इस्लामाबाद: नए पाकिस्तान निर्माण का नारा देकर देश की सत्ता हासिल करने वाले पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के चीफ इमरान खान पर मीडिया संस्थानों को दबाने का आरोप लगा है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान पर उनके ही देश के पत्रकारों ने कई गंभीर आरोप लगाए है. इसी के चलते कई पत्रकारों ने पाकिस्तानी संसद के बाहर पकौड़े तलकर विरोध जताया है. दरअसल पाकिस्तान में इन दिनों पैसे की कमी के चलते पत्रकारों को नौकरी से निकाला जा रहा है.
स्थानीय मीडिया के मुताबिक इमरान सरकार की नीतियों के चलते मीडिया संस्थानों से पत्रकारों को निकला जा रहा है. डॉन न्यूज पेपर की रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान में इमरान की सत्ता में आने से पत्रकारों पर दबाव बढ़ा है. नवनिर्वाचित सरकार मीडिया संस्थानों पर नियंत्रण की कोशिश कर रही है. यहीं वजह है कि सरकर पाकिस्तान के कुछ भागों में मीडिया चैनलों का प्रसारण रोक रही है.
पत्रकारों ने इमरान सरकार पर आरोप लगाया कि उसने सरकारी विज्ञापनों के रूप में दी जा रही सब्सिडी को भी रोक दिया है. इसके चलते पत्रकारों को देर से वेतन मिल रहा है. हाल ही में कई पत्रकारों को नौकरी से भी निकाला गया है. इन्हीं निकाले गए पत्रकारों ने संसद भवन के सामने पकौड़े तले और उसे स्टाल लगाकर बेचा.
یہ ہے نیا پاکستان جہاں صحافی پارلیمنٹ ہاؤس کے باہر پکوڑے بیچ رہے ہیں منگل کو بلاول بھٹو زرداری نے صحافیوں کی جبری برطرفیوں کے خلاف احتجاج کے لئےپارلیمنٹ کے باہر لگائی گئی جرنلسٹ پکوڑا شاپ کا دورہ کیا اور صحافیوں کے ساتھ یکجہتی کا اظہار کیا pic.twitter.com/p6iLaY4nzR
— Hamid Mir (@HamidMirPAK) October 30, 2018
वहीं पाकिस्तान की विपक्षी पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) भी पत्रकारों के समर्थन में आ गई है. पीपीपी के मुखिया बिलावल भुट्टो पत्रकारों के समर्थन में पहुंचे. उन्होंने पत्रकारों से बात की और इस मामलें का निपटारा करने का भरोसा दिलाया. इस दौरान भुट्टो ने देश में हो रहे पत्रकारों पर हमले की निंदा की.
इससे पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की पूर्व पत्नी व पत्रकार रेहम खान ने शनिवार को कहा कि पाकिस्तान में लोकतंत्र नाम की कोई चीज नहीं है और देश को सेना चला रही है. उन्होंने कहा, 'यह किस तरह का लोकतंत्र है, जिसमें बिना लोगों से पूछे, बिना उनका सुझाव लिए, बिना संसद को विश्वास में लिए फैसले किए जा रहे हैं. यह तो लोकतंत्र नहीं है. मेरा मानना है कि उन्हें यह स्वीकार करना चाहिए कि पाकिस्तान में खुल्लम-खुल्ला सैनिक शासन है.'