फ्रांस में दंगों के बाद विदेशी विरोधी विचारों को शह मिलने का डर
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

धुर दक्षिणपंथी विचारों वाली नैशनल रैली पार्टी प्रवासियों को फ्रांस की दिक्कतों की जड़ मानती है. हाल में एक किशोर की पुलिस कार्रवाई में मौत के बाद हुए दंगों के माहौल में पार्टी को और ज्यादा समर्थन मिलने की आशंका है.पांच रातों तक चला हिंसा का दौर फ्रांस में भले ही थम गया हो लेकिन जिंदगी को पटरी पर लौटने में अभी वक्त लगेगा. पेरिस के उपनगरीय इलाके नॉन्ते में सत्रह साल के एक किशोर नाहेल एम की मौत ने राज्य और पुलिस के खिलाफ लोगों के गुस्से की जो आग भड़काई, उसके सामने पूरा तंत्र असहाय नजर आया. आप्रवासन, धर्म, पुलिस, कानून और नस्ली भेदभाव के सवालों ने फिर सिर उठाया जिनके जवाब ढूंढने की जरूरत फ्रांस महसूस कर रहा है. राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने देश के 300 मेयरों के साथ मुलाकात में बुनियादी सवालों के जवाब ढूंढने का वायदा किया. माक्रों ने माना कि देश में हिंसा थमने का मतलब ये नहीं कि स्थायी शांति वापस लौट आई है लेकिन सबसे बुरा दौर जरूर गुजर चुका है.

फ्रांस में दक्षिणपंथ की ताकत बढ़ने और इमानुएल माक्रों के कमजोर होने के मायने

फ्रांस के विभिन्न इलाकों में हुई हिंसक घटनाओं के दौरान खासतौर पर पुलिस स्टेशनों, स्कूलों और स्थानीय काउंसिलों जैसे सरकारी प्रतीकों को ही निशाना बनाया गया. पेरिस के एक उपनगरीय इलाके के मेयर के घर में गाड़ी घुसा देने की घटना देश भर में हिंसक प्रतिक्रिया का डरावना उदाहरण बनी. यही नहीं पेरिस के मार्से शहर में दंगों और हिंसा के दौरान पुलिस की कार्रवाई में एक 27 वर्षीय नौजवान की मौत हो गई. कहा जा रहा है कि ये युवक पुलिस के फेंके एक हथगोले की वजह से घायल हो गया था. 3000 से ज्यादा गिरफ्तारियां हुईं, मेयरों की एकता रैली भी की गई लेकिन इस बेहद नाजुक मौके का फायदा कौन उठा सकता है?

एकता का सवाल

बंटे हुए समाज और नस्ली भेदभाव की बहस के बीच फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने घटना को स्तब्ध करने वाला और माफी के नाकाबिल बताया और कई नेताओं ने उनके सुर में सुर मिलाया लेकिन हर पार्टी ने नाहेल के परिवार के साथ खड़े होने की बात कही हो, ऐसा नहीं हुआ. कंजरवेटिव विचारधारा वाली पार्टी दि रिपब्लिकंस के अध्यक्ष एरिक श्योट्टी ने परिवार के प्रति सहानुभूति तो जताई लेकिन पुलिस पर भी पूरा विश्वास जताते हुए कहा कि लोगों को पुलिस अधिकारी को कठघरे में खड़ा करने से पहले जांच रिपोर्ट का इंतजार करना चाहिए.

राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने मारीन ले पेन को हराया, फिर राष्ट्रपति चुने गए

नाहेल की मौत के दो दिन बाद ही श्योट्टी ने सरकार से अपील की थी कि देश में आपातकाल लागू कर दिया जाए. इसका मतलब होता कि पुलिस को बेहिसाब ताकत मिल जाती ताकि वह लोगों के एक जगह जमा होने को रोक सके या घरों की तलाशी ले सके. इसी तरह धुर-दक्षिणपंथी पार्टी नैशनल रैली के संसदीय दल की नेता मारिन ले पेन ने एक बयान में कहा कि माक्रों को कुछ भी बोलने से पहले पुलिस जांच का इंतजार करना चाहिए. यानी रिपब्लिकन पार्टी खुद उग्र दक्षिणपंथी विचारों के नजदीक खड़ी नजर आई. ये इत्तेफाक नहीं, पार्टी की दोहरी चाल का हिस्सा है.

समानता के खिलाफ

राजनैतिक मामलों के जानकार मानते हैं कि ले पेन की विदेशी विरोधी पार्टी पूरी तरह से नस्लभेदी मैनिफेस्टो पर चल रही है और रिपब्लिकन पार्टी की दोहरी नीति का फायदा भी उसे ही मिलेगा. फ्रांस की यूनिवर्सिटी ऑफ टुअर में राजनीति विज्ञान के प्राध्यापक सिल्वां क्रेपों ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "ये पार्टी यूरोप के बाहर से फ्रांस में इमीग्रेशन खत्म करना चाहती है और पूरी तरह से समानता और एकता के विचारों की विरोधी है. अगर मारिन ले पेन खुले तौर पर ना भी कहें तब भी सब जानते हैं कि उनकी पार्टी के हिसाब से फ्रांस में होने वाले अपराधों के लिए प्रवासी ही जिम्मेदार हैं. जब इसी तरह की बातें श्योट्टी जैसे रिपब्लिकन कहते हैं तो इसका फायदा सीधे इन्हें ही मिलता है."

सामाजिक दरारों की हिंसक प्रतिक्रिया से जूझता फ्रांस

नैशनल रैली को इस नीति का फायदा भी हो रहा है. पिछले साल के राष्ट्रपति चुनावों के शुरूआती दौर में ले पेन को 41.5 फीसदी वोट मिले जो 2017 के मुकाबले 34 प्रतिशत ज्यादा थे. विशेषज्ञ मानते हैं कि फ्रांस में जारी तनावपूर्ण माहौल धुर-दक्षिणपंथी विचारों को बढ़ावा देने में बड़ी भूमिका निभा सकता है. इसका एक उदाहरण धन जुटाने का वो कैंपेन है जिसमें आरोपी पुलिसकर्मी के लिए लगभग 13 करोड़ रुपये जमा कर लिये गये जबकि नाहेल के घर वालों की मदद के लिए 4 करोड़ भी पूरे नहीं हो सके.

दक्षिणपंथ का मुकाबला

फ्रांस की सरकार कहती है कि उसने ताजा संकट से ही नहीं धुर-दक्षिणपंथ से निपटने के लिए तेजी से कदम उठाए हैं. एक प्रेस वार्ता में डीडब्ल्यू के सवाल का जवाब देते हुए एक सरकारी प्रवक्ता ने कहा, "हमने पुलिस निगरानी बढ़ाई है. इसके अलावा हम स्थानीय प्रशासन, संगठनों और नाहेल के परिवार से भी लगातार संपर्क में हैं. लोग उग्र उपाय करने की बातें कर रहे हैं लेकिन हम समाज में बंटवारा नहीं चाहते." प्रवक्ता का यह भी कहना था कि सरकार ने उपनगरीय इलाकों में काम किया है लेकिन सालों से चली आ रही दिक्कतों को दूर करने में वक्त लगेगा.

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हालांकि पेरिस स्थित एक विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के प्रोफेसर मिशेल कोकोहेफ इस बात को नकारते हैं कि सरकार ने ऐसे ठोस कदम उठाए हैं. कोकोहेफ कहते हैं, "राइट विंग का मुकाबला करने का सिर्फ एक तरीका है- समाज में पड़ी दरारों को भरना ताकि भविष्य में इस तरह की अशांति ना फैले. इसका सीधा मतलब है बुनियादी सुधार और पुलिस सुधार." सच ये है कि अगर माक्रों ये करना भी चाहें तो उनके पास जितना वक्त है वो इस काम के लिए नाकाफी है. वैसे भी अगले राष्ट्रपति चुनावों में महज चार साल का वक्त बचा है.