अमेरिका ने अब किया चीन के समुद्री व्यापार पर जवाबी हमला
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

अमेरिका के बंदरगाहों पर चीन निर्मित जहाजों से अब 15 लाख डॉलर तक की डॉकिंग फीस वसूली जा सकती है. चीन के व्यापार पर लगाम लगाने के ट्रंप के अब तक के कदमों को मिला कर देखें, तो इसका चीन पर कितना असर हो सकता है?अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल से ही व्हाइट हाउस के प्रमुख नीतिगत लक्ष्यों में से एक यह रहा है कि चीन की आर्थिक प्रगति को रोका जाए. हालांकि, सरकारी मदद से चलने वाले चीनी जहाज निर्माण उद्योग के दबदबे को रोकने का प्रस्ताव ट्रंप का नहीं है. यह प्रस्ताव जो बाइडेन सरकार के समय पांच अमेरिकी श्रमिक संगठनों ने दिया था.

फरवरी में, संयुक्त राज्य अमेरिका व्यापार प्रतिनिधि (यूएसटीआर) ने अमेरिकी बंदरगाह पर चीन निर्मित किसी भी जहाज के डॉकिंग यानी ठहराव के लिए 15 लाख डॉलर शुल्क का प्रस्ताव रखा. यूएसटीआर को ही इस मुद्दे की जांच करने का काम सौंपा गया था. यूएसटीआर ने कहा कि यह शुल्क उचित है, क्योंकि चीन ने जहाज निर्माण में गलत तरीके से जो फायदे हासिल किए हैं उनसे ‘अमेरिकी व्यापार पर बोझ पड़ता है या वह रुकावट डालता है.'

सब्सिडी की वजह से चीन को आगे बढ़ने में मिली मदद

पिछले तीन दशकों में, चीन जहाज निर्माण में प्रमुख वैश्विक शक्ति बन गया है. 2023 में जहाज निर्माण में चीन की हिस्सेदारी 50 फीसदी से ज्यादा हो गई, जो 1999 में सिर्फ 5 फीसदी थी. चीनी सरकार ने विदेशी प्रतिस्पर्धी कंपनियों को बाहर करते हुए इस क्षेत्र को अरबों डॉलर की मदद दी है.

चीन की जबरदस्त तरक्की के बावजूद, नीदरलैंड्स के एरास्मस यूनिवर्सिटी रॉटरडम में व्यापार और लॉजिस्टिक्स के प्रोफेसर अल्बर्ट वीनस्ट्रा ने इस गलत धारणा की आलोचना की कि एशियाई महाशक्ति ने कभी फलते-फूलते अमेरिकी जहाज निर्माण उद्योग को खोखला कर दिया है.

वीनस्ट्रा ने डीडब्ल्यू को बताया, "तर्क यह दिया जा रहा है कि चीन ने जहाज बनाने का उद्योग खड़ा करके हमारे साथ गलत किया है. नतीजतन, अब हमारे पास जहाज बनाने का उद्योग नहीं है. लेकिन यह एक अजीब सोच है.”

अमेरिकी जहाज निर्माण उद्योग के पतन की बात इतिहास में दर्ज है. कभी जहाज निर्माण में सबसे आगे रहने वाला यह देश, दूसरे विश्व युद्ध के बाद अपनी प्राथमिकताओं से भटक गया और इसका उद्योग थम गया. आखिरी बार इसमें सबसे बड़ी तेजी 1970 के दशक के मध्य में आई थी. तब से जहाज निर्माण के बाजार में अमेरिका की हिस्सेदारी लगभग न के बराबर है.

चीन की वजह से जापान और दक्षिण कोरिया को नुकसान हुआ है. संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास के आंकड़ों के अनुसार, पिछले एक दशक में दोनों देशों की संयुक्त बाजार हिस्सेदारी 60 फीसदी से गिरकर 45 फीसदी हो गई है.

भारी उद्योग की जल्द वापसी संभव नहीं है

वीनस्ट्रा ने बताया, "जहाज निर्माण उद्योग 1960 के दशक में एशिया में और बाद में चीन में स्थानांतरित हो गया.” उन्होंने आगे कहा कि अमेरिका ‘अब कभी मुकाबला नहीं कर पाएगा, क्योंकि इसके लिए एक मजबूत इस्पात उद्योग की जरूरत है, जो अमेरिका में पिछले 25 से 30 सालों से खत्म होता जा रहा है.'

कोपेनहेगन स्थित शिपिंग एनालिटिक्स फर्म ‘जेनेटा' के मुख्य विश्लेषक पीटर सैंड का भी मानना है कि चीन की आलोचना करने में ‘बहुत देर' हो चुकी है.

क्या अमेरिका को व्यापार कानून तोड़ने की सजा मिल सकती है?

हालांकि, यह प्रस्ताव ‘ट्रंप प्रशासन के लक्ष्य के साथ मेल खाता है, जिसका उद्देश्य चीन के प्रभुत्व को यहां, वहां, और हर जगह सीमित करना है, खासकर जहां वह अमेरिकी व्यापार से संबंधित हो.'

मार्च की शुरुआत में ट्रंप ने अमेरिका आने वाले चीनी सामानों पर शुल्क को दोगुना करके 20 फीसदी कर दिया. जबकि, पड़ोसी कनाडा और मैक्सिको से आयात पर 25 फीसदी शुल्क लगा दिया.

ट्रंप ने स्टील और एल्यूमिनियम आयात पर नया शुल्क लगाने की कसम खाई है और वह तथाकथित पारस्परिक शुल्क लगाने पर भी विचार कर रहे हैं. इसका मतलब यह है कि जो देश अमेरिकी आयात पर जितना शुल्क लगाते हैं, अमेरिका भी उन देशों से आयातित सामानों पर उतना ही शुल्क लगाएगा.

कीमतों में वृद्धि का कारण बनने वाला एक और कदम

प्रस्तावित बंदरगाह डॉकिंग शुल्क से अमेरिका में माल भेजने की लागत बढ़ने की संभावना है. वीनस्ट्रा का अनुमान है कि भले ही इस शुल्क को कम करके 10 लाख डॉलर कर दिया जाए, इसके बावजूद अमेरिकी बंदरगाह पर आना शिपिंग कंपनियों के लिए अभी की तुलना में 10 गुना ज्यादा महंगा होगा.

इस बीच, सैंड ने डीडब्ल्यू को बताया कि ‘अगर कोई जहाज एक हजार कंटेनर उतारता है, तो 10 लाख डॉलर का शुल्क इन सभी कंटेनर पर जोड़ा जाएगा. इससे हर कंटेनर की लागत 1,000 डॉलर बढ़ जाएगी.' उन्होंने कहा कि जब शिपिंग की लागत बढ़ेगी, तो आयातित वस्तुओं की लागत भी बढ़ जाएगी और इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था की गति धीमी हो सकती है.

सैंड ने चेतावनी दी, "बहुत कम आयातक ऐसे खर्चों को खुद झेल सकते हैं. इसलिए, ये खर्च ग्राहकों पर डाले जाएंगे, जिससे उनकी खरीदने की क्षमता कम होगी और आखिर में मांग घट जाएगी.”

लंदन में क्लार्कसन रिसर्च के मैनेजिंग डायरेक्टर स्टीफन गॉर्डन ने कहा कि इस प्रस्ताव से अमेरिका को सालाना 40 से 52 अरब डॉलर तक का शुल्क मिल सकता है. हालांकि, ऐसा तब होगा, जब अमेरिकी बंदरगाहों पर आने वाले जहाजों की संख्या में कोई बदलाव न हो.

क्लार्कसन ने हिसाब लगाया कि पिछले साल अमेरिकी बंदरगाहों पर ऐसे लगभग 37,000 जहाज आए जिन पर चीन से संबंध होने के कारण 15 लाख डॉलर का अधिकतम शुल्क लगने की संभावना है. गॉर्डन के मुताबिक, यह संख्या अमेरिकी बंदरगाहों पर आने वाले 83 फीसदी कंटेनर जहाजों के बराबर हैं. वहीं, 30 फीसदी तेल टैंकरों के बराबर है.

अमेरिकी बंदरगाहों पर जाने से बच सकते हैं जहाज

शिपिंग कंपनियां पहले से ही अमेरिकी बंदरगाहों पर ठहरने से बचने के लिए विकल्प तलाश रही हैं. एक रणनीति यह होगी कि शिपमेंट को मेक्सिको या कनाडा के जरिए भेजा जाए और फिर माल को ट्रक या रेल से गंतव्य तक पहुंचाया जाए.

सैंड ने कहा, "इसके बजाय मेक्सिको या कनाडा में रुकना आर्थिक रूप से समझदारी भरा फैसला हो सकता है. शिपिंग कंपनियां पिछले पांच वर्षों से यह काम ज्यादा से ज्यादा कर रही हैं. पश्चिमी तट के मैक्सिकन बंदरगाह हाल ही में लगभग पूरी क्षमता से काम कर रहे थे.”

गैर-चीनी कंपनियों के लिए शुल्क से बचने का एक और तरीका यह है कि वे ऐसे जहाजों को चुनें जिनमें चीनी पार्ट्स न लगे हों या जिन्हें चीन में नहीं बनाया गया हो. कंपनियां शुल्क से बचने के लिए अपने चीनी और गैर-चीनी बेड़े को अलग करने वाले मालिकाना नियमों में बदलाव कर सकती हैं.

प्रस्तावित शुल्क की कानूनी वैधता पर भी सवाल उठाए गए हैं, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौतों का उद्देश्य आम तौर पर भेदभावपूर्ण टैरिफ और शुल्क को रोकना होता है. इसलिए अमेरिका को अपने प्रमुख व्यापारिक साझेदारों से और अधिक कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.

बहुत कम सकारात्मक असर की उम्मीद

इसके अलावा, कई विश्लेषकों का मानना है कि इस प्रस्ताव से अमेरिकी जहाज निर्माण उद्योग में कोई बहुत बड़ा बदलाव होने की संभावना नहीं है. संयुक्त राज्य अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि के अनुसार, देश में हर वर्ष नए जहाजों के निर्माण की संख्या पांच से भी कम हो गई है.

वीनस्ट्रा ने कहा, "हमारे पास यूरोप और अमेरिका में जहाज निर्माण की क्षमता नहीं है. दक्षिण कोरिया और जापान के पास बहुत ज्यादा अतिरिक्त क्षमता नहीं है, सिर्फ चीन के पास यह क्षमता है. इसलिए, मुझे नहीं लगता कि बाजार में आसानी से सुधार किया जा सकता है.”

ट्रंप की अन्य ‘अमेरिका फर्स्ट' नीतियों के साथ देखें, तो यूएसटीआर का यह प्रस्ताव वैश्विक व्यापार और आपूर्ति श्रृंखलाओं के लिए गंभीर खतरे पैदा करता है. ट्रंप ने ‘अमेरिका फर्स्ट' नीति के तहत पनामा नहर को वापस लेने की भी योजना बनाई है.

फिलहाल, चीन निर्मित जहाजों पर शुल्क लगाने की योजना पर विचार किया जा रहा है. इस पर अभी सार्वजनिक सुनवाई होनी है और ट्रंप प्रशासन ने अंतिम निर्णय नहीं लिया है. फिर भी, वीनस्ट्रा का मानना है कि अगर यह प्रस्ताव पूरी तरह लागू कर दिया जाता है, तो यह सिर्फ चीन से जुड़े जहाजों के लिए नहीं, बल्कि सभी के लिए निराशाजनक होगा.

उन्होंने कहा, "यह नियम सभी विदेशी जहाज मालिकों को प्रभावित करेगा. अंत में सिर्फ नुकसान ही होगा.”