धरती पर जो सबसे बड़ा कीट चला है, उसका एक सदी पुराना रहस्य वैज्ञानिकों ने सुलझा लिया है. उन्होंने इस दानवाकार कीड़े के सिर की संरचना तैयार की है.वैज्ञानिकों ने धरती के सबसे बड़े कीड़े, आर्थ्रोप्ल्यूरा, का पूरा शारीरिक ढांचा तैयार किया है. यह प्रागैतिहासिक विशाल कीड़ा लगभग 10.5 फीट (3.2 मीटर) लंबा था और 30 करोड़ साल पहले कार्बोनिफेरस युग में रहता था. हाल ही में फ्रांस के मोंसो-लेस-माइन से मिले दो जीवाश्मों की खोज से अब वैज्ञानिक इसके सिर का ढांचा तैयार करने में कामयाब हुए हैं. इससे इस दानवाकार कीट की पारिस्थितिकी और विकास के बारे में नई जानकारी मिली है.
पिछली एक सदी से ज्यादा समय से, वैज्ञानिक आर्थ्रोप्ल्यूरा के टुकड़ों और जीवाश्मों से इसके बारे में जानते थे. हालांकि, इनमें से अधिकतर जीवाश्मों में इसका सिर नहीं था, क्योंकि ये विशाल कीड़े अपने एक्सोस्केलेटन (बाहरी ढांचे) को छोड़ देते थे. अब फ्रांस से मिले इन जीवाश्मों ने इस रहस्य को सुलझा दिया है.
मिलीपीड और सेंटिपीड का मिश्रण
‘साइंस अडवांसेज' पत्रिका में प्रकाशित शोध के अनुसार, आर्थ्रोप्ल्यूरा में मिलीपीड और सेंटिपीड, दोनों के लक्षण पाए गए. इसका शरीर मिलीपीड जैसा था, जिसमें हर हिस्से में दो जोड़ी पैर होते थे, लेकिन इसका सिर सेंटिपीड जैसा था. उसके बाद के युग में जानवर छोटे होते चले गए और वैज्ञानिकों का मानना है कि वे लगातार छोटे हो रहे हैं.
शोधकर्ता माइकल लेरिटियर ने बताया, "हमें पता चला कि इसका शरीर मिलीपीड जैसा था, लेकिन सिर सेंटिपीड जैसा था." लेरिटियर और उनकी टीम ने जीवाश्मों की सीटी स्कैनिंग की ताकि वे चट्टानों में दबे जीवाश्मों को बिना नुकसान पहुंचाए देख सकें.
आर्थ्रोप्ल्यूरा का सिर गोल था और इसमें छोटी घंटी के आकार के दो एंटीना और केकड़े जैसी आंखें थीं. इसका मुंह छोटा था और पत्ते और छाल खाने के लिए अनुकूलित था. इससे पता चलता है कि यह कीड़ा शाकाहारी था.
एक बड़ा और शांत जीव
आर्थ्रोप्ल्यूरा की विशालता के बावजूद, यह शिकारी नहीं था. वैज्ञानिकों का मानना है कि यह पौधों के सड़े-गले हिस्सों को खाने वाला और धीमा चलने वाला जीव था. लेरिटियर बताते हैं, "मुझे यह एक विशाल और अद्भुत जीव लगता है. इसकी विशालता इसे एक खास तरह की आभा देती है, जैसे व्हेल या हाथियों में होती है."
नई खोज से वैज्ञानिकों का यह विचार मजबूत हुआ है कि आर्थ्रोप्ल्यूरा अपने पर्यावरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था. इसकी तुलना हाथियों से की जा सकती है, जो ज्यादातर समय पौधों को खाने में बिताते हैं.
खोजे गए नवजात जीवाश्म वयस्क आर्थ्रोप्ल्यूरा से काफी छोटे थे, लेकिन उन्होंने काफी जानकारी मुहैया कराई है. ये जीव उस समय उष्णकटिबंधीय, दलदली जंगलों में रहते थे, जब धरती का वातावरण ऑक्सीजन से भरपूर था. उसी से ऐसे विशालकाय जीवों का विकास हुआ. वैज्ञानिक पहले यह खोज कर चुके हैं कि व्हेल मछलियां इतनी विशाल क्यों होती हैं.
कार्बोनिफेरस युग का दानव
आर्थ्रोप्ल्यूरा का शरीर 24 हिस्सों में बंटा था, और इसके प्रत्येक खंड में दो जोड़ी पैर थे, यानी कुल मिलाकर इसके 88 पैर होते थे. जमीन पर चलने वाला अब तक का यह सबसे बड़ा ज्ञात आर्थ्रोपोड था, जो कीड़ों, मकड़ियों और केकड़ों के समूह में आता है.
इस खोज का महत्व इसलिए भी है क्योंकि इससे यह समझने में मदद मिलती है कि आर्थ्रोपोड इतने बड़े कैसे हो गए. लेरिटियर ने बताया, "इसके पीछे दो कारण हो सकते हैं: कार्बोनिफेरस युग में वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ गई थी, और संसाधनों की उपलब्धता भी ज्यादा थी."
शोधकर्ता जेम्स लैंसडेल ने बताया, "यह खोज यह समझने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है कि धरती पर सबसे बड़ा आर्थ्रोपोड कैसे रहता था और विकसित हुआ." इस नई जानकारी के साथ, वैज्ञानिक अब यह अध्ययन कर सकते हैं कि कार्बोनिफेरस युग में आर्थ्रोपोड इतने बड़े कैसे हुए, और कैसे रीढ़धारी जीवों के आगमन के बाद उनकी संख्या कम हो गई.
वीके/सीके (रॉयटर्स, एपी)