिर खान मुत्ताकी से मुलाकात की थी. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने इसे "अब तक की सबसे उच्च-स्तरीय वार्ता” बताया और कहा कि भारत "अफगानिस्तान की जनता के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को मजबूत करना चाहता है.” मुत्ताकी ने भी भारत के साथ संबंधों के विस्तार की उम्मीद जताई.

विश्लेषकों के अनुसार, भारत इस कूटनीतिक पहल से दो बड़े लक्ष्य साध रहा है – पहला, यह सुनिश्चित करना कि तालिबान भारत-विरोधी आतंकवादी गुटों को पनाह न दे. दूसरा, इसके जरिए वह पाकिस्तान को भी एक संदेश भेज रहा है कि भारत उसके विरोधियों के साथ गठजोड़ कर सकता है.

अमेरिका स्थित नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हसन अब्बास ने कहा, "भारत लंबे समय से तालिबान के साथ संवाद कर रहा है. वे नहीं चाहते कि तालिबान भारत विरोधी आतंकियों को जगह दे. साथ ही, पाकिस्तान को परेशान करने का यह एक अच्छा मौका भी है.”

भारत ने बैठक के दौरान अफगानिस्तान के व्यापार को समर्थन देने के लिए ईरान के चाबहार बंदरगाह के उपयोग पर भी चर्चा की. भारत ने इस बंदरगाह में 37 करोड़ डॉलर का निवेश किया है. यह पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के पास स्थित है, जो चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (बीआरआई) का एक प्रमुख हिस्सा है.

टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने संपादकीय में लिखा, "भारत चुपचाप लेकिन लगातार अपने रणनीतिक हितों की रक्षा कर रहा है.”

पाकिस्तान-बांग्लादेश के रिश्तों में नया मोड़

पाकिस्तान और बांग्लादेश के रिश्तों में भी अप्रत्याशित बदलाव देखने को मिल रहा है. 1971 के युद्ध के बाद बांग्लादेश भारत के करीब रहा, लेकिन अगस्त 2024 में शेख हसीना की सरकार के पतन और उनके भारत भाग जाने के बाद चीजें बदल गईं. भारत ने उनके प्रत्यर्पण की मांग को ठुकरा दिया, जिससे बांग्लादेश और भारत के बीच तनाव बढ़ गया.

इस स्थिति का फायदा उठाकर पाकिस्तान ने बांग्लादेश के साथ अपने रिश्ते सुधारने शुरू कर दिए. नवंबर 2024 में दशकों बाद पहली बार पाकिस्तान से सीधे बांग्लादेश के चिटगांव बंदरगाह तक जहाज रवाना हुआ. इसके बाद दिसंबर में बांग्लादेश के अंतरिम नेता मोहम्मद यूनुस ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से मुलाकात की और दोनों नेताओं ने "संबंधों को मजबूत करने” पर सहमति जताई.

बाद में, बांग्लादेश के सैन्य अधिकारी पाकिस्तान गए और रक्षा प्रशिक्षण कार्यक्रमों पर चर्चा की. ढाका विश्वविद्यालय की प्रोफेसर अमीना मोहसिन कहती हैं, "यह क्लासिक कूटनीति है – दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है.”

पाकिस्तान में अफगान शरणार्थियों का संकट

इस बीच, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्ते लगातार खराब हो रहे हैं. पाकिस्तान का आरोप है कि तालिबान सरकार ऐसे आतंकवादी गुटों को संरक्षण दे रही है जो पाकिस्तान में हमले कर रहे हैं. दिसंबर 2024 में पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में हवाई हमले किए, जिसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया.

अब पाकिस्तान ने अफगान शरणार्थियों को देश से निकालने की चेतावनी दी है. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने जनवरी 2025 में अमेरिकी शरणार्थी कार्यक्रम को रोक दिया, जिससे पाकिस्तान में 20,000 अफगान शरणार्थी फंस गए. पाकिस्तानी अधिकारियों ने कहा कि अगर इन शरणार्थियों की स्थिति जल्द साफ नहीं हुई तो उन्हें 31 मार्च तक इस्लामाबाद और रावलपिंडी से निकाल दिया जाएगा.

इस फैसले से अफगान शरणार्थियों में दहशत फैल गई है. अफगान यूएस रिफ्यूजी एडमिशन प्रोग्राम के सदस्य अहमद शाह ने कहा, "यह बहुत नाजुक समय है. अफगान शरणार्थी पहले ही मानसिक तनाव में हैं और अब जबरदस्ती निकाला जाना उनके लिए बड़ा संकट होगा.”

एक अन्य शरणार्थी खालिद खान, जो 2023 से अमेरिका जाने का इंतजार कर रहे हैं, ने अपील की, "हम पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से अनुरोध करते हैं कि हमें जबरदस्ती न निकाला जाए.” कुछ अफगान शरणार्थी गिरफ्तारी से बचने के लिए इस्लामाबाद छोड़कर अन्य शहरों में जाने की योजना बना रहे हैं.

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने पाकिस्तान में अफगान शरणार्थियों के "मनमाने तरीके से हिरासत में लिए जाने और उत्पीड़न” की खबरों पर चिंता जताई है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, पाकिस्तान में 14.5 लाख पंजीकृत अफगान शरणार्थी हैं, जिनकी स्थिति को जून 2025 तक के लिए बढ़ाया गया है.

इन घटनाओं से दक्षिण एशिया में नई रणनीतिक चालें चली जा रही हैं. भारत तालिबान के साथ संवाद कर पाकिस्तान को असहज कर रहा है, जबकि पाकिस्तान बांग्लादेश से दोस्ती कर भारत को झटका देने की कोशिश कर रहा है.

वीके/एवाई (रॉयटर्स, एएफपी, एपी)