अपने सामान पर कार्बन टैक्स लगाने के ईयू के प्रस्ताव को भारत के किया नामंजूर
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

यूरोपीय संघ का प्रस्ताव है कि भारत ज्यादा कार्बन उत्सर्जित करने वाले स्टील और सीमेंट जैसे अपने उत्पादों पर टैक्स लगाए, जिसे उसकी सीमा में आने पर ईयू ऑफसेट कर देगा. लेकिन भारत ने यह प्रस्ताव अस्वीकार किया है.भारत ने कार्बन उत्सर्जन करने वाले अपने उद्योगों पर ज्यादा टैक्स लगाने के यूरोपीय संघ (ईयू) के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, यूरोपीय संघ का प्रस्ताव था कि अगर ऐसे उद्योगों से तैयार उत्पाद उसकी सीमा में आते हैं तो वे इन्हें ऑफसेट करने यानी खुद कार्बन उत्सर्जन की अतिरिक्त कीमत चुकाने को तैयार है.

यूरोपीय कमीशन में टैक्स और कस्टम यूनियन मामलों के निदेशक गेरासिमोस थॉमस के नेतृत्व में एक यूरोपीय प्रतिनिधिमंडल ने 'कार्बन बॉर्डर अजस्टमेंट मैकेनिज्म' (सीबीएएम) का प्रस्ताव भारत को दिया था. इस पर रॉयटर्स से बात करते हुए भारत सरकार के आर्थिक मामलों के सचिव अजय सेठ ने कहा कि "उनका (ईयू) प्रस्ताव व्यावहारिक नहीं है. उनकी टीम आई और हमसे मिली है. जो तरीका वे सुझा रहे हैं, वह भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए काम का नहीं है."

नई दिल्ली ने इस मामले पर अपना रुख ईयू को साफ कर दिया है. भारत ने प्रस्तावित सीबीएएम को अनुचित और घरेलू बाजार की कीमतों के लिए नुकसानदायी बताया है.

ईयू ने 2023 में दुनिया का पहला ऐसा प्लान मंजूर किया था जिसमें ज्यादा कार्बन उत्सर्जन वाले उत्पादों जैसे स्टील, एल्यूमीनियम और सीमेंट के आयात पर अतिरिक्त कर लगाने की बात कही थी. नई नीति का लक्ष्य 2050 तक नेट-जीरो ग्रीनहाउस उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करना है.

यूरोपीय संघ के कार्बन टैक्स का विरोध क्यों

जुलाई की शुरुआत में ईयू ने कहा था कि भारत से तकनीकी स्तर पर बातचीत चल रही है. चीन, दक्षिण अफ्रीका और भारत सरीखे देशों ने सीबीएएम का विरोध किया है. यूरोपीय संघ की कोशिश है कि इन देशों के साथ इस मैकेनिज्म पर सहमति बनाई जा सके.

यूरोपीय आयोग ने भारत से कहा है कि कार्बन टैक्स के पीछे उनका प्राथमिक लक्ष्य राजस्व बढ़ाना नहीं, बल्कि ईयू के बाजार में ज्यादा हरित उत्पाद पहुंचाना है. यूरोपीय प्रतिनिधि मंडल के मुताबिक, भारत सप्लाई चेन की बेहतरी के लिए खर्च करने और कर्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए अपना कार्बन टैक्स लगा सकता है और यूरोपीय संघ के बाजार में अपनी मौजूदगी बनाए रख सकता है.

वहीं सेठ के मुताबिक, स्टील इंडस्ट्री को हरित बनाने के लिए अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा खर्च होगा. उन्होंने कहा "हमारे यहां आमदनी यूरोप के मुकाबले 20 गुना कम है. क्या हम ऊंचे दाम सह सकते हैं? नहीं."

अगर यह मानकर चलें कि भारत उच्च-कार्बन उत्सर्जन वाले घरेलू उत्पादों पर भारत में टैक्स नहीं लगाता है, तो ऐसे में 1 जनवरी 2026 के बाद से ईयू, स्टील और एल्यूमीनियम से जुड़ी शिपमेंट पर कम से कम 20 से 35 प्रतिशत तक टैक्स लगाएगा.

कार्बन टैक्स का असर भारत-ईयू मुक्त व्यापार पर

जानकार मानते हैं कि कार्बन उत्सर्जन पर बना यह गतिरोध मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर जारी बातचीत में खलल डाल सकता है. दिल्ली स्थित ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव थिंक टैंक के संस्थापक अजय श्रीवास्तव के मुताबिक, "ऐसे में जब भारत, ईयू के साथ एफटीए के लिए बातचीत कर रहा है तो उसे ऐसी स्थिति के लिए तैयार रहना होगा जहां भारतीय उत्पादों पर यूरोप में 20-35 प्रतिशत कर कार्बन टैक्स (सीबीएएम) लगेगा और उनके उत्पाद भारत में ड्यूटी फ्री रहेंगे."

ईयू भारत के लिए दूसरा बड़ा एक्सपोर्ट ठिकाना है. 2023 में भारत ने करीब 100 बिलियन डॉलर से ज्यादा के उत्पाद यूरोपीय संघ में निर्यात किए.

अजय सेठ के मुताबिक, भारत चाहता है कि यूरोपीय संघ 2015 के पेरिस समझौते में तय नियमों पर बरकरार रहे, जिनके अनुसार भारत जैसे विकासशील देशों के उत्सर्जन घटाने के लक्ष्य विकसित देशों के मुकाबले लचीले हो सकते हैं.

थिंक टैंक 'एम्बर' के मुताबिक, 2022 में 632 ग्राम प्रति किलोवॉट घंटे की कार्बन इंटेंसिटी वाला भारत अक्षय ऊर्जा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है. साथ ही 2018 से अब तक कार्बन इंटेंसिटी में 3.5% प्रतिशत की गिरावट दर्ज कर चुका है. भारत ने 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन हासिल करने का लक्ष्य रखा है.

इकलौते ईयू के लिए हरित उत्पाद निर्यात करने से जुड़ी चुनौतियों पर सेठ कहते हैं, "हमारे पास अब करीब 170-180 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा है, लेकिन यह रात के वक्त उपलब्ध नहीं होती."

आरएस/ओएसजे (रॉयटर्स)