लंबी दूरी की उड़ानों को नहीं देनी होगी गैर-सीओटू उत्सर्जन की जानकारी!
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

यूरोपीय संघ (ईयू) विमानों से होने वाले उत्सर्जन की निगरानी के लिए नए नियम लागू करेगा. खबरों के मुताबिक, शुरुआती दौर में लंबी दूरी की उड़ानों को छूट मिल सकती है.यूरोपीय आयोग लंबी दूरी की उड़ानों को गैर-सीओटू उत्सर्जन की निगरानी से जुड़े नियमों में शुरुआती छूट देने की योजना बना रहा है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने कुछ कागजात के हवाले से यह जानकारी दी है. अंतरराष्ट्रीय विमानन कंपनियां इसके लिए जोर डाल रही थीं.

यूरोपीय संघ (ईयू) की योजना के तहत, जनवरी 2025 से विमान कंपनियों को जलवायु परिवर्तन में अपने योगदान का हिसाब रखना होगा और इसकी जानकारी देनी होगी. इसमें कार्बन डाई ऑक्साइड (सीओटू) के साथ-साथ कालिख, नाइट्रोजन ऑक्साइड और वाष्प भी शामिल है. यूरोपीय संघ के विमानन सुरक्षा प्राधिकरण के मुताबिक, विमान कंपनियों के गैर-सीओटू उत्सर्जन भी ग्लोबल वॉर्मिंग में उनके सीओटू उत्सर्जन जितना ही योगदान देते हैं.

क्या हो सकते हैं नए नियम?

आयोग ने नए नियमों के प्रस्ताव का जो मसौदा तैयार किया है, उसमें अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को उत्सर्जन की जानकारी देने वाले नियमों से दो साल तक के लिए छूट मिल सकती है. ईयू की परिभाषा में अंतरराष्ट्रीय उड़ानें वे हैं, जो किसी गैर-यूरोपीय जगह से उड़ान भर रही हों या वहां जा रही हों. उत्सर्जन की जानकारी देने वाले नियम 2027 तक सिर्फ यूरोप के भीतर उड़ने वाले विमानों पर लागू होंगे.

रॉयटर्स के मुताबिक इस मसौदे में लिखा है, "यूरोपीय आर्थिक क्षेत्र में बने सिर्फ दो हवाई अड्डों से जुड़ी उड़ानों के मामले में इन चीजों की जानकारी देना जरूरी होगा." साथ ही, यूरोपीय आर्थिक क्षेत्र से स्विट्जरलैंड या ब्रिटेन जाने वाली उड़ानें भी इसके दायरे में आएंगी.

मसौदे में इस छूट का कोई तर्क नहीं दिया गया है. यह छूट ईयू के मौजूदा नियमों जैसी ही है, जिसमें विमान कंपनियों को यूरोप के भीतर की उड़ानों से होने वाले कार्बन उत्सर्जन की जानकारी देनी होती है और शुल्क चुकाना होता है. हालांकि, 2026 में इन नियमों का पुनर्मूल्यांकन होना है.

विमानन क्षेत्र में क्या हैं सुर?

नए प्रस्तावित नियमों से विमानन उद्योग दोफाड़ हो गया है. लॉबी समूह 'इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट असोसिएशन' (आईएटीए) लंबी दूरी की उड़ानों के मामले में छूट की मांग कर रहा है. वहीं रायनएयर, ईजीजेट और विज एयर जैसी यूरोप की किफायती विमान कंपनियां सभी उड़ानों को इन नियमों के दायरे में लाने की मांग कर रही हैं.

ईयू के सदस्य देशों की सरकारों को भेजे गए अपने साझा बयान में इन विमान कंपनियनों ने लिखा है, "यूरोपीय आर्थिक क्षेत्र से बाहर जाने वाली उड़ानों को पूरी तरह बाहर करने से ऐसी भ्रामक धारणा बनेगी कि इन उड़ानों से पर्यावरण पर कोई गैर-सीओटू प्रभाव नहीं पड़ता है. इससे भविष्य में गैर-सीओटू उत्सर्जन घटाने के सभी उपायों को गलत दिशा मिलेगी."

आईएटीए ने कहा है कि अभी किसी उड़ान के गैर-सीओटू उत्सर्जन की सटीक निगरानी करना संभव नहीं है और ईयू की उत्सर्जन की निगरानी स्वैच्छिक होनी चाहिए और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को इससे छूट मिलनी चाहिए.

आईएटीए के डायरेक्टर जनरल विली वाल्श ने अप्रैल में यूरोपीय आयोग को एक पत्र में लिखा था, "ईयू से इतर अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए दायरे के विस्तार का कोई भी इरादा कानूनी चिंताओं को जन्म देगा."

यूरोपीय आयोग की ओर से अभी इस पर कोई बयान नहीं आया है.

विमानन क्षेत्र में विस्तार की संभावना

शोध और आंकड़े बताते हैं कि हवाई यात्रा सबसे ज्यादा कार्बन-उत्सर्जन वाली गतिविधियों में से एक है. वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में विमानों की हिस्सेदारी 2.5 फीसदी है, लेकिन ग्लोबल वॉर्मिंग के इजाफे में इनकी हिस्सेदारी चार फीसदी है. अब हर कोई तो हवाई यात्रा करता नहीं है.

आंकड़े बताते हैं कि अभी दुनिया के सिर्फ 10 फीसदी लोग हवाई यात्रा करते हैं. लेकिन जैसे-जैसे लोगों की आय और खर्च की क्षमता बढ़ेगी, वैसे-वैसे हवाई यात्राओं से होने वाला उत्सर्जन और ग्लोबल वॉर्मिंग और बढ़ेगी. यह प्रकृति और पर्यावरण पर खौफनाक असर डालेगा.

1990 से 2019 के आंकड़ों की तुलना करें, तो यात्री और भाड़ा, दोनों की मांग चार गुनी हो चुकी है. अब ज्यादा लोग उड़ानें भर रहे हैं और ज्यादा माल दुनिया में यहां से वहां ले जाया जा रहा है. 2019 में तो कुल आठ ट्रिलियन किलोमीटर हवाई यात्रा की गई, जो लगभग एक प्रकाश वर्ष जितनी दूरी है.

तकनीकी बेहतरी की जरूरत

एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि 1990 से अब तक ईंधन की किफायत तो दोगुनी से भी ज्यादा हुई है, लेकिन हर यूनिट से होने वाला कार्बन उत्सर्जन अब भी उतना ही है. 1990 में एक यात्री की प्रति किलोमीटर की उड़ान में 2.9 मेगाजूल्स ऊर्जा खर्च होती थी. 2019 में यह आधी से ज्यादा घटकर 1.3 मेगाजूल पर आ चुकी है. ऐसा बेहतर डिजाइन, उन्नत तकनीक और बड़े विमानों से मुमकिन हुआ है.

अब ईंधन की हर यूनिट से होने वाला उत्सर्जन इसलिए नहीं घटा है, क्योंकि आज भी वही स्टैंडर्ड जेट फ्यूल इस्तेमाल किया जा रहा है, जो 1990 में किया जा रहा था. यह ईंधन और ज्यादा साफ नहीं हुआ है. बायोफ्यूल और इसके जैसे ही अन्य विकल्प बड़े-छोटे पैमाने पर इस्तेमाल हो रहे हैं.

वीएस/एसएम (रॉयटर्स)