National Sports Awards 2020: ऐसे पड़ा था मेजर ध्यानचंद का नाम 'हॉकी का जादूगर', स्वर्ण पदक दिलाने में निभाई थी अहम भूमिका
हॉकी का नाम लेते ही मेजर ध्यानचंद की छवी सहज उभरकर आती है. फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में जो स्थान ब्रैडमैन का है वही स्थान हॉकी में मेजर ध्यानचंद का है. हॉकी का जादूगर कहे जाने वाले ध्यानचंद ने 1928, 1932 और 1936 में भारत को ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक दिलाये.
National Sports Awards 2020: हॉकी का नाम लेते ही मेजर ध्यानचंद (Dhyan Chand) की छवी सहज उभरकर आती है. फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में जो स्थान ब्रैडमैन का है वही स्थान हॉकी में मेजर ध्यानचंद का है. हॉकी का जादूगर कहे जाने वाले ध्यानचंद ने 1928, 1932 और 1936 में भारत को ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक दिलाये. 1928 में ओलंपिक में मेजर ध्यानचंद ने 14 गोल किए थे. अंतरराष्ट्रीय करियर में इस महान खिलाड़ी ने 400 से अधिक गोल किए. 1956 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. हॉकी में वे एक मात्र ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्हें यह सम्मान प्राप्त हुआ.
मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को खेल दिवस के रूप किया गया घोषित
हॉकी के जादूगर की जयंती पर यानी 29 अगस्त को भारत में खेल दिवस के रूप में इसे मनाया जाता है. हॉकी लेकर जब वे मैदान में उतरते थे तो गेंद इस तरह उनकी स्टिक से चिपक जाती थी जैसे वे किसी जादू की स्टिक से खेल रहे हों. वे अपनी टीम में सबसे तेज ड्रिब्लिंग के लिए जाने जाते थे. उनके इसी हुनर से प्रभावित होकर उन्हें भारतीय हॉकी टीम का कप्तान बनाया गया था.
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आज तक कोई नहीं तोड़ पाया मेजर ध्यानचंद के कीर्तिमान
ध्यानचंद ने हॉकी में जो कीर्तिमान बनाए उन तक आज भी कोई खिलाड़ी नहीं पहुँच सका. उनका जन्म 29 अगस्त 1905 को प्रयागराज ( इलाहाबाद) में हुआ था. प्रारंभिक शिक्षा के बाद 16 साल की उम्र में वे सिपाही के तौर पर सेना में भर्ती हो गए. ध्यानचंद को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करने श्रेय रेजीमेंट के एक सुबेदार मेजर तिवारी को जाता है. उनकी देखरेख में ध्यानचंद हॉकी खेलने लगे.
यूं पड़ा था मेजर ध्यानचंद का नाम 'चांद'
ध्यानचंद को हॉकी का इतना जुनून था कि वो काफ़ी समय तक प्रैक्टिस किया करते थे. कहते हैं कि वो चांद निकलने तक हॉकी का अभ्यास करते रहते थे. इस वजह से उनके साथी खिलाड़ी उन्हें “चाँद” कहने लगे थे.
भारत के लिए हॉकी में रचा स्वर्णिम इतिहास
द्वितीय विश्व युद्ध से पहले ध्यानचंद ने 1928 एमस्टरडम, 1932 में लॉस एंजेलिस और 1936 बर्लिन में लगातार तीन ओलंपिक में भारत को हॉकी में स्वर्ण पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाई. 1928 ओलंपिक में वे भारत की ओर से सबसे ज़्यादा गोल दागने वाले खिलाड़ी थे. उन खेलों में ध्यानचंद ने 14 गोल किए. उनके इस प्रदर्शन के बाद एक अख़बार ने लिखा था ये हॉकी नहीं बल्कि जादू था और ध्यानचंद हॉकी के जादूगर हैं. देखते ही देखते वे दुनिया के एक महान खिलाड़ी बन गए. आगे चलकर उन्हें “गोल मशीन” के नाम से जाना गया.
हिटलर भी हो गए थे ध्यानचंद के क़ायल
मेजर ध्यानचंद की हॉकी की जादूगरी देखकर जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने उन्हें जर्मनी की तरफ़ से खेलने की पेशकश तक कर दी थी जिसे मेजर ध्यानचंद ने एक मुस्कुराहट के साथ इंकार कर दिया.
1932 में भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका को 24-1 से हराया. उस मैच में मेजर ध्यानचंद ने 8 और उनके भाई रूप सिंह ने 10 गोल किए थे. उस टूर्नामेंट में भारत की ओर से किए गए 35 गोल में से 25 गोल इन दो भाइयों की जोड़ी ने किए थे. मेजर ध्यानचंद ने अपना अंतिम मैच 1948 में खेला था. 3 दिसम्बर 1979 को मेजर ध्यानचंद का दिल्ली में देहांत हो गया.