जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की एसपीडी को ब्रांडेनबुर्ग में जीत के बाद थोड़ा जश्न बनाने का मौका तो मिल गया लेकिन सरकार बनाने की चुनौती बहुत बड़ी है.मध्य वामपंथी एसपीडी ने चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में 5-6 फीसदी पीछे रहने के बाद भीचुनाव में जीत हासिल कर ली है. धुर दक्षिणपंथी पार्टी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी यानी एएफडी दूसरे नंबर पर रही है. हालांकि बर्लिन के आसपास के पूर्वी इलाके में 1990 से ही सत्ता में रही एसपीडी के सामने नया गठबंधन बनाने की चुनौती इस बार बहुत बड़ी है.
मुख्यधारा की दूसरी पार्टियों की तरह ही एसपीडी ने भी एएफडी के साथ काम करने के साफ इनकार कर दिया है. ब्रांडेनबुर्ग की खुफिया एजेंसियों ने एएफडी को संदिग्ध दक्षिणपंथी चरमपंथी गुट के रूप में चिह्नित किया है. ऐसी स्थिति में उनके सामने दो ही संभावित साझेदार बचते हैं. पहली है मुख्य विपक्षी पार्टी सीडीयू और दूसरी तुलनात्मक रूप से नई पार्टी सारा वागेनक्नेष्ट अलायंस यानी बीएसडब्ल्यू. यह पार्टी कठोर वामपंथी सामाजिक नीतियों के साथ ही आप्रवासी विद्रोही रुख रखती है और यूक्रेन को समर्थन की विरोधी है.
सीडीयू के साथ ब्रांडनबुर्ग में उनका गठबंधन पहले से है लेकिन इस बार इतने भर से काम नहीं चलेगा क्योंकि सीडीयू को शुरुआती नतीजों के मुताबिक यहां सिर्फ 12.1 फीसदी वोट मिले हैं.
नये राजनीतिक समीकरण
भारी मतदान के बाद जो नतीजे आए हैं उनमें एसपीडी को 31 फीसदी वोटरों का समर्थन मिला है. इससे पहले यानी 2019 के चुनाव में एसपीडी को मिले वोटों से यह करीब पांच फीसदी ज्यादा है. दूसरी तरफ एएफडी को 29.2 फीसदी वोट मिले हैं. 2019 के 23.5 फीसदी वोटों के हिसाब से देखें तो उसने भी अच्छी खासी बढ़त हासिल की है.
जर्मनी की गठबंधन सरकार के लिए बहुत मुश्किल होने वाला है 2024
इस जीत के साथ एएफडी को एक तरह से राज्य की असेंबली में ऐसे सभी फैसलों पर रोक लगाने का अधिकार मिल गया है जो दो तिहाई बहुमत से पारित होने हैं. इनमें संवैधानिक बदलाव और दूसरे फैसले शामिल हैं. चुनावी मंच पर महज एक महीने पहले ही अस्तित्व में आई बीएसडब्ल्यू को ब्रांडेनबुर्ग के पहले चुनाव में 13.5 फीसदी वोट मिले हैं. एसपीडी के सामने चुनौती सिर्फ सरकार बनाने की ही नहीं है. उसे चांसलर शॉल्त्स के नेतृत्व पर उठते सवालों से भी जूझना है.
चांसलर शॉल्त्स पर दबाव
संयुक्त राष्ट्र आम सभा के लिए चांसलर शॉल्त्स फिहलाल न्यूयॉर्क के दौरे पर गए हैं. ब्रांडनबुर्ग की जीत को एक साल बाद चांसलर चुनाव में अपने लिए मौके के तौर पर इस्तेमाल करने की उम्मीद उन्हें रही होगी. हालांकि मौजूदा परिस्थितियों में उनके सामने उम्मीदों से ज्यादा चुनौतियां हैं.
कई मोर्चों पर संघर्ष कर रहे चांसलर की लोकप्रियता काफी नीचे चली गई है.
कई महीनों से यह सवाल उठ रहा है कि क्या सितंबर 2025 के चुनाव में उन्हें पार्टी का नेतृत्व करना चाहिए? या फिर एसपीडी को कोई और उम्मीदवार उतारना चाहिए. एसपीडी को ब्रांडेनबुर्ग में जीत बड़ी मुश्किल से मिली है. ब्रांडेनबुर्ग के लंबे समय से मुख्यमंत्री रहे डीटमार वोइडके काफी लोकप्रिय रहे हैं. उन्होंने चुनावों के काफी पहले से ही खुद को शॉल्त्स से साफ तौर पर दूर कर लिया था.
बहुत से विशेषज्ञ इन चुनावों से शॉल्त्स के अलग रहने को ही इसकी जीत का कारण मान रहे हैं. एएफडी से आगे निकलने में उनकी सफलता के बाद कई पर्यवेक्षकों का मानना है कि अगले साल के चुनाव में एसपीडी को जीत तभी मिलेगी जब वह शॉल्त्स से दूर जाएगी. जाहिर है कि ऐसे में ओलाफ शॉल्त्स के नेतृत्व पर सवाल तो उठेंगे ही. हाल के विधानसभा चुनावों में पार्टी और उसकी गठबंधन सहयोगियों को लगातार हार का मुंह देखना पड़ा है.
वोइडके ने ब्रांडेनबुर्ग के चुनाव को एक तरह से अपनी निजी लोकप्रियता पर जनमत संग्रह का रूप दे दिया था. वो लगातार यही कहते रहे कि उनकी पार्टी अगर सबसे आगे नहीं रही तो वह इस्तीफा दे देंगे. नतीजे बता रहे हैं कि उनका यह दांव कामयाब रहा.
रविवार की रात एसपीडी के नेता लार्स क्लिंगबाइल ने यह साफ किया कि पार्टी की योजना आम चुनाव में ओलाफ शॉल्त्स के साथ जाने की है." हालांकि उन्होंने यह भी माना है कि राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी में जो समस्याएं हैं, वे बनी हुई हैं और आने वाले महीनों में कुछ निर्णायक कदमों की जरूरत होगी.
एनआर/ओएसजे (डीपीए)