जर्मनी के विरोध के बावजूद चीनी इलेक्ट्रिक वाहनों पर टैरिफ लगाने का प्रस्ताव यूरोपीय संघ में पारित हो गया. कई विशेषज्ञ इसे जर्मनी के प्रभाव में कमी का संकेत मानते हैं.जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स यूरोपीय संघ के चीनी इलेक्ट्रिक वाहनों पर टैरिफ लगाने के खिलाफ थे. इसके बावजूद यूरोपीय संघ के अधिकतर सदस्य देशों ने इसके पक्ष में मतदान किया. बहुत से विशेषज्ञ इसे जर्मनी के संघ पर घटते प्रभाव के रूप में देखते हैं.
जर्मनी समेत यूरोपीय संघ के सिर्फ पांच सदस्यों ने टैरिफ का विरोध किया. जर्मन सरकार पर अपनी कार कंपनियों का दबाव है क्योंकि जर्मन वाहन निर्माता अपनी लगभग एक-तिहाई बिक्री के लिए चीन पर निर्भर हैं. इसलिए, जर्मनी चीन के साथ रिश्ते बिगाड़ने से परहेज कर रहा है और व्यापारिक संतुलन बनाने की कोशिश में है.
जर्मन ऑटो इंडस्ट्री कई मामलों में चीन पर काफी निर्भर है और उनके निवेशी हित भी हैं. जर्मनी की बड़ी कार कंपनियों ने ईयू द्वारा एलान किए गए अतिरिक्त शुल्क का विरोध भी किया. लेकिन प्रस्ताव पारित हो जाने के बाद यूरोपीय आयोग इस महीने के आखिर तक चीनी वाहनों पर सब्सिडी विरोधी टैक्स लगाने के लिए तैयार है. इसके बदले में चीन की कार्रवाई भी संभव है.
जर्मनी का घटता प्रभाव
यूरोपीय संघ पर जर्मनी के प्रभाव में कितना बड़ा अंतर आया है, यह 2013 की स्थिति से तुलना करने पर साफ दिखाई देता है. उस समय यूरोपीय संघ चीनी सोलर पैनलों पर टैरिफ लगाना चाहता था. जुलाई 2013 में तत्कालीन जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने अपने यूरोपीय सहयोगियों से बातचीत की. उन्होंने यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष होजे मानुअल बारोसो से भी बातचीत की और ईयू ने चीनी सोलर पैनलों पर टैरिफ लगाने का प्रस्ताव रद्द कर दिया. इसके बजाय न्यूनतम कीमतों पर एक समझौता हुआ था.
मैर्केल के 16 वर्षों के कार्यकाल के दौरान यूरोपीय संघ को एकजुट रखने में जर्मनी कामयाब रहा था. तब जर्मन उद्योग तेजी से बढ़ रहा था. अब देश के उद्योग संघर्ष कर रहे हैं और अर्थव्यवस्था लगातार दूसरे साल की आर्थिक मंदी की ओर बढ़ रही है. इसके अलावा, अब जर्मनी में तीन पार्टियों के गठबंधन की सरकार है जिसके लिए 2025 में होने वाले केंद्रीय चुनाव से पहले घरेलू राजनीति की अहमियत ज्यादा है.
सरकार के गठबंधन की अंदरूनी कलह से ब्रसेल्स में काम कर रहे जर्मन कूटनीतिज्ञों में निराशा है. उन्हें लगता है कि ये मतभेद यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के असर और संघ की एकता को कमजोर कर रहे हैं. यूरोपीय संघ ने चीन के साथ इलेक्ट्रिक वाहनों के टैरिफ पर समझौते की संभावना को जारी रखने का वादा किया है, लेकिन जर्मनी के विरोध ने उसकी स्थिति को कमजोर कर दिया है.
विश्लेषकों के संगठन ‘यूरो इंटेलिजेंस' का कहना है कि जर्मनी और यूरोपीय संघ के अन्य सदस्यों के बीच यह विभाजन उस कोशिश को कमजोर करता है, जिसमें विदेशी दबाव के खिलाफ एकजुट दिखने की बात थी.
लेकिन जर्मन सरकार के गठबंधन में शामिल पार्टियां ही इस बात पर एकमत नहीं हो पा रही हैं कि चीन पर टैरिफ का विरोध किया जाए या नहीं. सरकार में शामिल ग्रीन पार्टी के नेतृत्व वाले जर्मन विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ईयू को बीजिंग को अनुचित और बाजार को नुकसान पहुंचाने वाले तरीकों का इस्तेमाल करने से रोकना चाहिए और टैरिफ को चर्चा से बाहर नहीं करना चाहिए.
उद्योग जगत पसोपेश में
इस पूरे मामले पर जर्मन उद्योग संघ (बीडीआई) ने एक संतुलित रुख अपनाया है. उसका कहना है कि बातचीत जारी रहनी चाहिए, लेकिन यदि शर्तें मानी जाती हैं तो आमतौर पर वह उद्योगों को सुरक्षा का समर्थन करते हैं. एक बयान में बीडीआई ने कहा, "चीन की हाइब्रिड अर्थव्यवस्था पार्टी-नियंत्रित है और उसके साथ नजदीकी आर्थिक संबंधों के आर्थिक और भू-राजनीतिक जोखिम हैं.”
यह पहली बार नहीं है जब विभाजित जर्मनी और उसके यूरोपीय सहयोगियों के बीच मतभेद सामने आए हैं. मार्च में, जर्मनी की उद्योग समर्थक पार्टी फ्री डेमोक्रेट्स के विरोध के बावजूद यूरोपीय संघ ने सप्लाई चेन की जांच के लिए एक कानून को समर्थन दिया. जर्मनी ने इसके लिए मतदान नहीं किया था.
जर्मन सरकार ने इतालवी बैंक यूनीक्रेडिट के कॉमर्त्सबैंक के साथ विलय के प्रस्ताव का विरोध किया है, जिससे यूरोपीय सेंट्रल बैंक के नीति निर्माताओं में निराशा है. उनका मानना है कि जर्मनी यूरोपीय संघ में एक केंद्रीय बैंकिंग सिस्टम का समर्थन करता है लेकिन उसे प्रभावी बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय बैंकों का विलय जरूरी है.
हालांकि चीन के मामले में शॉल्त्स को हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान का समर्थन मिला. ओरबान ने चीनी इलेक्ट्रिक वाहनों पर संघ के टैरिफ को यूरोपीय और जर्मन ऑटो उद्योग के लिए एक "बड़ा झटका" बताया. ओरबान ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा, "जर्मनी और यूरोपीय उद्योग अब आयोग को व्यवहारिक रुख अपनाने के लिए नहीं मना सकते. तब कौन ऐसा कर सकता है?"
हालांकि, ओरबान को संघ की नीतियों में अड़ंगा डालने के लिए ज्यादा जाना जाता है. वह यूरोपीय संघ की एकता के वैसे समर्थक नहीं हैं जैसा कभी जर्मनी हुआ करता था.
जर्मनी के बिना कमजोर ईयू
सेंटर फॉर यूरोपीयन रिफॉर्म्स के उप-निदेशक याख मायर्स कहते हैं कि यह विवाद दर्शाता है कि जर्मनी अब ईयू की व्यापार नीति का नेतृत्व नहीं करता और फ्रांस का प्रभाव भी कम हो गया है. उन्होंने यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन के उस फैसले की मिसाल दी, जिसके तहत फ्रांसीसी आयुक्त थिएरी ब्रेटॉं को हटा दिया गया और उनके उत्तराधिकारी को कमतर जिम्मेदारी दी गई.
मायर्स कहते हैं कि डेर लेयेनचीन से संभावित जोखिम कम करना चाहती हैं और अमेरिका से नजदीकियां बढ़ाना चाहती हैं. लेकिन फ्रांस और जर्मनी के मार्गदर्शन के बिना यह संभव नहीं हो पाएगा और ऐसे में उन्हें एक-एक क्षेत्र के जरिए और अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों का पालन करते हुए ही ऐसा करना होगा.
रोडियम ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार नोआ बार्किन मानते हैं कि चीन पर टैरिफ के मामले में यूरोपीय संघ को भले ही जीत मिल गई हो लेकिन जर्मनी के समर्थन के बिना संघ चीन को लेकर ज्यादा सख्त नीति नहीं बना पाएगा. बार्किन ने कहा, "जब तक बर्लिन में संकीर्ण, अल्पकालिक प्राथमिकताएं प्रमुख रहेंगी, तब तक आयोग के लिए अपनी नई विदेशी आर्थिक नीति को आगे बढ़ाना मुश्किल होगा.”
वीके/सीके (रॉयटर्स, डीपीए)