यूरोप भी है जलवायु  परिवर्तन से त्रस्त
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

दुनिया में औद्योगिकीकरण की शुरुआत करने वाला यूरोप आज बढ़ते वैश्विक तापमान की सबसे तगड़ी मार झेल रहा है. इससे दिग्गज देशों के माथे पर भी लकीरें उभरने लगी हैं.हाल ही में आई, विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लूएमओ) और यूरोपीय कॉपरनिकस नेटवर्क की रिपोर्ट के मुताबिक यूरोप अन्य महाद्वीपों की तुलना में बढ़ते तापमान का सबसे तेज दर से अनुभव कर रहा है. 1980 के दशक के बाद से, यूरोप वैश्विक औसत से दोगुनी दर से गर्म हो रहा है. 2022 में, यूरोप 19वीं शताब्दी के अंत की तुलना में लगभग 2.3 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म था.

1990 के दशक के बाद से तापमान में तेजी आई है, जिसने कई बार तापमान के रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. पश्चिमी यूरोप में औसत से लगभग 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है. आर्कटिक के पास के क्षेत्रों में 3.5 डिग्री सेल्सियस को पार करते हुए और भी अधिक ताप वृद्धि झेली है. इस गर्मी की वजह से यूरोप ने 1997 से 2022 तक 880 किमी बर्फ भी खोई. इसके सबूत सिकुड़ते ग्लेशियरों पर साफ दिख रहे हैं.

ठंडे यूरोप में लू चलने लगी है

यूरोप रिकॉर्ड-ब्रेकिंग हीटवेव से त्रस्त है, 2022 की गर्मी, कई यूरोपीय देशों में रिकॉर्ड पर सबसे गर्म साल के रूप में दर्ज हुई. WMO और कोपरनिकस की संयुक्त रिपोर्ट से पता चलता है कि मौसमी आपदाओं के कारण 16,000 से अधिक मौतें हुईं और 1,56,000 लोगों पर इसका सीधा प्रभाव पड़ा. बाढ़ और तूफान से सबसे अधिक आर्थिक क्षति हुई, जबकि लू ने बड़ी संख्या में जानें लीं. बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, आयरलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, पुर्तगाल, स्पेन, स्विट्जरलैंड और ब्रिटेन सहित कई देशों ने तापमान के रिकॉर्ड तोड़ दिए.

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कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस के निदेशक डॉ कार्लो बूनटेम्पो ने जोर देकर कहा कि 2022 में अनुभव किए गए रिकॉर्ड-ब्रेकिंग हीट स्ट्रेस का यूरोप में मौसम संबंधी अतिरिक्त मौतों में महत्वपूर्ण योगदान था. उन्होंने चेतावनी दी कि अत्यधिक गर्मी की इन घटनाओं के पूरे क्षेत्र में लगातार और तीव्र होने की संभावना है.

पूर्वी भूमध्यसागर, बाल्टिक, काला सागर और दक्षिणी आर्कटिक में सतही महासागर का तापमान वैश्विक औसत से तीन गुना अधिक हो गया है. इसने प्रजातियों के प्रवास और बड़े पैमाने पर विलुप्त होने की आशंकाए तेज कर दी है. इसके साथ ही आक्रामक प्रजातियों की शुरुआत भी नाजुक समुद्री पारिस्थितिक तंत्र को बाधित कर सकती है.

जर्मनी की राष्ट्रीय जल रणनीति

इसी साल मार्च में, जर्मनी की कैबिनेट ने जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों, जैसे लंबे समय तक सूखे और गर्मी की लहरों से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय जल रणनीति को मंजूरी दी. जल-संपन्न देश होने के बावजूद, जर्मनी ने राइन जैसी नदियों में जल स्तर कम होने का अनुभव किया. कम वर्षा और उच्च तापमान की मार के कारण, नदी पर आधारित परिवहन और कृषि भी प्रभावित हुए.

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फिलहाल, राइन के पानी का स्तर ड्राई मौसम के चलते कम हो गया है. स्विस आल्प्स से निकलने वाली राइन जर्मन औद्योगिक क्षेत्रों से होते हुए यह उत्तरी सागर में समाती है. राइन, अनाज से लेकर रसायन और कोयले जैसे उत्पादों के लिए एक प्रमुख मार्ग है. यह रॉटरडैम और एम्सटर्डम जैसे उत्तरी सागर के बंदरगाहों में औद्योगिक उत्पादकों और वैश्विक निर्यात टर्मिनलों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है, जबकि नहरें और अन्य नदियां राइन को डेन्यूब से जोड़ती हैं, जिससे काला सागर में भी जहाज चलाना संभव हो जाता है.

जर्मनी की राष्ट्रीय जल रणनीति का उद्देश्य जंगलों, बाढ़ के मैदानों, कस्बों और गांवों सहित विभिन्न स्थानों में जल जलाशयों की स्थापना और सुरक्षा करना है. 2050 तक के लक्ष्यों को रेखांकित करने वाली रणनीति, वनों और हरित स्थानों को बहाल करने और क्षेत्रीय कमी के दौरान जल वितरण के लिए दिशानिर्देश विकसित करने पर भी ध्यान केंद्रित करती है. प्रभावी जल प्रबंधन की सुविधा के लिए, एक नई रजिस्ट्री प्रणाली स्थानीय और संघीय सरकारों को पूरे देश में पानी की उपलब्धता और उपयोग के बारे में बताती है.