क्या अब फिर से साइज जीरो का दौर लौट आया है?

अमेरिकी गायिका एरियाना ग्रांडे ने बॉडी पॉजिटिविटी पर बात करते हुए लोगों से कहा है कि वे किसी अन्य व्यक्ति के शरीर और लुक को लेकर कोई टिप्पणी न करें.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

अमेरिकी गायिका एरियाना ग्रांडे ने बॉडी पॉजिटिविटी पर बात करते हुए लोगों से कहा है कि वे किसी अन्य व्यक्ति के शरीर और लुक को लेकर कोई टिप्पणी न करें.गायिका एरियाना ग्रांडे ने बीते मंगलवार को टिक टॉक पर उन लोगों पर निशाना साधा जो दूसरे लोगों के शरीर और रंग-रूप पर टिप्पणी करते हैं. उन्होंने कहा, "हमें दूसरे लोगों के शरीर को लेकर सभ्य तरीके से टिप्पणी करनी चाहिए, चाहे वे कैसे भी दिखते हों. किसी की तारीफ करने के अलग-अलग तरीके होते हैं.”

उन्होंने कहा, "अगर आपको कोई चीज नहीं पसंद है, तो उसे नजरअंदाज करने के भी कई तरीके होते हैं. मुझे लगता है कि हमें एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए. हमारा लक्ष्य यह होना चाहिए कि हम खुद भी सुरक्षित रहें और दूसरों को भी सुरक्षित रखें.” ग्रांडे ने यह भी कहा कि स्वस्थ और सुंदर दिखने के कई अलग-अलग तरीके होते हैं.

एरियाना ग्रांडे के साथ-साथ लिजो और मेघन ट्रेनर जैसी अन्य गायिकाएं भी किसी के शरीर को लेकर सकारात्मक रवैया अपनाने की बात करती हैं, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या समाज वाकई में हाल के वर्षों में सौंदर्य के नए मानदंडों को अपनाने के करीब पहुंच गया है?

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अलग-अलग मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, इस साल पेरिस फैशन वीक में दुबली-पतली मॉडलों की संख्या काफी ज्यादा थी. ‘वोग बिजनेस' ने पाया कि न्यूयॉर्क, लंदन, मिलान और पेरिस में हाल में हुए रैंप शो में शामिल हुई 95.6 फीसदी मॉडल कथित तौर पर स्ट्रेट-साइज मॉडल थीं, जो अमेरिकी साइज 0-4 से मैच करती हैं. जबकि, एक अमेरिकी महिला का औसत साइज मौजूदा समय में 16 से 18 के बीच है.

आखिर में सवाल यह उठता है कि बॉडी पॉजिटिविटी की अवधारणा का क्या हुआ, जिसके तहत सभी तरह के शरीरों की स्वीकृति को बढ़ावा देने की बात की जाती है.

सभी साइज के शरीर की स्वीकृति पिछले कुछ वर्षों में फैशन डिजाइनरों की अवधारणाओं का हिस्सा लगती थी. इसके तहत प्लस साइज वाली मॉडल ने भी रैंप पर कैटवॉक करते हुए जश्न मनाया था. उदाहरण के लिए, जीन-पॉल गॉटियर ने अपने परफ्यूम ला बेले फ्लेर टेरिबल के प्रमोशन के लिए मॉडल और डीजे बारबरा बुच को चुना था. बारबरा बुच एक समलैंगिक कार्यकर्ता हैं. साथ ही, वह मोटापे से ग्रसित लोगों को समाज में सम्मान दिलाने के लिए अभियान चलाती हैं.

बॉडी पॉजिटिविटी की शुरुआत कैसे हुई

जर्मन लेखिका एलिजाबेथ लेसनर ने इसी विषय पर ‘रॉयट, डोंट डायट!' नामक किताब लिखी है. उनके मुताबिक, बॉडी पॉजिटिविटी को अक्सर हाल में सोशल मीडिया पर शुरू हुई घटना के तौर पर माना जाता है. हालांकि, यह घटना काफी पुरानी है. इसकी जड़ें अमेरिका में 1960 और 1970 के दशक में हुई नारीवादी आंदोलन से जुड़ी हुई हैं.

नारीवादी आंदोलन से जुड़ी कार्यकर्ता दशकों से सुंदरता के पारंपरिक मानदंडों का विरोध कर रही हैं. 1967 में कई सारे लोग न्यूयॉर्क में प्रदर्शन के लिए इकट्ठा हुए. उन्होंने केक खाया और डायट से जुड़े निर्देशों पर प्रतिबंध लगाने की वकालत की.

लेसनर ने डीडब्ल्यू को बताया, "यह प्रदर्शन खुद से प्यार करने को लेकर नहीं था, बल्कि यह मोटे लोगों के साथ उचित बर्ताव करने की मांग को लेकर था. प्रदर्शन करने वालों ने कई ठोस राजनीतिक मांगें की, जैसे कि मोटे लोगों के साथ अस्पताल में गलत व्यवहार न किया जाए, क्योंकि सभी चीजों का दोष उनके वजन पर लगा दिया जाता है जिसके घातक परिणाम हो सकते हैं. इसके अलावा, ऐसे लोगों के साथ कहीं भी भेदभाव न किया जाए, जैसे कि नौकरी या घर देने की बात हो या फिर डेटिंग के समय या अन्य क्षेत्रों से जुड़ा कोई मामला. वह वाकई में सामाजिक ढांचे की आलोचना थी.”

विज्ञापन देने वाली कंपनियों को पसंद है स्टैंडर्ड शरीर

सभी तरह के शरीर को समाज में स्वीकृति दिलाने की मांग करने वाले कार्यकर्ता यह पाते हैं कि अमेरिका और यूरोप में जीरो साइज के मॉडल को कैटवॉक के लिए ज्यादा तरजीह दी जाती है. इसका मतलब है कि बॉडी पॉजिटिविटी को तवज्जो नहीं दी जाती.

लेसनर का मानना है कि इस मामले में सोशल मीडिया को भी दोषी माना जाना चाहिए, क्योंकि यह राजनीतिक प्रतिरोध को बढ़ावा देने की जगह लाभ को ज्यादा प्राथमिकता देता है.

वह कहती हैं, "ऑनलाइन प्लैटफॉर्म को चलाने वाली कंपनियां भी विज्ञापन वाले उत्पादों को बेचने के लिए उसी तरह के स्टैंडर्ड साइज वाले शरीर की मांग करती हैं. यह पूरी तरह से अनियमित बाजार है. यही कारण है कि उन ‘पूंजीवादी' प्लैटफॉर्म पर चले आ रहे ट्रेंड का विरोध करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने में समस्या आती है.

बॉडी पॉजिटिविटी कार्यकर्ता लिजो ने भी बताया कि उन लोगों के बीच भी विविधता की कमी है जो रंग, रूप, साइज, लिंग वगैरह को नजरअंदाज करते हुए सबको साथ लेकर चलने का दावा करते हैं. इसकी वजह यह है कि बॉडी पॉजिटिविटी की बात करने वाले कथित प्रभावशाली लोगों में ज्यादातर गोरी और पतली महिलाएं हैं. जबकि गहरे रंग वाली महिलाओं और पुरुषों का प्रतिनिधित्व बेहद कम है.

हालांकि, इस क्षेत्र में अभी सुधार की काफी गुंजाइश है, लेकिन लिजो जैसी बॉडी पॉजिटिविटी कार्यकर्ता की पूरी दुनिया में लोकप्रियता इस बात का संकेत है कि लोगों की मानसिकता में बदलाव हो रहा है.

लेसनर भी कहती हैं कि जब वह बड़ी हो रही थीं, तब अन्य तरह के शरीरों के लिए कोई रोल मॉडल मौजूद नहीं थीं. अब हालात काफी बदल गए हैं.

बॉडी पॉजिटिविटी का क्या असर होता है?

कई अध्ययनों से यह बात साबित होती है कि बॉडी पॉजिटिविटी का मानसिक स्वास्थ्य और आत्म सम्मान पर सकारात्मक असर पड़ता है. अब बीच का रास्ता भी लोकप्रिय हो रहा है. लोग अपने शरीर की विशेषता और कमियों को स्वीकार कर रहे हैं और उसका सम्मान कर रहे हैं.

डच थिंक टैंक फ्रीडमलैब की दर्शनशास्त्री जेसिका वॉन डेयर शल्क ने 2018 के एक लेख में इस अवधारणा पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि यह संभव है कि न तो हम अपने शरीर से प्रेम करें और न ही घृणा करें. अपने शरीर को लेकर ज्यादा चिंता न करें. उनके विचार से, जब कोई व्यक्ति अपने शरीर से प्यार करता है, तो उसका आत्म-सम्मान उसके दिखावे से काफी ज्यादा जुड़ जाता है. ऐसे में अगर वह अपने शरीर के हर पहलू से प्यार करने में नाकाम रहता है, तो अंत में खुद को ही दोषी मान सकता है.

एंग्लिया रस्किन विश्वविद्यालय में सामाजिक मनोविज्ञान के प्रोफेसर वीरेन स्वामी ने ‘द कन्वर्सेशन' में लिखा, "शरीर को लेकर सामान्य व्यवहार अपनाने से दिखावे पर ज्यादा जोर देने की जरूरत नहीं होती है. इससे हम उन सभी चीजों की बेहतर सराहना कर पाते हैं जिसे हमारा शरीर करने में सक्षम है.”

विज्ञान में, ‘शरीर की कार्य क्षमता' शब्द का इस्तेमाल उन सभी चीजों के लिए किया जाता है जिसे कोई शरीर कर सकता है. सभी प्रकार की शारीरिक गतिविधियां लोगों के आत्म-सम्मान को मजबूत करती हैं और उन्हें यह समझने में मदद करती हैं कि उनका शरीर क्या कर सकता है.

वॉन डेयर शल्क ने भी अपने लेख में लिखा है कि शरीर को लेकर सामान्य व्यवहार अपनाने का मुख्य ‘नकारात्मक पक्ष' यह है कि अगर लोगों की सजने-संवरने की रुचि खत्म हो जाती है, तो सोशल मीडिया के साथ-साथ फैशन और सौंदर्य कंपनियों के लिए उन्हें भुनाना कठिन हो जाएगा. हालांकि, जब तक बड़े स्तर पर हर तरह के शरीर की स्वीकृति नहीं मिल जाती, तब तक दुबली-पतली मॉडल की लोकप्रियता बनी रहेगी. फैशन डिजाइनर और पत्रिकाओं को पता है कि वे शरीर के साइज को ही बेचते हैं.

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