B'Day Spcl: भारत को पहली बार विदेशी जमीं पर जीत दिलाने वाले मंसूर अली खान पटौदी का आज है जन्मदिन
मंसूर अली खान पटौदी (Photo Credit: PTI)

भारतीय क्रिकेट टीम को एक नई पहचान देने वाले और अपनी प्रतिभा का सिक्का पूरी दुनिया में मनवाने वाले मंसूर अली खान पटौदी (Mansoor Ali Khan Pataudi) का आज जन्मदिन है. बता दें कि नवाब परिवार से ताल्लुकात रखने वाले मंसूर अली खान पटौदी का आज 77वां जन्मदिन है. पटौदी का जन्म 5 जनवरी 1941 को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में हुआ था. इस पूर्व धाकड़ बल्लेबाज ने महज 21 साल की उम्र में भारतीय टीम की कप्तानी संभाली थी. पटौदी ने भारतीय टीम के लिए 46 मैच खेले, जिनमें 40 मैचों में उन्होंने कप्तानी की.

ज्ञात हो कि भारतीय क्रिकेट टीम को देश के बाहर पहली जीत दिलाने का क्रेडिट भी कप्तान पटौदी को ही जाता है. पटौदी ने 1968 में न्यूजीलैंड के खिलाफ अपनी अगुवाई में यह कारनामा किया था. नवाब मंसूर अली खान पटौदी के अब्बा नवाब इफ्तिखार अली पटौदी भी अपने दौर के जाने-माने क्रिकेटर थे. तब वे इंग्लैंड की ओर से खेलते थे.

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पटौदी की उम्र जब लगभग 11 साल थी तभी इनके अब्बा की मौत हो गई. अपने अब्बा के मौत के पश्चात् पटौदी अकेले रहने लगे. कुछ दिनों बाद अपने अकेलेपन को दुर करने के लिए पटौदी इंग्लैंड चले गए. वहां रहकर इन्होंने खूब मस्ती की. दोस्त बनाए, क्रिकेट खेला और हर शौक पूरा किया. एक जुलाई 1961 को इनके साथ बहुत बड़ी घटना घटी जिसमें इनको अपनी एक आंख गवानी पड़ी.

एक आंख खराब होने के बाद टाइगर ने अपनी जिंदगी के 6 महीने बिस्तर पर गुजारे, लेकिन हार नहीं मानी, और फिर दिसंबर 1961 में इंग्लैंड क्रिकेट टीम के खिलाफ अपने टेस्ट करियर का आगाज करते हुए पहले ही मैच में 103 रनों की बेहतरीन पारी खेली. पटौदी सिर्फ एक आंख से वेस्टइंडीज और इंग्लैंड के खतरनाक गेंदबाजों का आसानी से सामना करते थे. 8 फरवरी 1964 में दिल्ली में इंग्लैंड के खिलाफ खेली गई टेस्ट सीरीज में नवाब पटौदी ने दोहरा शतक जड़ा. इस मैच में उन्होंने 203 रन बनाए.

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मंसूर अली खान पटौदी ने अपने करियर में कुल 46 टेस्ट मैच खेले, जिनमें से 40 मैच उनकी कप्तानी में खेले गए. टाइगर ने अपने करियर में छह शतकों की मदद से कुल 2,793 रन बनाए. 22 सितंबर 2011 को उन्होंने दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया. नवाब पटौदी को शायद एक आंख की रोशनी जाने का दर्द मालूम रहा होगा, इसलिए जाते जाते अपनी सही आंख भी किसी और के लिए छोड़ गए. पटौदी ने मौत से पहले ही अपनी दूसरी आंख डोनेट करने का फैसला कर लिया था.