High-Profile Data Breaches: प्रवर्तन एजेंसियों के लिए मायावी अपराधियों को पकड़ना अब भी बड़ी चुनौती
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नई दिल्ली, 12 नवंबर : हालिया हाई-प्रोफाइल डेटा उल्लंघनों ने कानून प्रवर्तन एजेंसियों के सामने तेजी से बढ़ते साइबर खतरों के साथ तालमेल बिठाने में आने वाली चुनौतियों को रेखांकित किया है. सवाल उठता है: क्या ये एजेंसियां डेटा उल्लंघनों पर तेजी से काम कर रही हैं, और क्या वे इन साइबर अपराधों के लिए ज़िम्मेदार अपराधियों को पकड़ने में सफल हैं?

साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, डेटा उल्लंघनों की बढ़ती लहर से निपटने के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियां साइबर अपराध इकाइयों और प्रौद्योगिकियों में भारी निवेश कर रही हैं. हालाँकि, डिजिटल परिदृश्य का व्यापक स्तर और जटिलता, डार्क वेब द्वारा प्रदान की गई गुमनामी के साथ मिलकर अधिकारियों के लिए इसे एक कठिन लड़ाई बना देती है.

कानून प्रवर्तन के समक्ष प्राथमिक चुनौतियों में से एक साइबर खतरों की लगातार विकसित होती प्रकृति है. अपराधी नए सुरक्षा उपायों को तेजी से अपनाते हैं, सिस्टम में सेंध लगाने और मूल्यवान डेटा निकालने के लिए तेजी से परिष्कृत तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं. परिणामस्वरूप, जांच प्रक्रिया चूहे-बिल्ली का खेल बन जाती है, जिसमें कानून प्रवर्तन अक्सर पीछे-पीछे भागता दिखता है.

कुछ हाई-प्रोफाइल मामलों में सफल गिरफ्तारिचों और सजाओं के बावजूद डेटा उल्लंघन के अपराधियों की एक बड़ी संख्या अभी भी बड़े पैमाने पर सक्रिय है. इन व्यक्तियों की मायावी प्रकृति, जो अक्सर सीमित प्रत्यर्पण समझौतों वाले क्षेत्राधिकार से काम करती है, उन्हें न्याय दिलाने के लिए कानून प्रवर्तन के प्रयासों को और जटिल बना देती है.

साइबर अपराधी अक्सर उन्नत एन्क्रिप्शन और गुमनामी टूल का उपयोग करते हैं जिससे उन पर नज़र रखने में होती है. जांचकर्ताओं को सीमित सुराग मिलते हैं. साइबर अपराध की वैश्विक प्रकृति क्षेत्राधिकार संबंधी चुनौतियां भी पैदा करती है, क्योंकि विभिन्न देशों में ऐसे अपराधों से निपटने के लिए विशेषज्ञता, संसाधन और कानूनी ढांचे के स्तर अलग-अलग हैं.

साइबर सुरक्षा कानून पर अंतर्राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष पवन दुग्गल का कहना है, “निस्संदेह, कानून प्रवर्तन एजेंसियों के पास वर्तमान में डेटा उल्लंघनों के बढ़ते मुद्दे को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए आवश्यक विशेषज्ञता और संसाधनों की कमी है. उनका प्राथमिक ध्यान अपहरण, बलात्कार और हत्या जैसे पारंपरिक अपराधों पर रहता है, जिससे तेजी से प्रचलित साइबर खतरों से ध्यान हट जाता है.

“यह स्पष्ट है कि इन साइबर अपराधों के पीछे के अपराधी अक्सर अज्ञात और सजा से बचे रहते हैं. उनकी पहचान करना और उन पर मुकदमा चलाना एक बहुत बड़ी चुनौती बन गई है, जो सफल समाधान के स्पष्ट रास्ते के बिना मामलों को दर्ज करने के लिए कानून प्रवर्तन की अनिच्छा से और भी जटिल हो गई है.''

दुग्गल ने जोर दिया, “इस बढ़ती चिंता का समाधान करने के लिए सरकार की ओर से व्यापक कार्रवाई की आवश्यकता है. सबसे पहले, एक समर्पित राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा कानून की तत्काल आवश्यकता है, क्योंकि मौजूदा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 और संबंधित नियम अपर्याप्त हैं. हाल ही में पेश किए गए आईटी दिशानिर्देश 2022, साइबर सुरक्षा उल्लंघनों की रिपोर्टिंग को अनिवार्य करते हुए, एक प्रभावी समाधान प्रदान करने में विफल है और प्रवर्तन में चुनौतियों का सामना करता है.

“इसके अलावा, सरकार की राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति का विकास सही दिशा में एक कदम है, लेकिन इसका समय पर कार्यान्वयन महत्वपूर्ण है. साइबर उल्लंघनों से प्रभावित लोगों की सुरक्षा के लिए प्रभावी कानूनी उपाय किए जाने चाहिए.''

उन्होंने कहा, “अंत में, मौजूदा कानूनों और कानूनी ढांचे को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए, जिसके लिए साइबर सुरक्षा उल्लंघनों की जांच के लिए नवीनतम उपकरणों और तकनीकों पर कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी. भारत की महत्वपूर्ण सूचना संरचना को इन उल्लंघनों के संभावित जोखिम से बचाना सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए.

“निष्कर्षतः, डेटा उल्लंघनों से उत्पन्न बढ़ती चुनौतियों से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण आवश्यक है. सरकार को समर्पित कानून बनाने, प्रभावी रणनीतियों को लागू करने और देश के डिजिटल परिदृश्य और आर्थिक हितों की रक्षा के लिए जागरूकता और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देने के लिए तेजी से कार्य करना चाहिए."