आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तेजी से विकसित होती हुई तकनीक है, जो शिक्षा समेत कई क्षेत्रों में क्रांति ला रही है. भारत में भी एआई को स्कूली शिक्षा में लागू करने की दिशा में कई पहल किए जा रहे हैं.आज की दुनिया में एआई एक महत्वपूर्ण तकनीक बन गई है. इसका उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जा रहा है, जिनमें शिक्षा भी शामिल है. शिक्षा में एआई का उपयोग छात्रों के सीखने को बेहतर बनाने, शिक्षकों को उनके काम में ज्यादा सहयोग देने और शिक्षा प्रणाली को अधिक कुशल बनाने के लिए किया जा सकता है.
हालांकि एआई के इस्तेमाल के फायदे और नुकसान पर बहस चल रही है, लेकिन उसका इस्तेमाल पाठ्यक्रम सामग्री को अधिक व्यक्तिगत और आकर्षक बनाने के लिए किया जा सकता है. छात्रों की रुचियों और सीखने की शैली के आधार पर पाठ्यक्रम सामग्री को उनके अनुकूल बनाने के लिए एआई को इस्तेमाल करने के प्रयास हो रहे हैं. इसकी मदद से छात्रों के प्रश्नों का उत्तर देने, उन्हें व्यक्तिगत अभ्यास करवाने और सीखने की प्रगति पर मार्गदर्शन करने के लिए किया जा सकता है.
स्कूली शिक्षा में एआई का इस्तेमाल
2023 में खोला गया केरल का शांतिगिरी विद्याभवन भारत का पहला एआई स्कूल है. यहां छात्रों को गणित, विज्ञान और अंग्रेजी जैसे विषय पढ़ाने के लिए एआई का इस्तेमाल किया जाता है. मध्य प्रदेश राज्य मुक्त स्कूल शिक्षा बोर्ड द्वारा संचालित 53 स्कूलों में "आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस” विषय शुरू किया गया है. इसे फिलहाल कक्षा 8वीं और 9वीं के छात्रों को पढ़ाया जाएगा.
पंजाब के सरकारी स्कूलों में भी बच्चों को एआई के बारे में पढ़ाए जाने की योजना है. इसकी शुरुआत पंजाब के मोहाली के फेज-3 बी1 में स्थित सीनियर सेकेंडरी सरकारी स्कूल में हो गई है. यहां छात्रों को रोबोट बनाना भी सिखाया जाएगा. इस प्रोजेक्ट में कक्षा छठी से 8वीं तक के कुल 480 विद्यार्थी शामिल हैं.
स्कूली शिक्षा के लिए चुनौतियां
एआई स्कूली शिक्षा के लिए एक शक्तिशाली उपकरण हो सकता है, लेकिन इस क्षेत्र में अभी भी कुछ चुनौतियां हैं. एक चुनौती तो लागत की है. एआई तकनीक लागू करना फिलहाल महंगा है, इसलिए सभी स्कूलों के लिए इसे अपनाना भी एक चुनौती है. एआई का उपयोग करने वाले शिक्षकों को एआई तकनीकों को सीखने और उपयोग करने के लिए समय और प्रयास लगाने की भी आवश्यकता है. साथ ही, छात्रों की सुरक्षा और गोपनीयता को सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है.
एआईको स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने पर कई जानकार आशंका भी जताते हैं. साइबर लॉ और डेटा प्रोटेक्शन के विशेषज्ञ एडवोकेट प्रशांत माली कहते हैं, "कोई भी तकनीक आप तुरंत किसी के जीवन में ले आते हैं, तो उसके दुष्परिणाम समझ नहीं पाते. पहले तकनीक के एथिक्स पढ़ाने चाहिए. बच्चों को समझाया जाना चाहिए कि इस तकनीक को सेहतमंद तरीके से कैसे इस्तेमाल करना चाहिए."
तकनीकी फासला घटाना भी जरूरी
एडवोकेट माली एआई के बेजा इस्तेमाल से सावधान रहने की भी सलाह देते हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने डीपफेक ऑडियो और वीडियो का उदाहरण देते हुए आशंका जताई, "बच्चे अपने शिक्षकों, खासकर महिला टीचरों का अपमान करने के लिए इन तकनीकों को इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके माध्यम से साइबर बुलिंग भी हो सकती है. इसलिए जरूरी है कि एआई को स्कूली पाठ्यक्रमों में लाने की हड़बड़ी नहीं दिखानी चाहिए. पहले बच्चों के बीच बेस बनाइए."
इसके अलावा एक बड़ी चिंता अलग-अलग आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों के बीच का तकनीका फासला भी है. कोरोना महामारी के दौरान यह अंतर ज्यादा स्पष्ट दिखा. क्लासें ऑनलाइन माध्यम से होने लगीं, लेकिन ग्रामीण इलाकों, खासतौर पर गरीब आयवर्ग के छात्रों के पास लैपटॉप और स्मार्टफोन जैसे साधनों की कमी थी. नतीजतन कई बच्चों की या तो पढ़ाई छूट गई, या फिर वो काफी पिछड़ गए.
एडवोकेट माली छात्रों के बीच तकनीकी फासला पाटने की जरूरत भी रेखांकित करते हैं. इसके लिए सरकारी स्कूलों में दिए जाने वाले यूनिफॉर्म और मिड-डे मील की तर्ज पर छात्रों को टैबलेट या कंप्यूटर दिया जाना चाहिए. वह कहते हैं, "इससे गरीब आर्थिक पृष्ठभूमि वाले छात्र भी रिकॉर्डेड वीडियोज से पढ़ाई कर पाएंगे. बस्ते का वजन भी घटेगा. छात्रों और शिक्षकों का अनुपात सुधरेगा. साथ ही, छात्रों को एआई जैसी तकनीकों के लिए बेहतर तरीके से तैयार किया जा सकेगा."
एआई में स्कूली शिक्षा के भविष्य को बदलने की क्षमता है. दूरस्थ शिक्षा और ऑनलाइन शिक्षा जैसी गैर-पारंपरिक शिक्षा तक पहुंच को बढ़ावा देने में एआई उपयोगी साबित होगा. इससे ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले छात्रों को भी स्तरीय शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलेगा. छात्रों को रणनैतिक सोच और समस्या समाधान कौशल विकसित करने में भी एआई मददगार होगा.