Muslim Country Oman: ओमान बड़े बदलाव की ओर तेजी से बढ़ता एक छोटा-सा मुस्लिम देश, जानें क्या-क्या हुए हैं बदलाव?
ओमान (Photo Credits: Twitter/Pixabay)

Oman Is Moving Fast Towards Big Change: ओमान के निवर्तमान सुल्तान हैथम बिन तारीख अल सईद ने कुछ बड़े संवैधानिक फेरबदल का ऐलान करते हुए एक क्राउन प्रिंस की नियुक्ति की व्यवस्था के साथ कई बड़े सुधारों का भी ऐलान किया गया है. इन बड़े रद्दोबदल के तहत देश को ज्यादा आधुनिक बनाने और कानूनी व्यवस्थाएं दुरुस्त करने की कोशिश की जा रही है. इसे क्राउन प्रिंस के उत्तराधिकार को लेकर किसी तरह के विवादों को रोकने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. एक नजर ओमान के भावी व्यवस्थाओं नए कानून एवं वहां की मूलभूत समस्याओं पर...

कोरोना ने बिगाड़ी अर्थ व्यवस्था

तेल की कीमतों में गिरावट और कोरोना वायरस की महामारी से ओमान की अर्थ व्यवस्था चरमरा गई है. ओमान के वर्तमान सुल्तान हैथम बिन तारीख अल सईद ने देश की अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए एक मीडियम टर्म प्लान बनाने के लिए एक कमेटी गठित की है. नये कानून को सुल्तान ने पिछले दिनों जारी किया है. इस कानून में नागरिकों को ज्यादा अधिकार और आजादी देने की व्यवस्था की है. न्यूज एजेंसी ONA के अनुसार इस कानून में पुरुषों एवं महिलाओं में बराबरी पर लाने की भी कोशिश की गयी है. नेशनल टीवी पर एक शाही आदेश में बताया गया है कि शासन स्थानांतरण के लिए स्पष्ट एवं स्थाई प्रक्रिया तैयार करने के साथ एक क्राउन प्रिंस नियुक्त करने की व्यवस्था की गयी है.

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नये सुल्तान के चुनाव की व्यवस्था

ओमान संविधान के अनुसार 3 दिन के भीतर शाही परिवार को सुल्तान का उत्तराधिकारी चुनना होता है. परिवार द्वारा उत्तराधिकारी के चयन पर सहमति नहीं बनने पर सुल्तान उत्तराधिकारी का चुनाव करेगा. सुल्तान के लिए जरूरी है कि व्यक्ति शाही परिवार का हो, मुसलमान हो, परिपक्व हो और ओमानी मुस्लिम परिवार की वैध संतान हो. पिछले सुल्तान आबुस बिन सईद अल सईद का कोई वारिस नहीं था. उन्होंने अपने उत्तराधिकारी का नाम एक शीलबंद लिफाफे रख दिया था, जिसे उसकी मौत के बाद खोला जाना था. पिछले दिनों जारी कानून में क्राउन-प्रिंस की नियुक्ति और उनके कर्तव्यों के लिए नियम तय किये गये हैं.

क्या है नया कानून

ओमान एक छोटा-सा तेल उत्पादक देश है, और अमेरिका का क्षेत्रीय सहयोगी भी. एक अलग डिक्री में संसद के लिए एक नया कानून तैयार किया गया है. यहां विधायिका के दो सदन हैं. नये आदेश में काउंसिल की सदस्यता और शर्तें तय की गयी हैं. बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और राजनीतिक सुधारों की मांगों को लेकर 2011 में ओमान को भी अरब स्प्रिंग जैसे विरोधों का सामना करना पड़ा था. ओमान में राजनीतिक पार्टियों के लिए कोई जगह नहीं दी गयी है. सुल्तान का यह कदम काफी अहम है. इसके पीछे कई वजह हैं.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

रक्षा अध्ययन और विश्लेक्षण संस्थान की एशिया सेंटर की पूर्व हेड मीना सिंह राय के अनुसार अरब स्प्रिंग और कोरोनावायरस के कारण सऊदी अरब या यूएई और ओमान के शासन को स्थानीयों के लिए नये प्रस्ताव लाने पड़ रहे हैं ताकि लोगों की नाराजगी दूर की जा सके. इससे खाड़ी देशों की नीतियों में एक आमूल चूल बदलाव देखा जा रहा है. कतर की नाकेबंदी, यूएई और सऊदी अरब की बड़ी गलती थी. इसका फायदा ईरान और तुर्की को हुआ. वहीं जवाहर लाल युनिवर्सिटी में अंतर्राष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर एके पाशा का कहना है कि मौजूदा दौर में यह कदम बहुत महत्वपूर्ण हैं.

पिछले सुल्तान काबूस ने लगभग 50 साल शासन किया. उनका न कोई प्रिंस था और ना कोई उनका उत्तराधिकारी. ओमान को शाही परिवार अल्बू साइदी कहा जाता है. मौजूदा सुल्तान की लोकप्रियता पिछले सुल्तान के मुकाबले कम है, साथ ही वे बीमार और उम्रदराज भी हैं, ऐसे में नियम बनाया गया है कि सभी की सहमति से कम उम्र के सदस्य को क्राउन प्रिंस चुना जाये.

सुल्तान के चुनाव की नयी व्यवस्था

मीना सिंह राय के अनुसार सुल्तान काबूस का कोई वारिस नहीं था, लेकिन हैथम बिन तारीख ने एक सिस्टम बनाने की कोशिश है, ताकि उत्तराधिकारी तय करते वक्त कोई विवाद न हो. इस आदेश के जरिये ओमान में लोकतंत्र को ज्यादा मजबूत बनाने की एक कोशिश की जा रही है. वहीं पाशा कहते हैं कि खाड़ी के जीसीसी देशों में कुवैत एकमात्र देश था, जहां 1961 में ब्रिटेन से आजादी के बाद से नेशनल एसेंबली, संविधान और चुनाव जैसी लोकतांत्रिक परंपरा निभाई जा रही थी.

बहरीन में भी 1971 में आजादी के बाद 5 साल राजा के शासन के बाद लोकतंत्र आ गया. एक ओमान ही ऐसा देश था, जिसने अपने यहां राजनीतिक सुधार शुरु किये. यहां पार्लियामेंट को ज्यादा पॉवर नहीं हैं. लेकिन सवाल-जवाब के सत्र होते हैं, साथ ही सीमित चुनाव भी होते हैं. राय कहती हैं कि नये कानूनों का एक मकसद लोगों का अपने नेतृत्व पर भरोसा करना भी है.

सुधार के पीछे आर्थिक वजहों की भी बड़ी भूमिका है. जबकि पाशा के अनुसार, ओमान 2008 की मंदी से आज तक उबर नहीं पाया है. विदेशी कर्ज निरंतर बढ़ रहा है, जबकि तेल के दाम लगातार घट रहे हैं. देश की आबादी और खर्चे भी बढ़े हैं. ऐसे में सुल्तान देश की अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाना चाहते हैं. उन्होंने लंबे वक्त से लटके वित्तीय वर्ष की सुधारों को लागू किया और वित्त एवं विदेश मंत्रियों की नियुक्ति की, केंद्रीय बैंक का चेयरमैन पद नियुक्त किया, जिसे पहले सुल्तान संभाल रहे थे.

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क्या हैं मूल समस्या

तेल की कीमतों में गिरावट और कोरोना के चलते ओमान के वृत्तीय हालात गड़बड़ाये हैं. बड़ी क्रेडिट क्रियेटिव एजेंसी ने वहां निवेश के मामलों को कमतर साबित किया है. वित्तीय घाटा लगातार बढ़ा है. आगामी वर्षों में बड़े पैमाने पर कर्जों की व्यवस्था करनी होगी. नये बेसिक कानून में सुल्तान की अगुवाई में एक कमेटी बनाई है, जो मंत्रियों एवं दूसरे अधिकारियों के प्रदर्शन का आकलन करेगी. पिछले साल अक्टूबर में सुल्तान ने एक मध्यम अवधि की वित्त योजना को मंजूरी दी थी, ताकि सरकारी वित्तीय स्थिति को ज्यादा टिकाऊ बनाया जा सके.

बाहरी निवेश एवं नौकरियां पैदा करना भी इस घोषणा की एक वजह है. चीन पूरी खाड़ी में अपने पैर पसार रहा है. अमेरिका पर पूरा भरोसा नहीं कर पा रहे हैं. राय कहती हैं, दूसरे देशों को यहां से लाभ की उम्मीद होगी, तभी वे निवेश करेंगे. इस वजह से भी ओमान ने नियमों में बदलाव किया है. अरब स्प्रिंग के दौर में ओमान में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे. राजधानी मस्कट और दूसरे प्रदेशों में कई दिनों तक तनाव रहा था. पाशा के अनुसार अन्य अरब मुल्कों के मुकाबले ओमान में तेल के भंडार कम हैं. वहां के शासन पर लोगों का दबाव भी है, जबकि ओमान में साक्षरता काफी है.

सुल्तान ही सर्वेसर्वा

ओमान के एक प्रांत दोपार में कई वर्षों तक सुल्तान काबुस के खिलाफ बगावत चलती रही. हांलाकि काबूस ने उन्हें शासन-प्रशासन में शरीक किया था, लेकिन बगावती तेवर अभी भी बने हुए हैं. इस पिछड़े इलाके में विकास की मांग लंबे वक्त से बनी हुई है. इससे खाड़ी देशों में ओमान में विद्रोह का सबसे ज्यादा खतरा है. सुल्तान लोगों को संतुष्ट करने के लिए तमाम कदम उठा रहे हैं. पाशा कहते हैं कि नये बेसिक कानून के जरिये सुल्तान और शाही परिवार लोगों के असंतोष को कम करने और राजनीतिक दायरों को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. सु्ल्तान ने 1970 में ब्रिटेन के समर्थन से एक रक्तहीन विद्रोह के जरिये अपने पिता को अपदस्थ कर दिया था. सुल्तान काबूस ने ओमान की तेल की संपत्ति का इस्तेमाल करते हुए देश को विकास के रास्ते पर चलाना शुरु किया. पिछले वर्ष जनवरी में सुल्तान काबुस बिन सईद समेत सभी की मौत हो गयी थी.

इसके बाद परिवार के पास उत्तराधिकारी चुनने के लिए तीन दिन का वक्त था. परिवार ने काबूस के लिए एक शीलबंद लिफाफा खोला, जिसमें उत्तराधिकारी के तौर पर उनके चचेरे भाई हैथम बिन तारीख का नाम था, लिहाजा उन्हें ही सुल्तान की गद्दी मिली. हैथम बिन सईद का जन्म 1955 को हुआ था. वह लोगों को यह सुनिश्चित कराने में सफल रहे कि वे पूर्व सुल्तान के पदचिह्नों पर ही चलेंगे. ओमान में सुल्तान ही प्रधानमंत्री होता है, और वही सशस्त्र सेनाओं का कमांडर, रक्षा मंत्री एवं वित्त मंत्री होता है.