जर्मनी: क्यों अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही है ग्रीन पार्टी
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

जर्मनी की ग्रीन पार्टी अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही है. हालिया चुनावी हार के बाद पार्टी के कई नेताओं और प्रतिनिधियों ने इस्तीफा दे दिया. क्या जर्मनी के वाइस चांसलर और पार्टी के प्रमुख नेता रोबर्ट हाबेक इसे उबार सकेंगे?जर्मनी की ग्रीन पार्टी काफी मुश्किल दौर से गुजर रही है. इसके राजनीतिक विरोधी लगातार तीखे हमले कर रहे हैं. पार्टी के प्रमुख राजनेताओं को सोशल मीडिया पर तीखी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है.

एक तरफ जहां धुर-दक्षिणपंथी और लोकलुभावन पार्टियां इमिग्रेशन से जुड़ी सख्त नीतियां बनाने का वादा करके चुनाव जीतने पर जश्ना मना रही हैं, वहीं पर्यावरणविद् अपने प्रमुख मुद्दों, जैसे कि ऊर्जा के स्रोत में बदलाव और जलवायु संरक्षण को आगे बढ़ाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

हालांकि, ग्रीन पार्टी कई बार उतार-चढ़ाव के दौर से गुजर चुकी है. जब 1990 में जर्मनी का एकीकरण हुआ था, तब देश के लोग दोनों हिस्सों के शांतिपूर्ण तरीके से एक साथ आने को लेकर चिंतित थे और ग्रीन पार्टी पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना चाहती थी. इसका नतीजा यह हुआ कि उस साल के आम चुनाव में पार्टी को भारी असफलता का सामना करना पड़ा. पार्टी ने संसद के निचले सदन बुंडेस्टाग में अपना प्रतिनिधित्व लगभग खो दिया.

इसके बाद 1999 में ग्रीन पार्टी सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी) के साथ सरकार में थी, तो उसने अपनी पार्टी के विदेश मंत्री योशका फिशर का अनुसरण किया. पार्टी ने अपनी शांतिवादी परंपराओं से हटकर कोसोवो में नाटो मिशन में जर्मनी की भागीदारी का समर्थन किया. इस वजह से उस समय भी हजारों सदस्य पार्टी छोड़कर अलग हो गए थे.

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इस साल चार प्रमुख चुनावों में मिली हार

ग्रीन पार्टी के लिए 2024 काफी खराब बीत रहा है. पार्टी को निराशाजनक चुनाव परिणामों का सामना करना पड़ा. जून में हुए यूरोपीय चुनावों में उसे सिर्फ 11.9 फीसदी वोट मिले, जबकि 2019 में विपक्ष में रहते हुए भी पार्टी को 20.5 फीसदी वोट मिले थे. फिलहाल, ग्रीन पार्टी केंद्र की गठबंधन सरकार में शामिल है. पार्टी के प्रमुख नेता रोबर्ट हाबेक जर्मनी के आर्थिक मामलों के मंत्री और वाइस चांसलर हैं.

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सितंबर में सैक्सनी, थुरिंजिया और ब्रांडेनबुर्ग राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में ग्रीन पार्टी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा. पार्टी अब सिर्फ सैक्सनी के विधानसभा में प्रतिनिधित्व कर पा रही है. बाकी सभी जगहों पर उसे प्रतिनिधित्व के लिए जरूरी न्यूनतम पांच फीसदी वोट भी नहीं मिले.

इस वजह से पार्टी नेता रिकार्डा लांग और ओमिड नूरीपोर ने पिछले हफ्ते इस्तीफा देने का फैसला किया. उन्होंने कहा कि ग्रीन्स की जलवायु संरक्षण की नीतियां और प्रवासन नीति में थोड़े सुधार की बात अब मतदाताओं को पसंद नहीं आ रही है. दोनों लीडरों ने यह भी कहा कि कई मतदाताओं को लगता है कि ग्रीन्स उनकी वास्तविक समस्याओं से बेखबर है.

नवंबर में होने वाले आगामी पार्टी सम्मेलन में दो नए नेताओं का चुनाव किया जाएगा. इनमें से एक उम्मीदवार हैं फ्रांत्सिस्का ब्रैंटनर, जो संघीय अर्थव्यवस्था मंत्रालय में राज्य सचिव हैं. दूसरे हैं बुंडेस्टाग के सांसद फेलिक्स बनाजाख, जिन्होंने 2022 तक नॉर्थ राइन वेस्टफालिया में ग्रीन्स का नेतृत्व किया था. फिलहाल, वे रूढ़िवादी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) के साथ सरकार में हैं.

ब्रैंटनर को रोबर्ट हाबेक का भरोसेमंद और करीबी माना जाता है. लोगों का मानना है कि ब्रैंटनर को ऐसे सदस्य पसंद नहीं हैं, जो पार्टी के मूल सिद्धांतों पर बहस करते हैं. उन्होंने एक साल पहले पार्टी के सम्मेलन के दौरान डीडब्ल्यू से कहा कि वह कमजोर पड़ी अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर निवेश के लिए कर्ज लेने और संविधान में शामिल 'डेट ब्रेक' (कर्ज लेने की सीमा) में संशोधन करने के पक्ष में हैं.

दरअसल, जर्मनी के 16 राज्यों को अपने खातों को बैलेंस रखने के लिए बाध्य किया जाता है. साथ ही, केंद्र सरकार को जीडीपी के अधिकतम 0.35 फीसदी के बराबर कर्ज लेने की अनुमति है.

फेलिक्स बनाजाख का मानना है कि बुंडेसवेयर के लिए पर्याप्त हथियार होने चाहिए और यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति जारी रखनी चाहिए. दोनों ही मामलों में उनका विचार रोबर्ट हाबेक के साथ मिलता है.

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जब डीडब्ल्यू ने पूछा कि क्या उनके जैसे युवा ग्रीन्स अभी भी खुद को शांतिवादी कह सकते हैं, जैसे कि कभी उनके पार्टी संस्थापक थे, तो उन्होंने जवाब दिया, "अगर आप 1980 के दशक की तरह हिंसा से पूरी तरह दूरी की बात करते हैं, तो नहीं. अगर आपको शांति से रहना है, तो आपको पहले शांति हासिल करनी होगी. अगर आपको शांति हासिल करनी है, तो सैन्य शक्ति चाहिए होगी. इसलिए, यह 'हथियारों के बिना शांति बनाने' के बारे में नहीं है, लेकिन हमारा लक्ष्य एक अधिक शांतिपूर्ण दुनिया की स्थापना करना है."

राजनीतिक विशेषज्ञ हैरान हैं कि क्या खराब पोल रेटिंग और पेंशन, बजट एवं प्रवासन को लेकर गठबंधन में चल रहे विवादों के बावजूद अगले साल होने वाले संघीय चुनाव में पार्टी के अभियान का नेतृत्व करने के लिए हाबेक पर भरोसा करना समझदारी है? जबकि, वह उन घटनाक्रमों में शामिल मुख्य नेताओं में से एक हैं जिन्होंने पार्टी को संकट में डाल दिया है.

जर्मन घरों में गैस और तेल हीटिंग वाले सिस्टम को बदलने के लिए अधिक टिकाऊ हीट पंप को प्रोत्साहित करने का हाबेक का प्रयास एक पीआर आपदा में बदल गया, यानी उनकी राजनीतिक छवि और खराब हो गई. दरअसल, इस मामले से जुड़ा एक मसौदा कानून लागू होने से पहले ही सार्वजनिक कर दिया गया. इसपर लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया दी. कानून अंततः लागू हुआ, लेकिन इसे काफी हद तक कमजोर कर दिया गया. इस प्रकरण के बाद हाबेक की छवि काफी ज्यादा प्रभावित हुई है.

हालांकि, हाबेक ने अक्सर साबित किया है कि वह अपनी गलतियों से सीखने में सक्षम हैं. 1969 में ल्यूबेक में जन्मे हाबेक ने साल 2000 में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की और 2002 में ग्रीन पार्टी में शामिल होने से पहले दर्शनशास्त्र, जर्मन साहित्य और भाषा शास्त्र का अध्ययन किया. चार बच्चों के पिता हाबेक श्लेसविग होलश्टाइन राज्य से हैं, जहां उन्होंने 2012 से 2018 तक पर्यावरण मंत्री के रूप में कार्य किया. उस दौरान उन्होंने एक ऐसे सहज नेता के तौर पर अपनी छवि बनाई, जिसने सेंटर-लेफ्ट एसपीडी और सेंटर-राइट सीडीयू के साथ समान रूप से अच्छा काम किया.

हाबेक को संघीय स्तर पर सीडीयू और सीएसयू के रूढ़िवादियों के साथ गठबंधन के लिए खुले तौर पर काफी व्यावहारिक माना जाता है. फिलहाल, यह स्पष्ट नहीं है कि पार्टी अपने चुनाव अभियान को पूरी तरह से हाबेक के हिसाब से तैयार करेगी या नहीं. यह संभावना है कि पार्टी के सदस्य चांसलर पद के लिए हाबेक की उम्मीदवारी के रास्ते में नहीं आना चाहेंगे. खासकर तब, जब विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने घोषणा कर दी है कि वह फिर से इस पद के लिए उम्मीदवार नहीं बनेंगी.

वर्तमान में ग्रीन्स को देशभर में लगभग 11 फीसदी वोट मिल रहे हैं. साथ ही, इस बात की बेहद कम संभावना है कि एसपीडी, ग्रीन्स और नव-उदारवादी फ्री डेमोक्रेट्स (एफडीपी) की मौजूदा सरकार अगले साल सत्ता में वापस आएगी.