केरल उच्च न्यायालय ने हाल ही में इस बात पर जोर दिया कि अदालतों को हर उस मामले में बच्चे के पितृत्व का निर्धारण करने के लिए डीएनए परीक्षण का निर्देश नहीं देना चाहिए जहां पितृत्व विवादित है. कोर्ट ने कहा कि किसी बच्चे के पितृत्व पर महज विवाद ही डीएनए टेस्ट कराने का आदेश देने के लिए पर्याप्त नहीं है. न्यायालय ने कहा, पितृत्व का एक विशिष्ट खंडन होना चाहिए. न्यायमूर्ति ए बदहरुदीन ने कहा कि सिर्फ असाधारण मामलों में डीएनए परीक्षणों का आदेश दिया जा सकता है.

अदालत ने कहा, अन्य मामलों में, पक्षों को बच्चे के पितृत्व को साबित करने के लिए सबूत पेश करने का निर्देश दिया जाना चाहिए. उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि "केवल जब अदालत को ऐसे सबूतों के आधार पर निष्कर्ष निकालना असंभव लगता है या विवाद को डीएनए परीक्षण के बिना हल नहीं किया जा सकता है, तो वह डीएनए परीक्षण का निर्देश दे सकता है, अन्यथा नहीं."

उच्च न्यायालय ने पितृत्व परीक्षण के लिए उसकी याचिका को खारिज करने के पारिवारिक अदालत के फैसले के खिलाफ एक व्यक्ति की अपील को खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं. व्यक्ति (याचिकाकर्ता) ने अपनी अलग हो चुकी पत्नी के इस दावे का खंडन किया कि वह उसके बच्चे का पिता है. पत्नी ने व्यक्ति की याचिका पर आपत्ति जताई और कहा कि वह केवल गुजारा भत्ता देने से बचने के लिए बच्चे के पितृत्व पर विवाद कर रहा है. उच्च न्यायालय ने अंततः उस व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी और पारिवारिक अदालत के आदेश को बरकरार रखा.

(SocialLY के साथ पाएं लेटेस्ट ब्रेकिंग न्यूज, वायरल ट्रेंड और सोशल मीडिया की दुनिया से जुड़ी सभी खबरें. यहां आपको ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर वायरल होने वाले हर कंटेंट की सीधी जानकारी मिलेगी. ऊपर दिखाया गया पोस्ट अनएडिटेड कंटेंट है, जिसे सीधे सोशल मीडिया यूजर्स के अकाउंट से लिया गया है. लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है. सोशल मीडिया पोस्ट लेटेस्टली के विचारों और भावनाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करता है, हम इस पोस्ट में मौजूद किसी भी कंटेंट के लिए कोई जिम्मेदारी या दायित्व स्वीकार नहीं करते हैं.)