क्या जर्मन सरकार के गले की फांस बन गए हैं शरणार्थी?
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

जर्मनी की विपक्षी पार्टियां चाहती हैं कि शरण के अधिकार को खत्म किया जाए और शरणार्थियों को वापस भेजा जाए. पूर्वी जर्मनी में एएफडी को चुनावी बढ़त मिलने के बाद, सत्तारूढ़ गठबंधन की एक पार्टी भी ऐसी ही मांग उठा रही है.जर्मनी के सैक्सनी और थुरिंजिया राज्यों के विधानसभा चुनावों के एक दिन बाद फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी (एफडीपी) के प्रमुख क्रिश्टियान लिंडनर एक सार्वजनिक कार्यक्रम में आए. वे काफी निराश लग रहे थे. उन्होंने कहा, "लोग ऐसी सरकार से ऊब चुके हैं, जिसने शायद जर्मनी में आप्रवासन यानी इमिग्रेशन और शरण पर नियंत्रण खो दिया है.

उन्होंने आगे कहा कि अब किसी को भी दोष देने और यह समझाने में कोई दिलचस्पी नहीं है कि कानूनी रूप से क्या संभव नहीं है. केंद्र की सरकार में वित्त मंत्री के तौर पर काम कर रहे लिंडनर ने कहा कि लोग ‘अब समस्या का समाधान' चाहते हैं.

दरअसल, केंद्र की सरकार तीन पार्टियों वाली गठबंधन सरकार है. इसमें सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी), ग्रीन पार्टी और उदारवादी फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी (एफडीपी) शामिल हैं. पूर्वी जर्मनी के राज्यों में हाल के विधानसभा चुनावों के नतीजे इन तीनों पार्टियों के लिए काफी निराशाजनक हैं. इन चुनावों में धुर दक्षिणपंथी पार्टी ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) को इन तीनों पार्टियों के कुल वोट से दोगुने से अधिक वोट मिले हैं.

जर्मनी में 30 लाख से ज्यादा शरणार्थी

चुनाव के बाद के सर्वेक्षणों से पता चलता है कि शरण औरप्रवासन से जुड़े मुद्दों ने इन विधानसभा चुनावों पर काफी असर डाला. 2023 के अंत तक, जर्मनी में करीब 32 लाख लोग शरणार्थी के तौर पर रह रहे थे. इनमें 10 लाख से ज्यादा शरणार्थी यूक्रेन के हैं. वहीं, दूसरा सबसे बड़ा समूह सीरिया के लोगों का है.

संभावना जताई जा रही है कि 2,70,000 से ज्यादा लोग 2024 में शरण के लिए आवेदन करेंगे. शरण से जुड़े अधिकांश आवेदन खारिज कर दिए जाते हैं. 2023 के अंत तक, जर्मनी में सिर्फ 44,000 मान्यता प्राप्त शरणार्थी रह रहे थे. ज्यादातर लोगों को अस्थायी तौर पर सुरक्षा उपलब्ध कराई गई थी. जिनेवा शरणार्थी सम्मेलन के तहत लगभग 7,45,000 लोगों को शरणार्थी दर्जा दिया गया है. इसके अलावा, 3,26,000 लोगों को सिर्फ संरक्षण दिया गया है, क्योंकि उनके देश में युद्ध चल रहा है.

वर्तमान में शरण के लिए पांच लाख आवेदन लंबित हैं. गृह मंत्रालय के अनुसार, जर्मनी में करीब 2,27,000 लोगों को देश छोड़ने का आदेश दिया गया है. हालांकि, उनमें से 80 फीसदी लोगों के निर्वासन पर अस्थायी रुप से रोक लगा दी गई है, क्योंकि उन्हें देश से निकालने में कुछ समस्याएं आ रही हैं.

शरणार्थियों पर अपनी नीति से जूझने की तैयारी में जर्मनी

प्रवासन कानूनों को सख्त करना चाहती है केंद्र सरकार

जर्मनी के जोलिंगन शहर में 23 अगस्त को ‘फेस्टिवल ऑफ डाइवर्सिटी' नाम के उत्सव के दौरान चाकू से हुए हमले की घटना के बाद, केंद्र सरकार ने प्रवासन और सुरक्षा से जुड़ी नीतियों को सख्त बनाने की घोषणा की. यह घटना पूर्वी जर्मनी के राज्यों में हुए चुनाव से एक सप्ताह पहले की है.

संदिग्ध हमलावर 26 साल का सीरियाई युवक है. वह 2022 में जर्मनी आया और उसने शरण के लिए आवेदन दिया था. हमले के बाद उस युवक को देश छोड़ने का आदेश दिया गया है.

नीतिगत बदलावों के तहत, अगर यूरोपियन डब्लिन रेगुलेशन के मुताबिक यूरोपीय संघ का कोई अन्य देश शरणार्थियों के लिए कानूनी रूप से जिम्मेदार है, तो अब जर्मनी में शरण चाहने वाले ऐसे लोगों को आर्थिक मदद नहीं दी जाएगी. साथ ही, शरण की चाह रखने वाले लोगों को उन यूरोपीय देशों में वापस भेजे जाने की भी योजना है जहां वे सबसे पहले पहुंचे थे.

इसके अलावा, निर्वासन यानी देश से निकालने की प्रक्रिया को भी आसान बनाए जाने की योजना है. दरअसल, पहले सिर्फ किसी गंभीर अपराध में शामिल या संदिग्ध लोगों को ही देश से निकाला जाता था या उनके शरणार्थी दर्जे को खत्म कर दिया जाता था, लेकिन अब ऐसे अपराधों की सूची बढ़ाई जा सकती है. साथ ही, मोल्डोवा, केन्या, फिलीपींस सहित यूरोपीय संघ के बाहर के तीसरे देशों के साथ प्रवासन से जुड़े समझौते को खत्म किया जाना है.

हालांकि, जर्मन संसद के निचले सदन 'बुंडेस्टाग' में विपक्ष में बैठी क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक यूनियन (सीडीयू) और क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) का कहना है कि यह पर्याप्त नहीं है. चुनावों से पहले भी सीडीयू और सीएसयू, जर्मनी में शरण के अधिकार को समाप्त करने और शरणार्थियों को देश से बाहर निकालने की मांग कर रहे थे.

हाल में हुए विधानसभा चुनावों के बाद, सीडीयू नेता फ्रीडरिष मेर्त्स ने जोर देकर कहा कि पार्टी अपनी इस मांग पर ‘एक इंच भी पीछे नहीं हटेगी.' मेर्त्स ने कहा, "देश से पांच लोगों को निकाला जाता है और 100 नए लोग देश में आते हैं. केंद्रीय सत्तारूढ़ गठबंधन को अपनी नीतियों में मौलिक सुधार करना चाहिए, खासकर आप्रवासन से जुड़े मुद्दे पर.”

उधर सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी (एसपीडी) और ग्रीन पार्टी ने इस मांग को खारिज कर दिया है. एसपीडी की अध्यक्ष सास्किया एस्केन ने कहा कि ऐसे प्रस्ताव ‘हमारे संविधान के मुताबिक नहीं हैं.' हम अपने अंतरराष्ट्रीय और यूरोपीय कानूनी दायित्वों को नहीं तोड़ेंगे.

गठबंधन में ही बढ़ सकता है मतभेद

केंद्र की गठबंधन सरकार में शामिल एफडीपी पार्टी चीजों को अलग तरह से देखती है. पार्टी नेता लिंडनर ने राज्यों के चुनावों के अगले दिन कहा कि वह यूरोपीय कानूनों या यहां तक कि संविधान में बदलावों पर चर्चा करने के लिए तैयार है. साथ ही, वे विपक्षी सीडीयू और सीएसयू का खुलकर समर्थन कर रहे हैं.

उन्होंने ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी पार्टी की ओर इशारा करते हुए कहा कि अगर ‘केंद्र की लोकतांत्रिक पार्टियां' यानी सीडीयू, सीएसयू, एसपीडी, ग्रीन्स और एफडीपी काम नहीं कर पाती हैं, तो नागरिक नए विकल्प यानी ऑल्टरनेटिव की तलाश करेंगे.

यह जोलिंगन में हमले के बाद चांसलर ओलाफ शॉल्त्स (एसपीडी) द्वारा बुलाई गई केंद्र और राज्य सरकारों के द्विदलीय कार्य समूह के लिए एक चेतावनी थी. एसपीडी नेता एवं जर्मनी के आंतरिक मामलों की मंत्री नैंसी फेजर और एफडीपी नेता एवं न्याय मंत्री मार्को बुशमैन के नेतृत्व में कार्य समूह ने 3 सितंबर को अपनी पहली बैठक की.

केंद्र सरकार की सख्त प्रवासन और सुरक्षा नीतियों को लागू करने की योजना पर पहले से ही चर्चा चल रही है. हालांकि, आंतरिक मंत्रालय ने कहा कि यह समूह, सीडीयू, सीएसयू और अलग-अलग राज्यों के प्रस्तावों पर भी चर्चा करने के लिए तैयार है.

बहस का एक प्रमुख विषय यह है कि क्या शरणार्थियों को सीमा पार वापस भेजना कानूनी रूप से संभव है? सीडीयू नेता और वकील मेर्त्स का मानना है कि ऐसा करना संभव है. वे यूरोपीय संघ में आप्रवासियों के मुद्दे पर हुई रोपीय संघ की संधि के अनुच्छेद 72 का हवाला देते हैं. सीडीयू नेता के मुताबिक, यह तभी संभव है जब ‘हमारे देश की सुरक्षा और व्यवस्था की गारंटी नहीं दी जा सकती.'

मेर्त्स ने कहा, "फिलहाल, हमें यह दिख रहा है कि सरकार सही तरीके से अपना काम नहीं कर रही है. हम स्कूल, अस्पताल, डॉक्टरों के दफ्तर, और हाउसिंग मार्केट हर जगह यह स्थिति देख रहे हैं. हम इस स्थिति को जारी रखने की अनुमति नहीं दे सकते.”

क्या कानूनी रूप से संभव है?

कॉन्स्टेंस के संवैधानिक कानून विशेषज्ञ डैनियल थिम का मानना है कि मेर्त्स का प्रस्ताव ‘कानूनी रूप से स्वीकार्य है.' उन्होंने ‘फ्राकफुर्टर अलगेमाइने साइटुंग' अखबार से बातचीत में कहा कि इस तरह का दृष्टिकोण ना तो जर्मन संविधान का उल्लंघन करता है और ना ही जिनेवा शरणार्थी सम्मेलन का. हालांकि यूरोपीय न्यायालय में इसके खिलाफ सुनवाई हो सकती है. मेर्त्स का मानना है कि यह काफी हद तक संभव है कि जर्मनी वहां इस मामले में जीत जाए.

दूसरी ओर, प्रवास के मामलों पर शोध करने वाले ऑस्ट्रियाई शोधकर्ता गेराल्ड नॉस ने चेतावनी दी कि अगर जर्मनी प्रवासियों को अपने देश से बाहर निकालता है, तो उसे कई तरह के नतीजे देखने को मिल सकते हैं.

नॉस ने जर्मनी के पब्लिक ब्रॉडकास्टर जेडडीएफ से कहा, "ईयू कानून को निलंबित करना परमाणु बम की तरह असर करेगा. इससे ईयू में कई अन्य देश भी ऐसा ही करेंगे. हालांकि, बिना अनुमति के देश में रहने वाले लोगों के खिलाफ कुछ ना कुछ कदम उठाने की जरूरत है.”

उन्होंने कहा, "इसका तरीका यह नहीं होना चाहिए कि इन लोगों को ईयू के एक देश से दूसरे देश में भेजा जाए, बल्कि मुख्य ध्यान यूरोपीय संघ में अनाधिकृत प्रवास को कम करने पर होना चाहिए. उदाहरण के लिए, शरण चाहने वाले लोगों को यूरोपीय संघ से बाहर के सुरक्षित तीसरे देशों में भेजना चाहिए.