Hartalika Teej 2025: हरतालिका तीज व्रत क्यों रखा जाता है? जानें इसका महत्व, मुहूर्त, मंत्र एवं पूजा विधि इत्यादि के बारे में!
हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को हरतालिका तीज मनाया जाता है. इस दिन महिलाएं अपने पति के लंबे जीवन एवं मधुर दाम्पत्य जीवन की कामना के साथ शिव-पार्वती की रेत निर्मित प्रतिमा की पूजा करती हैं. यह व्रत सुबह के समय करते हैं, लेकिन जो सुबह पूजा नहीं कर सकते, वे प्रदोष काल में शिव-पार्वती की पूजा कर सकते हैं.
हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को हरतालिका तीज (Hartalika Teej) मनाया जाता है. इस दिन महिलाएं अपने पति के लंबे जीवन एवं मधुर दाम्पत्य जीवन की कामना के साथ शिव-पार्वती की रेत निर्मित प्रतिमा की पूजा करती हैं. यह व्रत सुबह के समय करते हैं, लेकिन जो सुबह पूजा नहीं कर सकते, वे प्रदोष काल में शिव-पार्वती की पूजा कर सकते हैं. इस बार हरतालिका तीज व्रत तिथि को लेकर दुविधा है. यह व्रत 26 अगस्त को है या 27 अगस्त को? आइये जानते हैं हरतालिका तीज व्रत की मूल तिथि, मुहूर्त, महत्व एवं पूजा विधि इत्यादि के बारे में...
जानें हरतालिका व्रत की तिथि एवं पूजा के शुभ मुहूर्त के बारे में
भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया प्रारंभः 12:34 PM, (25 अगस्त 2025) से
भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया समाप्तः 01:54 PM, (25 अगस्त 2025) तक
उदया तिथि के अनुसार 26 अगस्त 2025 को हरतालिका व्रत रखा जाएगा.
हरितालिका पूजा मुहूर्तः 05.56 AM से 08.31 AM
पूजा की कुल अवधिः 02 घण्टे 35 मिनट
हरतालिका व्रत का महत्व
हरतालिका तीज मां पार्वती की शिव को पति के रूप में पाने की भक्ति और दृढ़ संकल्प का सम्मान के लिए समर्पित है. हरतालिका शब्द, ‘हरत’ और ‘आलिका’ से मिलकर बना है, जिसमें हरत अर्थात हरण (अपहरण) और आलिका अर्थ सहेली होता है. हरतालिका व्रत की कथा में वर्णित है कि जब देवी पार्वती की शादी उनकी जानकारी बिना विष्णुजी से हो रही थी, तब उनकी सहेलियों ने पार्वती जी का अपहरण कर उन्हें हिमालय में छिपा दिया. उन्हें पता था कि पार्वती शिव जी को पति रूप में पाने हेतु कठिन तपस्या कर रही हैं. मान्यता है कि भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को देवी पार्वती ने अपने बालों और पत्तियों से शिवलिंग बनाया, और दृढ़ संकल्प एवं कड़ी तपस्या से शिव जी को प्रभावित किया, अंततः भगवान शिव देवी से विवाह करने के लिए सहमत हुए. शिव-पार्वती के इस मिलन को देवी पार्वती के पिता हिमालय ने भी अपनी सहमति जताई.
हरतालिका व्रत की पूजा-विधि
भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया के दिन व्रती महिलाएं सूर्योदय से पूर्व तिल और आमलक चूर्ण से स्नान करें. स्वच्छ वस्त्र धारण करें. शिव-पार्वती को प्रसन्न करने हेतु हरितालिका व्रत का संकल्प लें. इस दिन निर्जल व्रत का विधान है. पूजा मुहूर्त पर शिव-पार्वती की मिट्टी की पूजा स्थल पर शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें. सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा करें, इसके पश्चात देवी पार्वती एवं भगवान शिव की षोडशोपचार पूजा करें. सर्वप्रथम धूप-दीप जलाएं. निम्न मंत्र का पाठ करें.
'उमा महेश्वर सायुज्य सिद्धये हरतालिका व्रतमहं करिष्ये',
देवी पार्वती को सुहाग की सारी वस्तुएं अर्पित करें. प्रसाद में फल, मिष्ठान अर्पित करें. अब भगवान को पुष्प, जल, अक्षत, रोली, चंदन, वस्त्र, पान, सुपारी तथा सुहाग की वस्तुएं अर्पित करें. शिव चालीसा का पाठ करें. हरतालिका तीज की व्रत कथा सुनें. अंत में शिवजी एवं देवी पार्वती की आरती उतारें. अगले दिन व्रत का पारण करें, लेकिन इससे पूर्व ब्राहणों को दक्षिणा अवश्य दें.