आत्महत्या रोकने में मददगार नहीं सोशल मीडिया: यूपी पुलिस
आत्महत्या की प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों में से कुछ ही लोग सोशल मीडिया पर अपनी भावनाओं को व्यक्त कर पाते हैं. उनमें से 99 फीसदी लोग अपनी भावनाओं को ऑनलाइन व्यक्त करने से घबराते हैं.
लखनऊ, 26 सितंबर : आत्महत्या की प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों में से कुछ ही लोग सोशल मीडिया पर अपनी भावनाओं को व्यक्त कर पाते हैं. उनमें से 99 फीसदी लोग अपनी भावनाओं को ऑनलाइन व्यक्त करने से घबराते हैं. यूपी पुलिस के सोशल मीडिया सेल के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (एएसपी) राहुल श्रीवास्तव ने कहा कि पुलिस ने फेसबुक और इंस्टाग्राम के साथ अपने सोशल मीडिया सेल के गठजोड़ के बाद अप्रैल से अब तक आत्महत्या या खुद को नुकसान पहुंचाने वाले व्यक्तियों के केवल पांच मामलों की पहचान की है और उनकी काउंसलिंग की है.
सोशल नेटवर्किंग साइट्स पुलिस नियंत्रण कक्ष को अलर्ट जारी करती हैं, जब कोई व्यक्ति फेसबुक या इंस्टाग्राम पर आत्महत्या करने या खुद को नुकसान पहुंचाने के इरादे से पोस्ट सबमिट करता है. छह महीने पहले हुए टाई-अप के बाद पुलिस के इस मिशन में बचाए गए लोगों को सलाह देने के लिए मनोवैज्ञानिकों का एक पैनल भी शामिल है. हालांकि, बचाए गए व्यक्तियों में से किसी ने भी अब तक स्वैच्छिक परामर्श का विकल्प नहीं चुना है. यह भी पढ़ें : Cyber Criminals Arrested: आकर्षक ऑफर्स के बहाने लोगों की करते थे ठगी, लालच देकर ऐसे फसाते थे, लखनऊ पुलिस ने किया अरेस्ट
श्रीवास्तव ने कहा, जो मामले हमारे पास आए हैं, उन्हें सुलझा लिया गया है और पुलिस अधिकारियों द्वारा काउंसलिंग के माध्यम से व्यक्तियों को वापस घर भेज दिया है. अब तक, मनोवैज्ञानिकों के स्तर पर हस्तक्षेप नहीं किया गया है. उन्होंने आगे कहा, अगर कोई बच्चा या किसी भी उम्र का व्यक्ति सोशल मीडिया पर आत्महत्या करने या खुद को नुकसान पहुंचाने की भावनाओं को व्यक्त करता है, तो हमें तुरंत फेसबुक या इंस्टाग्राम से एक फोन कॉल के साथ-साथ ईमेल से अलर्ट मिल जाता है. जिसमें उनका पूरा विवरण होता है. उन्होंने कहा कि पुलिस व्यक्ति की लोकेशन को ट्रैक करती है और जिला पुलिस को सतर्क कर दिया जाता है. पुलिस इन पहचाने गए व्यक्तियों के स्थान का पता उनके मोबाइल नंबरों के माध्यम से लगाती है.
एएसपी ने कहा कि उनके सामने ऐसे मामले भी आए हैं, जहां लोगों ने व्हाट्सएप ग्रुप पर आत्महत्या या खुद को नुकसान पहुंचाने जैसी भावनाएं शेयर की है और पुलिस को अलर्ट मिला है. आज भी कई लोग ऐसे हैं जो सोशल मीडिया पर अपनी समस्याओं के बारे में बात नहीं कर पाते हैं. ऐसे मामलों में हस्तक्षेप के लिए सभी हितधारकों, जैसे समाज कल्याण विभाग, शिक्षा विभाग और स्वास्थ्य विभाग द्वारा बहु-क्षेत्रीय ²ष्टिकोण की आवश्यकता होती है. यूपी पुलिस और अन्य हेल्पलाइनों ने सोशल मीडिया की तुलना में प्रत्यक्ष सूचना के माध्यम से ऐसे अधिक मामलों को हल किया है.