कंपनियों का मुनाफा यानी महंगाई की मार
सप्लाई चेन की बाधाओं और यूक्रेन की लड़ाई ने महंगाई को भड़का दिया है.
सप्लाई चेन की बाधाओं और यूक्रेन की लड़ाई ने महंगाई को भड़का दिया है. अब नीति निर्माता इस ओर इशारा कर रहे हैं कि कंपनियों के भारी भरकम मुनाफे भी कीमतों में बढ़ोत्तरी के जिम्मेदार हैं. क्या सरकारें दखल देंगी?सप्लाई चेन की बाधाओं और यूक्रेन की लड़ाई ने महंगाई को भड़का दिया है. अब नीति निर्माता इस ओर इशारा कर रहे हैं कि कंपनियों के भारी भरकम मुनाफे भी कीमतों में बढ़ोत्तरी के जिम्मेदार हैं. क्या सरकारें दखल देंगी?
जब फरवरी में प्रमुख तेल कंपनियों ने रिकॉर्ड कमाई का ऐलान किया तो अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन भी स्तंभित हो उठे थे. व्हाइट हाउस ने कहा कि ये "बेहद अपमानजनक" है कि एक्सनमोबिल कंपनी ने 2022 में 56 अरब डॉलर का मुनाफा कमाया था जबकि उपभोक्ता, दशकों में पहली बार इतनी भीषण महंगाई से जूझ रहे थे.
आम लोग परेशान लेकिन तेल कंपनियां इतने मुनाफे में कैसे ?
यूरोप के शीर्ष नीति निर्माताओं ने भी इस मुद्दे पर मुखरता दिखाते हुए ऊर्जा कंपनियों पर टैक्स लाद दिए. भले ही यूरोजोन में कीमतों का दबाव इधर अपने रिकॉर्ड स्तरों से नीचे आ चुका है फिर भी ये जोन महंगाई दरों में भारी उछाल से अभी भी हांफ रहा है. यूरो क्षेत्र में पिछले साल मार्च में उपभोक्ता कीमतें 6.9 फीसदी हो गई थी. यूरोपीय सेंट्रल बैंक के 2 फीसदी के लक्ष्य से तीन गुना ज्यादा महंगाई दर थी.
क्यों बढ़ रही है महंगाई?
कोविड-19 महामारी के बाद अर्थव्यवस्था के दोबारा खुलने का नतीजा ये हुआ कि दबी हुई मांग उभर आई जबकि लॉकडाइउन से सप्लाई के अवरोध बने हुए थे. सप्लाई की दिक्कतों के साथ बढ़ी हुई मांग ने मुद्रास्फीति को भड़का दिया. यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद उपभोक्ता कीमतों में और उछाल आया जिससे ऊर्जा और खाद्य कीमतें आसमान छूने लगीं.
अर्थव्यवस्था के दोबारा पटरी पर आने का असर बड़े पैमाने पर कम हो चुका है और सप्लाई के अवरोध भी छंटने लगे हैं, लेकिन मुद्रास्फीति अभी भी नीचे उतरने का नाम नहीं ले रही.
रिपोर्ट :74 फीसदी भारतीय अपनी व्यक्तिगत वित्तीय स्थिति को लेकर चिंतित
नीति निर्माताओं को चिंता है कि बढ़े हुए मुनाफे की इसमें बड़ी भूमिका हो सकती है. पिछले सप्ताह फ्रैंकफर्ट में एक सम्मेलन में ईसीबी के एक्सीक्यूटिव बोर्ड के सदस्य फाबियो पनेटा ने एक उल्लेखनीय चार्ट पेश किया. उसमें दिखाया गया कि यूरोजोन में कंपनियों का मुनाफा कैसे, वेतनों से ज्यादा तेजी से बढ़ा था.
पनेटा ने कहा, "कंपनियों के अवसरवादी व्यवहार से, मूलभूत मुद्रास्फीति (महंगाई दर) की गिरावट में भी देरी आ सकती है. हमें इस जोखिम को भी देखना चाहिए कि मुनाफा-मूल्य स्पाइरल, महंगाई दर को और सुदृढ़ बना सकता है." वेज-प्राइस स्पाइरल से जुड़े खौफ पर उन्होने खासतौर पर जोर दिया.
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यूरोप में उपभोक्ता सामान की कंपनियों ने 2022 में 10.7 फीसदी की औसत से ऑपरेटिंग मार्जिन कमाया था. महामारी से पहले 2019 से ये एक चौथाई ज्यादा था.
मैसाच्यूट्स आमहर्स्ट यूनिवर्सिटी की इसाबेला वेबर ने डीडब्ल्यू को बताया, "कुछ खास सेक्टरों की कंपनियां महामारी के दौरान इमरजेंसी हालात का फायदा उठाने में इस कदर सक्षम हो गईं जैसा सामान्य दिनों में मुमकिन नहीं होता."
डेका बैंक में चीफ इकोनॉमिस्ट उलरीष केटर कहते हैं कि महामारी और युद्ध के दौरान अनिश्चितता के कोहरे के चलते ही कंपनियों ने कीमतों में इजाफा किया था. उन्होंने डीडब्यू से कहा, "आप एक सेफ्टी मार्जिन लागू करना चाहते हैं ताकि बाद में कीमतों में बढ़ोत्तरी तले आप दब न जाएं."
बढ़ता मुनाफा घटती पगार
अमेरिका में कंपनियां दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से सबसे ऊंचा मुनाफा कमा रही हैं. वेबर के एक हालिया अध्ययन में ये पता चला है. ऊर्जा कीमतों पर जर्मन सरकार के नियंत्रण के पीछे वेबर का दिमाग ही था.
मार्च में एक ब्लॉग में ईसीबी के अर्थशास्त्रियों ने लिखा कि यूरोप में, "घरेलू कीमतों के दबाव पर मुनाफों का प्रभाव ऐतिहासिक नजरिए से अभूतपूर्व ही रहा है." ईसीबी गणनाओं के मुताबिक खासतौर पर कृषि, उत्पादन, व्यापार, परिवहन, खाद्य, खनन और उपयोगी सेवाओं में हासिल मुनाफे ने वेतन वृद्धि को पीछे छोड़ दिया.
मुद्रास्फीति को बढ़ाते हालिया मुनाफों पर नजर रखते हुए वेबर ने कहा कि सप्लाई चेन के अवरोधों ने प्रतिस्पर्धी डायनेमिक्स को भी पलट दिया है. आमतौर पर, कोई कंपनी ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए कीमतें बढ़ाती है तो ग्राहक दूसरे सप्लायरों की ओर मुड़ जाते हैं. लेकिन वेबर के मुताबिक, "अगर सभी प्रतिस्पर्धी ये जानते हैं कि प्रतिस्पर्धा उनके अपने कस्टमर बेस के काम नहीं आ सकती तो मूल्य वृद्धि से मार्केट शेयर में नुकसान का खतरा नहीं है जो कि यूं संभव हो सकता था."
क्या भविष्य में महंगाई कम होगी?
ईसीबी का अनुमान है कि यूरोजोन में उच्च मुद्रास्फीति आखिरकार नीचे आ जाएगी. 2025 तक मूल्य-वृद्धि में 2 फीसदी तक गिरावट आ सकती है. केटर कहते हैं, "ये सही है कि मुनाफों में वेतन की अपेक्षा ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आगे भी यही सिलसिला बना रहेगा."
वेबर के मुताबिक कीमतें तय करने की कंपनियों की योग्यता सवालों के घेरे में है और उसका परीक्षण किया जाना चाहिए. उनकी राय है कि कीमतों में अत्यधिक वृद्धि को सीमित करने वाले कानून- जैसे कि न्यूयॉर्क में कीमतों को झटका देने वाले कानून को बहाल करने का प्रस्ताव है- समाधान का हिस्सा हो सकते हैं. नियमों के तहत, कंपनियों को संकट का फायदा उठाकर जरूरी सामान की अत्यधिक कीमत नहीं वसूल कर सकतीं.
केटर बताते हैं कि इसके अलावा अगर बाजार में वर्चस्व बनाने का संदेह जाहिर होता है तो एंटीट्रस्ट अधिकारी कीमतों में गड़बड़ी की जांच कर सकते हैं.
बुधवार को जर्मन सरकार ने अपनी एंटीट्रस्ट एजेंसी को मजबूत बनाने का विकल्प चुना. पिछले साल जब ईंधन की कीमतें बहुत ज्यादा बढ़ी, तभी अर्थव्यवस्था मंत्री रॉबर्ट हाबेक ने ये कार्रवाई शुरू कर दी थी.