66th Nehru Trophy Boat Race 2018 Schedule: केरल की संस्कृति का अहम हिस्सा है 'वल्लमकली' बोट रेस , जानें इससे जुड़ी रोमांचक बातें
प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: File Photo)

पुरे विश्व में भारत अपनी संस्कृति, मौसम, प्रकृति के अद्भुत नजारों के लिए विख्यात है. हमारे यहां जब सावन का महीना आता है तो बारिश में सराबोर यहां के लोग अपनी खुशी को पर्व के रूप में मनाते हैं. पानी से जुड़े सबसे ज्यादा फेस्टिवल मानसून में आयोजित होते हैं. केरल की फेमस बोट रेस भी बारिश के मौसम में ही होती हैं. इस रेस को यहां 'वल्लमकली' कहते हैं जिसे देखने दुनियाभर से टूरिस्ट आते हैं.

केरल में अल्लपुझा के बैकवॉटर की पुन्नमड झील में होने वाली यह बोट रेस सबसे प्रसिद्ध है. ये रेस शनिवार सुबह 11:30 बजे से शुरू होगी. इस आयोजन में चुंदन वेलोम (स्नेक बोट) की पारंपरिक दौड़ के अलावा पानी पर झांकियां भी होती हैं. इस कॉम्पिटीशन के नजारे वाकई अद्भुत होते हैं. यह भी पढ़ें- जन्माष्टमी स्पेशल: बॉलीवुड के इन मधुर गीतों से मनाइए श्री कृष्णा जन्माष्टमी का त्यौहार

पय्यपड़ बोट रेस:

अलप्पुझा में ही पय्यपड़ नदी में एक अन्य बोट रेस होती है. केरल में नेहरू ट्रॉफी बोट रेस के बाद स्नेक बोट की सबसे बड़ी रेस यही है. इस रेस की शुरुआत हरीपाद मंदिर और सुब्रह्मण्य स्वामी मंदिर में मूर्ति की स्थापना से हुई. कहते इस मूर्ति स्थापना के दौरान वहां ग्रामीणों को एक सपना आया, जिसके बाद वे कायमकुलम झील में एक चक्रवात तक पहुंचे, जहां उन्हें मूर्ति प्राप्त हुई. उसी समय से यहां बोट रेस की परंपरा चली आ रही है.

इस रेस ने हमेशा समुदाय में एकता और भाईचारे को बढ़ाया है: 

नेहरू ट्रॉफी बोट रेस के दौरान आर्थिक दर्जे, सामाजिक रुतबे, जाति, धर्म और संप्रदाय के आधार बनी दूरियां खत्म हो जाती हैं। आजादी के बाद, जब भारतीय समाज में जातिगत भेदभाव की समस्या व्याप्त थी, लेकिन इस रेस ने सब खत्म कर दिया। यहां ट्रेनिंग के दौरान झील के किनारे होने वाले भोज के दौरान आप हिंदू, अनुसूचित जाति, क्रिश्चियन और मुस्लिमों को एक साथ बैठकर खाना खाते देख सकते हैं। यह रेस वैसे तो एक मंदिर से जुड़ी हुई है, लेकिन एक चर्च भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी लेता है। भारत को इस तरह की प्रतिस्पर्धाएं और भी करानी चाहिए। यह विश्व बंधुत्व की भाषा बोल