ऑस्ट्रेलिया में शोधकर्ताओं ने एक बिल्कुल नई तरह की कोशिका की खोज की है, जो विज्ञान की समझ में एक महत्वपूर्ण कमी को पूरा करती है कि कैसे स्तनधारी जीवों का शरीर अपने आपको रोगों या घावों से ठीक करता है.लगभग सौ साल पहले वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया था कि ऐसी कोशिका मौजूद होनी चाहिए जो स्तनधारियों के शरीरों के घाव भरने में मदद करती है. अब जाकर वह अनुमान सही साबित हो पाया है, जब वैज्ञानिकों को विकसित चूहों की महाधमनी (एओर्टा) में यह छिपी हुई कोशिका मिली.
नेचर कम्यूनिकेशंस पत्रिका में छपे एक शोध में बताया गया है कि इस खोज में नौ साल लगे. शोधकर्ताओं ने इन कोशिकाओं को 'एंडोमैक प्रोजेनिटर' नाम दिया है और अब टीम मानव शरीर में इसी तरह की कोशिकाओं की खोज कर रही है.
मीडिया के लिए जारी किए गए एक बयान में साउथ ऑस्ट्रेलियन हेल्थ एंड मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसएएचएमआरआई) की वैज्ञानिक सानुरी लियानेज ने कहा, "इन कोशिकाओं का एक महत्वपूर्ण काम होता है. जब शरीर को जरूरत होती है, तो ये रक्त वाहिकाओं को बढ़ाने में मदद करती हैं. चोट लगने या खराब रक्त प्रवाह से ये सक्रिय हो जाती हैं, और फिर तेजी से वृद्धि करके घाव को भरने में मदद करती हैं."
कैसे हुआ शोध
शोधपत्र के मुताबिक लियानेज और उनके सहयोगियों ने चूहों से एंडोमैक प्रोजेनिटर कोशिकाओं को अलग किया और उन्हें प्रयोगशाला में उगाया, जहां उन्होंने कॉलोनियां बनाईं. जब इन्हें डाइबिटीज ग्रस्त चूहों में इंजेक्ट किया गया, तो इन कोशिका कॉलोनियों ने घाव को भरने में खासी मदद की.
शोधपत्र के मुताबिक एंडोमैक प्रोजेनिटर कोशिका कैसे काम करती है, इसे समझने के लिए, पहले मैक्रोफेज को समझना जरूरी है. मैक्रोफेज पहली प्रतिरक्षा कोशिकाएं होती हैं, जो भ्रूण द्वारा उत्पन्न होती हैं. वे शरीर के विकास के लिए जरूरी होती हैं.
वयस्क हो जाने पर स्तनधारी शरीर के अधिकांश ऊतकों में मैक्रोफेज होते हैं, जो प्रारंभिक अवस्था में होते हैं. जन्म के बाद, इनकी आबादी समय-समय पर अपने आप को नया करती है ताकि वे ताजा बने रहें और रोगाणुओं को नष्ट कर सकें.
हालांकि, लगभग सौ साल पहले, वैज्ञानिकों ने यह अनुमान लगाया था कि स्तनधारी जीवों के रक्त में बहने वाली स्टेम कोशिकाएं नए मैक्रोफेज बना सकती हैं, जो पहले से शरीर के विभिन्न ऊतकों में मौजूद आबादी को बढ़ा सकती हैं.
कैसी होंगी भविष्य की दवाएं
कई वर्षों तक, वैज्ञानिकों का मानना था कि ये घूमने वाले मैक्रोफेज निर्माता, जो पहले चूहों के भ्रूण में पाए गए थे, वयस्क शरीरों में भी मौजूद होते हैं क्योंकि वे अस्थि मज्जा (बोन मैरो) में होते हैं. लेकिन ताजा खोजें बताती हैं कि बोन मैरो से उत्पन्न स्टेम कोशिकाएं वास्तव में केवल कुछ ही ऊतकों, जैसे आंत, त्वचा और हृदय तक सीमित होती हैं.
अब कुछ वैज्ञानिकों को संदेह है कि वयस्क शरीर में नए मैक्रोफेज अज्ञात स्टेम कोशिकाओं से उत्पन्न होते हैं, जो जन्म से पहले ही शरीर में स्थापित हो चुकी थीं. अब तक इस सिद्धांत को लेकर विवादास्पद चर्चाएं होती रही हैं, लेकिन ऑस्ट्रेलिया में चूहों पर हाल ही में किए गए अध्ययन इस सवाल का पुख्ता जवाब हो सकते हैं.
कैसे काम करती हैं कोशिकाएं
इस अध्ययन के निष्कर्षों से पता चलता है कि मैक्रोफेज के लिए भ्रूणिक प्रोजेनिटर कोशिकाएं हृदय की महाधमनी में शुरुआती विकास के दौरान स्थापित की जाती हैं. फिर, जैसे-जैसे चूहे की उम्र बढ़ती है, ये खून के साथ बहने वाली स्टेम कोशिकाएं ऊतकों में नए मैक्रोफेज बनाती हैं.
पृथ्वी को मिलने वाला है एक नन्हा सा नया चांद
चूंकि एंडोमैक प्रोजेनिटर कोशिकाओं के पास 'पहचान टैग' नहीं होते, शोधकर्ताओं का कहना है कि इन्हें प्रत्यारोपित किया जा सकता है, बिना इस डर के कि प्रतिरक्षा तंत्र उन्हें बाहरी चीज समझकर उन पर हमला करेगा.
जब लियानेज और उनकी सहयोगी, एसएएचएमआरआई की बायोलॉजिस्ट आना विलियमसन समेत, और कई ऑस्ट्रेलियाई संस्थानों की टीमों ने एंडोमैक प्रोजेनिटर कोशिकाओं को प्रयोगशाला में उगाया, तो उन्होंने एक छोटी कॉलोनी बनाई.
इस कॉलोनी को एक ऐसे चूहे में इंजेक्ट किया गया, जिसकी पिछली टांग में खून का बहाव रोक दिया गया था ताकि एक 'डाइबिटिक घाव' बनाया जा सके. नई कोशिकाएं मिलने के बाद उसकी टांग की चोट तेजी से ठीक हुई. दो हफ्तों के बाद, खून में बहने वाली स्टेम कोशिकाएं मैक्रोफेज और एंडोथीलियल कोशिकाओं में बदल गईं, जो रक्त वाहिकाओं की परत बनाती हैं.
हालांकि ये प्रयोग अभी जारी हैं लेकिन लियोनेज कहती हैं, "सिद्धांत रूप में, यह उन मरीजों के लिए एक क्रांतिकारी बदलाव हो सकता है जो पुराने घावों से पीड़ित हैं."
उन्होंने कहा, "हम इन कोशिकाओं की संभावनाओं का पता लगाने के लिए उत्साहित हैं. यह शुरुआती दौर है, लेकिन इसके प्रभाव बहुत बड़े हो सकते हैं."
वीके/सीके