अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने निकाली 12 लाख साल पुरानी बर्फ
वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका में 2.
वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका में 2.8 किलोमीटर खुदाई कर 12 लाख साल पुरानी बर्फ निकाली है. इस बर्फ का इस्तेमाल जलवायु परिवर्तन के अध्ययन में अहम है.अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने गुरुवार को घोषणा की कि उन्होंने अंटार्कटिका की सतह से लगभग 2.8 किलोमीटर गहराई तक ड्रिलिंग करके अब तक का सबसे पुराना बर्फ का नमूना निकाला है. वैज्ञानिकों का कहना है कि यह बर्फ कम से कम 12 लाख साल पुरानी है.
इस प्राचीन बर्फ की जांच से यह समझने में मदद मिलेगी कि धरती का वातावरण और जलवायु कैसे बदले हैं. इससे यह भी पता चलेगा कि हिमयुग के चक्रों में क्या बदलाव हुए हैं और वातावरण में कार्बन के परिवर्तन ने जलवायु को कैसे प्रभावित किया.
इटली के ग्लेशियर विज्ञानी और इस प्रोजेक्ट 'बियॉन्ड एपिका' के कोऑर्डिनेटर, कार्लो बारबांते ने कहा, "इस बर्फ के नमूने की मदद से हम समझ पाएंगे कि ग्रीनहाउस गैसों, रसायनों और वातावरण में धूल के स्तर में क्या बदलाव हुआ है." बारबांते इटली की नेशनल रिसर्च काउंसिल के पोलर साइंस इंस्टीट्यूट के निदेशक भी हैं.
चार साल की मेहनत
इससे पहले, यही टीम करीब 800,000 साल पुरानी बर्फ का नमूना निकाल चुकी है. इस बार की ड्रिलिंग 2.8 किलोमीटर गहराई तक की गई. 16 वैज्ञानिकों और सपोर्ट स्टाफ की टीम ने चार साल तक अंटार्कटिका की कड़ी ठंड (औसतन -35 डिग्री सेल्सियस) में गर्मियों में यह काम किया.
इटली के शोधकर्ता फेडेरिको स्कोटो ने जनवरी की शुरुआत में 'लिटिल डोम सी' नामक जगह पर इस ड्रिलिंग को पूरा किया. यह स्थान कोंकोर्डिया रिसर्च स्टेशन के पास है. उन्होंने कहा, "जब हम गहराई तक पहुंचे, वह हमारे लिए एक शानदार पल था." आइसोटोप विश्लेषण से पता चला कि यह बर्फ कम से कम 12 लाख साल पुरानी है.
बारबांते और स्कोटो ने बताया कि 'एपिका' अभियान के पिछले नमूने से यह जानकारी मिली थी कि पिछले 800,000 सालों के सबसे गर्म समय में भी कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसे ग्रीनहाउस गैसों का स्तर आज के स्तर से कम था. 2023 में ऊर्जा क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन ने नया रिकॉर्ड बनाया था.
बारबांते ने कहा, "आज कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 800,000 सालों में अधिकतम स्तर से 50 फीसदी ज्यादा है." जीवाश्म ईंधनों के कारण कार्बन उत्सर्जन के पुराने रिकॉर्ड एक के बाद एक ध्वस्त हो रहे हैं.
'बियॉन्ड एपिका' प्रोजेक्ट को यूरोपीय संघ और कई यूरोपीय देशों का सहयोग प्राप्त है. इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व इटली कर रहा है. पेन स्टेट यूनिवर्सिटी के जलवायु वैज्ञानिक रिचर्ड ऐली ने इसे 'अद्भुत उपलब्धि' बताया. ऐली इस प्रोजेक्ट का हिस्सा नहीं थे. हाल ही में उन्हें बर्फ पर शोध के लिए नेशनल मेडल ऑफ साइंस से सम्मानित किया गया था.
उन्होंने कहा, "यह बर्फ कोर स्टडी में बड़ी प्रगति है. इससे हमें अतीत की जलवायु को बेहतर तरीके से समझने और वर्तमान में जलवायु परिवर्तन में इंसान की भूमिका का विश्लेषण करने में मदद मिलेगी."
कैसे खोजी गई बर्फ
‘ओल्डेस्ट आइस' ड्रिलिंग प्रोजेक्ट के लिए संभावित स्थानों का चयन बर्फ की चादरों के मॉडलिंग के आधार पर किया गया है, लेकिन इनकी पुष्टि के लिए वैज्ञानिकों को उन जगहों पर भी जाना पड़ा. इस काम के लिए चुने गए स्थानों पर 'रैपिड एक्सेस आइसोटोप ड्रिल' (आरएआईडी) का इस्तेमाल किया गया. इसका मकसद बर्फ की गहराई और उम्र का मॉडल जांचना और धरातल पर पिघलने की संभावना का आकलन करना था.
ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे (बीएएस) के दो रडारों की मदद से स्थानीय बर्फ की चादर की गतिविधियों का डेटा जुटाया गया. यूनिवर्सिटी ऑफ मैनिटोबा की डॉर्थी डाल-जेनसन ने कहा, "यह उपलब्धि जलवायु और पर्यावरण विज्ञान के लिए ऐतिहासिक है. यह आइस कोर अब तक का सबसे लंबा लगातार जलवायु रिकॉर्ड उपलब्ध कराता है. हमें उम्मीद है कि इससे पृथ्वी के कार्बन चक्र और तापमान में बदलाव के बीच का संबंध समझने में मदद मिलेगी."
अनोखे सवालों के जवाब मिलेंगे
इस परियोजना से पृथ्वी के जलवायु और वातावरण के इतिहास का गहराई से अध्ययन किया जाएगा. इससे यह भी पता लगाया जा सकेगा कि हिमयुग के सबसे पुराने दौर में तापमान और ग्रीनहाउस गैसों के बीच कैसा संबंध था.
आइस कोर में बंद हवा के बुलबुलों में संरक्षित ग्रीनहाउस गैसों के कारण पृथ्वी के पिछले जलवायु पैटर्न का अध्ययन किया जाएगा. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि यह जानकारी बताएगी कि बढ़ते तापमान का पृथ्वी पर क्या असर होगा.
डाल-जेनसन ने कहा, "इस ड्रिलिंग अभियान ने हमारी उम्मीदों से कहीं ज्यादा अच्छा प्रदर्शन किया है. हम इन आइस कोर में संग्रहित विस्तृत जलवायु जानकारी को निकालने और व्यापक वैज्ञानिक टीम के साथ काम करने के लिए उत्साहित हैं."
यह प्रोजेक्ट यूरोप के वैज्ञानिक और लॉजिस्टिकल टीमों के सहयोग से सफल हुआ है. इसे यूरोपीय आयोग ने फंड किया है. इसके अलावा बेल्जियम, डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी, इटली, नॉर्वे, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड्स और यूनाइटेड किंगडम का भी सहयोग मिला है.
वीके/एनआर (एपी)