चीन में मंदी, अविश्वसनीय नीतियां और यूरोपीय कंपनियों की बढ़ती निराशा
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

चीन को लेकर यूरोपीय कंपनियों का भरोसा अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. ताजा सर्वे दिखाता है कि यूरोपीय कंपनियां चीन को लेकर रणनीति में बड़े बदलाव कर रही हैं.चीन में कारोबार कर रही यूरोपीय कंपनियों का भरोसा 2025 में अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. यूरोपीय संघ के चैंबर ऑफ कॉमर्स इन चाइना के वार्षिक बिजनस कॉन्फिडेंस सर्वे के अनुसार, अब केवल 29 फीसदी कंपनियां अगले दो वर्षों में चीन में अपने विकास की संभावना को लेकर आशावान हैं. यह गिरावट सिर्फ आंकड़ों में नहीं, बल्कि कारोबारी सोच में भी दिखाई दे रही है. यानी एक ऐसी अर्थव्यवस्था में, जहां कभी मुनाफा कमाना आसान था, वहां अब जमीनी हकीकतें तेजी से बदल रही हैं.

बीजिंग में संवाददाताओं से बात करते हुए चैंबर के अध्यक्ष येन्स एस्केलुंड ने कहा, "मौजूदा स्तर की अनिश्चितता कारोबारी भरोसे को चोट पहुंचा रही है. कंपनियों के लिए आशावादी बने रहना मुश्किल होता जा रहा है.” उन्होंने अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ और यूरोपीय संघ की हालिया नीतिगत सख्ती को इस बेचैनी के मुख्य कारणों में गिना.

सर्वे में हिस्सा लेने वाली 503 कंपनियों में से लगभग तीन-चौथाई ने बताया कि 2024 की तुलना में चीन में व्यापार करना और भी कठिन हो गया है. एस्केलुंड ने यह भी कहा कि पहले चीन की बाजार संरचना इतनी भरोसेमंद थी कि कंपनियां "बिना अधिक मेहनत के मुनाफा कमा लेती थीं,” लेकिन अब ऐसा नहीं रहा. वह कहते हैं, "अब कंपनियों को हर युआन के लिए मेहनत करनी पड़ रही है.”

जोखिम के दो मोर्चे

चीन की मौजूदा आर्थिक समस्याओं की जड़ में उसका प्रॉपर्टी सेक्टर का संकट और उसके कारण उपभोक्ता मांग में आई सुस्ती है. घरों की कीमतें गिरने से उपभोक्ता खर्च पर नकारात्मक असर पड़ा है. साथ ही, घरेलू चीनी कंपनियां कई क्षेत्रों में सरकार द्वारा सब्सिडी प्राप्त कर आक्रामक तरीके से उत्पादन कर रही हैं, जिससे बाजार में ओवरकैपेसिटी यानी मांग से ज्यादा उत्पादन की क्षमता पैदा हो गई है. इसके चलते कई सेक्टरों में प्राइस वॉर छिड़ गया है.

चैंबर ने कहा कि ऐसी स्थिति में विदेशी कंपनियों का मुनाफा बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. सर्वे के मुताबिक, मुनाफे पर दबाव लगातार बढ़ रहा है, और बिजनस कॉन्फिडेंस अभी भी अपने न्यूनतम बिंदु तक नहीं पहुंचा है. यानी यह और गिर सकता है. एस्केलुंड ने कहा, "यह हर किसी के लिए मुश्किल समय है, क्योंकि मुनाफे की दर घटती जा रही है.”

इसके अलावा, कई कंपनियों ने चीन में सरकार की नीतियों को "अविश्वसनीय और अपारदर्शी" बताया. कुछ क्षेत्रों में राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ने से काम करना और ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया है. चैंबर ने कहा कि लगभग सभी उद्योगों को "तेज हवाओं का सामना" करना पड़ रहा है, चाहे वह घरेलू नियमों का अप्रत्याशित बदलाव हो या प्रतिस्पर्धा में बढ़ती तीव्रता.

रणनीति में बदलाव: चीन से दूरी, यूरोप की ओर झुकाव

बदलती आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों ने यूरोपीय कंपनियों को अपनी निवेश रणनीति दोबारा सोचने पर मजबूर कर दिया है. इस वर्ष केवल 40 फीसदी से कम कंपनियों ने चीन में निवेश बढ़ाने की योजना बनाई है. यह सर्वे के इतिहास का सबसे निचला आंकड़ा है. वहीं, करीब आधी कंपनियां लागत कम करने की तैयारी कर रही हैं, जिससे भविष्य में नौकरियों पर भी असर पड़ सकता है.

चैंबर ने यह भी बताया कि अब कई कंपनियां अपने निवेश का रुख यूरोप की ओर मोड़ रही हैं. कुछ कंपनियां "चीन के लिए चीन में उत्पादन" की रणनीति अपना रही हैं, यानी पूरी सप्लाई चेन को घरेलू स्तर पर सीमित कर रही हैं. वहीं कुछ कंपनियां अपने संचालन को दक्षिण एशिया या यूरोप में स्थानांतरित कर रही हैं, ताकि वे भू-राजनीतिक जोखिमों से सुरक्षित रह सकें.

अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध के कारण में यूरोपीय संघ ने भी हाल के वर्षों में चीन से आने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों पर टैरिफ लगाए हैं. ईयू का कहना है कि चीन द्वारा अपने ईवी सेक्टर को अनुचित सब्सिडी दी जा रही है, जिससे यूरोपीय उत्पादन और नौकरियों को खतरा है.

इस बारे में, एस्केलुंड का यह बयान विशेष ध्यान देने योग्य है. वह कहते हैं, "ऐसा लगता है कि द्विपक्षीय व्यापार और निवेश संबंधों के लाभ दोनों पक्षों को बराबर नहीं मिल रहे हैं.” उनका यह कहना चीन और यूरोप के बीच के असंतुलन को जाहिर करता है, जो आने वाले समय में द्विपक्षीय नीतियों को और प्रभावित कर सकता है.