20 August History: 36 साल पहले हिमालय ने दिखाया था ऐसा रूप, आज भी सिहर जाता है नेपाल
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नई दिल्ली, 20 अगस्त : 20 अगस्त 1988 का दिन नेपाल के लिए एक बुरे सपने से कम नहीं था. इस दिन आए जलजले ने तबाही मचा दी थी. सड़क के चारों ओर दिल दहलाने देने वाला मंजर था किसी ने अपनी परिवार को खो दिया था तो कई लोगों के घर जमींदोज हो गए थे. लोगों ने इस भूकंप में अपना बहुत कुछ गंवाया.

36 साल पहले 6.8 तीव्रता के भूकंप ने हिमालय की गोद में बसे इस खूबसूरत देश को बुरी तरह से हिलाकर रख दिया था. प्राकृतिक आपदा ने 700 से ज्यादा लोगों को लील लिया था, जबकि एक हजार से ज्यादा घायल हुए थे. ये घटना आज भी लोगों के जेहन को झिंझोड़ देती है. भूकंप के झटकों से न सिर्फ नेपाल प्रभावित हुआ, बल्कि भारतीय सीमा से सटे उत्तरी बिहार का अधिकांश भाग भी दहल उठा था. भूकंप इतना जोरदार था कि बिहार की राजधानी पटना में राजभवन और पुराने सचिवालय समेत 50 हजार इमारतों में दरारें पड़ गई थी. देश की राजधानी दिल्ली से लेकर पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश तक भूकंप के झटके महसूस किए गए थे. यह भी पढ़ें : सरस्वती साड़ी डिपो का शेयर निर्गम मूल्य से 25 प्रतिशत उछाल के साथ सूचीबद्ध

माना जाता है कि साल 1934 के बाद ये नेपाल में आया सबसे शक्तिशाली भूकंप था. इस भूकंप के प्रत्यक्षदर्शी आज भी उस मंजर को याद कर कांप उठते हैं. बताते हैं कि कैसे धरती 10 सेकंड और 15 सेकंड के अंतराल पर दो बार कांपी, कैसे पल भर में ही हंसता खेलता परिवार उजड़ गया और कैसे कई घर मलबे में तब्दील हो गए. वैसे नेपाल में लगभग हर दशक में ऐसी अनहोनी होती आई है. देश ने कुछ सालों के अंतराल में भीषण भूकंप के झटकों का दंश झेला है. जिसमें हजारों ने जान गंवाई.

नेपाल की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि भूकंप का डर बना ही रहता है. इंडो-ऑस्ट्रेलियन और यूरेशियन प्लेट के बीच में नेपाल की लोकेशन है. जब ये दोनों प्लेट टकराती हैं तो नेपाल में भूकंप के झटके आते हैं, इन्हें रोकना नामुमकिन सा है. वैसे तो जापान में नेपाल से ज्यादा भूकंप आते हैं. लेकिन, नेपाल का इन्फ्रास्ट्रक्चर और भूकंप से निपटने के लिए तैयारी तुलनात्मक रूप से काफी कम है, ऐसे में नेपाल में नुकसान भी ज्यादा होता है. 2015 में भी 7.9 की तीव्रता का विनाशकारी भूकंप आया था. इसमें भी सैकड़ों जिंदगियां उजड़ गई थीं. तब धरहरा टॉवर और दरबार स्क्वायर जैसी कई धरोहरों को काफी नुकसान भी पहुंचा था. विशेषज्ञों के मुताबिक इसका खतरा पहले भी था और अब भी बना हुआ है.