दूसरे विश्व युद्ध के बाद से विदेशी धरती पर जर्मनी की पहली स्थायी सैन्य तैनाती
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

जर्मनी ने अपनी एक बख्तरबंद ब्रिगेड, लिथुएनिया में बेलारूस के पास तैनात कर दी है. ब्रिगेड को लिथुएनिया नाम दिया गया है. लिथुएनिया की पूर्वी सीमा को नाटो का पूर्वी हिस्सा कहा जाता है.दूसरे विश्व युद्ध के बाद यह पहला मौका है जब जर्मनी, विदेशी धरती पर अपनी सेना स्थायी रूप से तैनात कर रहा है. बीते दशकों के सैन्य अभियानों के दौरान विदेशों में जर्मन सेना की अस्थायी तैनाती रही. लेकिन यह बड़ा बदलाव, यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद किया जा रहा है. जर्मनी की नई सरकार के गठबंधन समझौते में भी इसका जिक्र करते हुए लिखा गया है कि "लिथुएनिया में जर्मन ब्रिगेड की स्थायी तैनाती, नाटो के पूर्वी इलाके की रक्षा करेगी और वहां प्रतिरोधक की भूमिका भी निभाएगी."

लिथुएनिया ब्रिगेड 2027 तक पूरी तरह ऑपरेशनल हो जाएगी और तब वहां करीब 5,000 सैनिक तैनात रहेंगे.ब्रिगेड का मुख्यालय बेलारूस की सीमा के पास ही होगा.

गुरुवार को ब्रिगेड की आधिकारिक तैनाती के मौके पर जर्मनी के चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स और रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियुस लिथुएनिया पहुंचे. राजधानी विलनियुस में उनके सामने 800 जर्मन सैनिकों ने परेड निकाली.

यूरोप को "अपने सुकून से बाहर निकलने" की जरूरत

जर्मनी की नई सरकार ने साफ कर दिया है कि वह रूस के मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाएगी. जर्मन चांसलर कार्यालय के चीफ ऑफ स्टाफ थॉर्स्टन फ्राई ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स के साथ इंटरव्यू में कहा, "हमें अपने कंफर्टजोन से बाहर निकलना ही होगा और ऐसे कदम उठाने होंगे जो वास्तविक रूप से यथास्थिति के पार जाएं."

फ्राई से जब यह पूछा गया कि क्या इसका मतलब होगा कि यूरोप, रूसी गैस और यूरेनियम के आयात पर बैन लगा दे या फिर शिथिल की गई रूस की सरकारी संपत्तियों से फायदा उठाए? तो उन्होंने कहा, "ये सटीक रूप से बिल्कुल वही कदम हैं जो रूस को वाकई में तकलीफ पहुंचाएंगे और वैसा ही असर दिखाएंगे जैसा हम प्रतिबंधों से हासिल करना चाहते हैं."

हाल ही में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूरोपीय नेताओं की संघर्ष विराम की संयुक्त अपील को ठुकरा दिया. इसके बाद बर्लिन की लहजा सख्त होता दिख रहा है. फ्राई ने कहा, "अतीत में हम देख चुके हैं कि रूस मुख्य रूप से स्पष्ट भाषा ही स्वीकार करता और समझता है."

चांसलर मैर्त्स की पार्टी सीडीयू के नेता फ्राई ने यह भी कहा कि शांति बहाल करने में पुतिन की जरा भी दिलचस्पी नहीं है. बीते हफ्ते इस्तांबुल में यूक्रेन और रूस के अधिकारियों के बीच हुई शांति वार्ता के बावजूद वह यूक्रेन पर और भी तीखे हमले करने लगे हैं. जर्मन राजनेता के मुताबिक, यूक्रेन युद्ध को लेकर पुतिन के सैन्य इरादे बहुत स्पष्ट हैं, "जल्द शांति के लिए यह बहुत अच्छा माहौल नहीं है."

जर्मन चांसलरी के मंत्री फ्राई ने इस बात के संकेत भी दिए कि उनका देश यूक्रेन को दी जाने वाली सैन्य सहायता 7 अरब डॉलर से ज्यादा कर सकता है. कितनी ज्यादा, इसका जिक्र उन्होंने नहीं किया.

सैन्य सुपरपावर बनने की तैयारी में जर्मनी

मई 2025 में जर्मन चांसलर बनने वाले फ्रीडरिष मैर्त्स ने कहा कि कानूनी रूप से संभव हो तो जर्मनी और उसके साझेदारों को यूरोप में रूस की सरकारी संपत्तियों को जब्त करना चाहिए. मैर्त्स ने रूस से आने वाली ऊर्जा पर भी प्रतिबंध लगाने पर चर्चा करने की बात कही. अब फ्राई ने भी रूस से जर्मनी तक गैस पहुंचाने वाली नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन पर बैन लगाने की इच्छा जताई है.

मैर्त्स जर्मनी में यूरोप की सबसे ताकतवर सेना बनाने का एलान भी कर चुके हैं. संसद को संबोधित करते हुए मैर्त्स ने कहा कि सेना को वो सारे संसाधन दिए जाएंगे जिनकी मांग वह लंबे समय से करती आ रही है. जर्मन सेना में फिलहाल करीब 1,82,000 सैनिक हैं. देश के रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, 2031 तक इस संख्या को 2,03,000 करने की योजना है.

जर्मन सरकार, रक्षा पर जीडीपी का पांच फीसदी पैसा खर्च करने को भी तैयार हो चुकी है. नाटो के प्रस्ताव में सदस्य देशों से अपील की गई है कि वे 3.5 फीसदी रकम सैन्य तैयारियों पर और 1.5 फीसदी पैसा डिफेंस से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च करें.

जर्मनी, ब्रिटेन के साथ मिलकर लंबी दूरी तक मार करने वाले अत्याधुनिक हथियार कार्यक्रम की शुरुआत भी कर रहा है. दोनों देश जल्द ही संयुक्त रूप से इसका एलान करने वाले हैं.

इस बीच यूरोपीय संघ और ब्रिटेन ने मंगलवार (20 मई) को रूस के विरुद्ध नए प्रतिबंध लगाए हैं. इनके तहत, मॉस्को के ऑयल टैंकरों के "स्याह बेड़े" पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी. साथ ही रूस पर प्रतिबंधों का असर कम करने में मदद करने वाली कंपनियों पर भी सख्ती की जाएगी.