अमेरिकाः एक्स-रे या सिटी-स्कैन 20 में एक कैंसर की वजह
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

हड्डियों, मांसपेशियों और कोशिकाओं की जांच के लिए सिटी स्कैन जैसे रेडिएशन टेस्ट बहुत जरूरी होते है. अमेरिका में एक शोध से पता चला है कि जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करने पर यह हर 20 में से एक कैंसर का कारण भी बन सकता है.सिटी स्कैन बहुत सी बीमारियों का पता लगाने के लिए जरूरी होता है और यह कई बार सटीक भी साबित होता है. हालांकि इसके कारण शरीर को गंभीर रेडिएशन का सामना भी करना पड़ता है. अगर सिटी स्कैन का इस्तेमाल सिर्फ ज्यादा जरूरी होने पर किया जाए, तो कैंसर का खतरा कम किया जा सकता है. हालांकि, सिटी स्कैन एक आम तरीका है जिसका इस्तेमाल शरीर में बीमारियों का पता लगाने के लिए किया जाता है. अमेरिकी रिसर्चर ‘सिटी स्कैन' के खतरों के लिए चेतावनी दे रहे हैं.

सिटी स्कैन, जिसे कंप्यूटेड टोमोग्राफी या कैट स्कैन के नाम से भी जाना जाता है. इसमें एक्स-रे का इस्तेमाल कर शरीर की थ्री-डी तस्वीर बनाई जाती है. स्कैनर एक बड़ी ट्यूब जैसा दिखता है. जिसमें मरीज को मेज पर लिटा कर मशीन के अंदर डाला जाता है और एक्स-रे के इस्तेमाल से मशीन के अंदर शरीर की सैकड़ों तस्वीरें ली जाती हैं.

यह तरीका एमआरआई (मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग) से अलग होता है. दोनों में सुरंग जैसी मशीन होती है लेकिन एमआरआई में एक्स-रे नहीं बल्कि तेज चुंबकीय और रेडियो वेव्स का इस्तेमाल किया जाता है. इन दोनों ही तकनीकों से शरीर के अंदर की काफी साफ और सटीक तस्वीरें हासिल की जा सकती हैं. एक्स-रे के जरिए स्कैन करने से शरीर को रेडिएशन लगता है, जिससे शरीर को कई प्रकार के खतरे भी हो सकते हैं.

इस अध्ययन की प्रमुख शोधकर्ता और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की रेडियोलॉजिस्ट, रेबेका स्मिथ-बिंडमन कहती हैं, "सिटी स्कैन जिंदगियां बचाता है, लेकिन इससे होने वाले नुकसान को अकसर नजरअंदाज कर दिया जाता है.”

एक्स-रे कैसे नुकसान पहुंचाते हैं

हमारे चारों ओर कई तरह की ऊर्जा की किरणें होती हैं, जिन्हें इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम कहते हैं, जो कि अलग-अलग वेवलेंथ की होती हैं.

इसमें एक होता है, विजिबल स्पेक्ट्रम यानी ऐसी किरणें जिन्हे हम अपनी आंखों से देख सकते हैं, जैसे लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, इंडिगो और बैंगनी रंग की वेवलेंथ.

इलेक्ट्रोमैग्नेटिक किरणें इस विजिबल स्पेक्ट्रम के दोनों तरफ पाई जा सकती हैं. जिसमें एक तरफ होती है, कम फ्रीक्वेंसी और लम्बी वेवलेंथ वाली रेडिएशन जैसे कि रेडियो वेव्स, माइक्रोवेव्स और इन्फ्रारेड, जो कि आंखों को दिखने वाली किरणों के मुकाबले काफी कमजोर होती है. एमआरआई स्कैन इन्हीं रेडियो वेव्स का इस्तेमाल करता है.

स्तन कैंसर के बुजुर्ग मरीजों को रेडिएशन की जरूरत नहीं

दूसरी तरफ होती हैं, ज्यादा फ्रीक्वेंसी और छोटी वेवलेंथ वाली किरणें जैसे कि अल्ट्रावायलेट, एक्स-रे और गामा किरणें. यह आंखों को दिखने वाली किरणों के मुकाबले काफी शक्तिशाली होती हैं. इन्हें "आयनाइजिंग रेडिएशन" कहा जाता है और यह इंसानों के लिए बहुत खतरनाक होती हैं.

आयनाइजिंग रेडिएशन शरीर की कोशिकाओं के अंदर, परमाणुओं से इलेक्ट्रॉन को अलग कर सकती है. इसका मतलब हुआ कि यह शरीर के ऊतकों को नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखती है. इंसानो में इस तरह के होने वाले नुकसान कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ा सकते है. ठीक वैसे ही जैसे धूप से निकलने वाली अल्ट्रावायलेट किरणें त्वचा के कैंसर का कारण बन सकती हैं.

कैंसर के 5 फीसदी मामलों का कारण सिटी स्कैन!

हालांकि, एक्स-रे, शक्तिशाली रेडिएशन हैं लेकिन डॉक्टरों के लिए यह बहुत जरूरी उपकरण है, जिससे शरीर के अंदर की बीमारियों का पता लगाया जा सकता है.भविष्य में हर 20 में से एक कैंसर मामले का कारण उसका सिटी स्कैन हो सकता है

एक नई रिसर्च में 6.15 करोड़ अमेरिकी मरीजों में कैंसर होने की संभावना की जांच की गई. इन लोगों का सिटी स्कैन किया गया था. इसके अनुसार, अगर सिटी स्कैन और कैंसर की दर में कोई बदलाव नहीं होता तो सिटी स्कैन के कारण करीब इनमें से 1,03,000 लोगों को कैंसर का सामना करना पड सकता है. यह आंकड़ा अमेरिका में हर साल पाए जाने वाले नए कैंसर मामलों का लगभग पांच फीसदी है.

सिटी स्कैन का इस्तेमाल अब पहले से कई गुना ज्यादा होने लगा है, 2007 से अब तक इसमें लगभग 30 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई है. उम्र बढ़ने के साथ-साथ स्कैन की संख्या भी बढ़ती चली जाती है और 60 से 69 साल की उम्र वाले लोगों में यह सबसे ज्यादा देखने को मिलता है.

इसमें यह भी पता चला कि वयस्कों में पेट और पेल्विस के सिटी स्कैन से कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है और बच्चों के लिए सिर का स्कैन सबसे जोखिम भरा होता है.

जिन बच्चों का सीटी स्कैन उनके पहले जन्मदिन से पहले हुआ था. उनमें कैंसर होने का खतरा अन्य बच्चों की तुलना में दस गुना अधिक पाया गया.

स्मिथ-बिंडमन का कहना है, "यह शोध सिटी स्कैन को शराब पीने और अधिक वजन होने जैसे दूसरे बड़े खतरों के बराबर ही खतरनाक साबित करता है.” जाहिर है कि अगर "स्कैन की संख्या और हर स्कैन में दी जाने वाली रेडिएशन की मात्रा कम की जाए तो इससे कई जिंदगियां बचाई जा सकती हैं.”

सिटी स्कैन फायदे अनेक लेकिन खतरे भी हैं

इस अध्ययन के आंकड़े अमेरिकी मरीजों और अमेरिका की स्वास्थ्य प्रणाली पर आधारित है. स्मिथ-बाइंडमैन ने बताया कि सिटी स्कैन का गलत या जरूरत से अधिक इस्तेमाल किया जा रहा है. सर्दी-खांसी या सिरदर्द जैसी आम समस्याओं के लिए भी स्कैन किया जा रहा है.

उन्होंने यह भी बताया कि स्कैन करते समय मरीजों को अलग-अलग मात्रा में रेडिएशन दी जाती है, लेकिन कुछ मामलों में यह मात्रा जरूरत से कई गुणा अधिक हो जाती है. हालांकि, जरूरत से ज्यादा रेडिएशन शरीर पर क्या असर करती है, इस पर कोई जांच उपलब्ध नहीं है. कई विशेषज्ञ यह मानते हैं कि स्कैन का गलत इस्तेमाल मरीजों के लिए जोखिम पैदा कर सकता है.

ऑस्ट्रेलिया की आरएमआईटी यूनिवर्सिटी में रेडिएशन सेफ्टी एक्सपर्ट, प्रदीप देब का कहना है, "यह पूरी तरह से साबित है कि तेज रेडिएशन कैंसर का कारण बन सकता है.” देब ने कहा कि यह आम बात है कि एक्स-रे जैसी आयनाइजिंग रेडिएशन डीएनए को नुकसान पहुंचा सकती है और ज्यादा संपर्क में आने से यह नुकसान और गंभीर हो सकता है. हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि यह अलग-अलग लोगों पर कैसे असर करता है.

देब ने कहा, "रेडिएशन के संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति को कैंसर नहीं होता."

रेडिएशन के कुछ खतरे अवश्य हैं, लेकिन फिर भी सिटी स्कैन एक बहुत ही जरूरी उपकरण है, जो बीमारियों की पहचान में मदद करता है और सही समय पर इलाज मिलने से मरीज की जिंदगी सुधर सकती है. देब ने कहा, "रेडिएशन के खतरे को लेकर जो अनुमान लगाए जाते हैं, वह कई बार उन मरीजों में डर पैदा कर सकते हैं जिन्हे वास्तव में इसकी जरूरत हैं.

रेडिएशन का उपयोग नियमित रूप से कैंसर की पहचान और इलाज में किया जाता है. इस अध्ययन ने साफ दिखाया है कि जहां संभव हो वहां रेडिएशन की मात्रा को सीमित करना चाहिए और अनावश्यक सिटी स्कैन से बचना चाहिए, खासकर तब जब कम रेडिएशन या बिना रेडिएशन वाले विकल्प मौजूद हों.

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