भारतीय वैज्ञानिकों ने कर दिखाया कमाल, बनाया ऐसा उपकरण जो कर सकता है मानव मस्तिष्क की नकल

भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाया ऐसा उपकरण, मानव मस्तिष्क की क्रियाओं की अब हो पाएगी नकल

मानव मस्तिष्क/प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Pixabay)

नई दिल्ली: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अनुसंधान जगत का भविष्य है. यह एक ऐसा आविष्कार है, जो कई नए आविष्कारों के सृजन का कारण बन रहा है. आजकल भारत में कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर आधारित कई नए नवाचार सामने आ रहे हैं. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अब हमारे दैनिक जीवन का एक हिस्सा है, जो ईमेल फिल्टर और संचार में स्मार्ट जवाबों से प्रारंभ होकर सेल्फ-ड्राइविंग ऑटोनॉमस व्हीकल्स, स्वास्थ्य सेवा के लिए संवर्धित रियलिटी, ड्रग डिस्कवरी, बिग डेटा हैंडलिंग, रियल-टाइम पैटर्न/ इमेज पहचान, रियल-वर्ल्ड की समस्याओं को हल करने जैसे कई कार्यों में सहायता कर रहा है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कोविड-19 महामारी से लड़ने में भी सहायक साबित हो रहा है. कोविड-19 के कारण बजट पर पैदा हुए दबाव से शोध प्रभावित होंगे: वैज्ञानिक

हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक ऐसा उपकरण बनाया है, जो मानव मस्तिष्क की ज्ञान से संबंधित क्रियाओं की नकल कर सकता है. यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तरह काम करने में अन्य पारंपरिक तकनीकों की तुलना में अधिक कुशल है. यह एक न्यूरोमॉर्फिक उपकरण है, जो मस्तिष्क से कुशल कंप्यूटिंग क्षमता प्राप्त करने के लिए मानव मस्तिष्क ढांचे की नकल कर सकता है. मानव मस्तिष्क में लगभग सौ अरब न्यूरॉन्स होते हैं, जिनमें अक्षतंतु और डेंड्राइट होते हैं. ये न्यूरॉन्स बड़े पैमाने पर एक दूसरे के साथ अक्षतंतु और डेंड्राइट के माध्यम से जुड़ते हैं, जो सिनैप्स नामक विशाल जंक्शन बनाते हैं. माना जाता है कि यह जटिल जैव-तंत्रिका नेटवर्क ज्ञान संबंधी बेहतर क्षमताएं देता है.

जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च के वैज्ञानिकों ने हासिल की यह उपलब्धि

वैज्ञानिक लंबे समय से एक ऐसे सिनैप्टिक डिवाइस विकसित करने का प्रयास कर रहे थे, जो बाहरी सपोर्टिंग (सीएमओएस) सर्किट की सहायता के बिना जटिल मनोवैज्ञानिक व्यवहारों की नकल कर सकता हो.

भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत काम करने वाली स्वायत्त संस्था जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (जेएनसीएएसआर), बेंगलुरु के वैज्ञानिकों ने एक सरल स्व-निर्माण विधि के माध्यम से जैविक तंत्रिका नेटवर्क जैसा एक कृत्रिम सिनैप्टिक नेटवर्क बनाने का तरीका खोज निकला है.

सिल्वर एग्लोमेरेट्स नेटवर्क से बनाए गए कृत्रिम सिनैप्टिक नेटवर्क

इस फैब्रिकेटेड कृत्रिम सिनैप्टिक नेटवर्क (एएसएन) में सिल्वर (एजी) एग्लोमेरेट्स नेटवर्क शामिल हैं. अपने शोध में जेएनसीएएसआर टीम ने सिल्वर (एजी) धातु को शाखायुक्त द्वीपों और नैनोकणों को नैनोगैप से अलग करने के साथ जैव न्यूरॉन्स और न्यूरोट्रांसमीटर के समान बनाने के लिए तैयार किया, जहां डीवेटिंग डिस्कनेक्ट द्वीपों या गोलाकार कणों में फिल्म के टूटने की प्रक्रिया निरंतर होती है. ऐसे आर्किटेक्चर के साथ उच्च किस्म की अनेक ज्ञानात्मक गतिविधियों का अनुकरण किया जाता है. उन्होंने पाया कि उच्च तापमान पर एजी फिल्म को गीला करने से जैव-तंत्रिका नेटवर्क से मिलते-जुलते नैनोगैप्स द्वारा अलग किए गए द्वीप संरचनाओं का निर्माण हुआ.

विभिन्न गतिविधियों की कर सकता है नकल

प्रोग्राम किए गए विद्युत संकेतों का एक रियल वर्ल्ड स्टिमुलस के रूप में उपयोग करते हुए इस वर्गीकृत संरचना ने सीखने की विभिन्न गतिविधियों जैसे कि अल्पकालिक स्मृति (एसटीएम), दीर्घकालिक स्मृति (एलटीएम), क्षमता, अवसाद, सहयोगी शिक्षा, रुचि-आधारित शिक्षा, पर्यवेक्षण का अनुकरण किया गया. सिनैप्टिक थकान और इसमें होने वाले आत्म-सुधार की भी नकल की गई. जेएनसीएएसआर टीम ने जैविक तंत्रिका पदार्थ जैसी एक नैनोमटेरियल का इस्तेमाल करके उन्नत न्यूरोमॉर्फिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का लक्ष्य प्राप्त करने में आगे कदम बढ़ाया है.

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