Lalita Jayanti 2024: कब और क्यों मनाई जाती है ललिता जयंती? जानें इसका महत्व, उत्सव एवं ललिता देवी के संदर्भ में पौराणिक कथा!

देवी पुराण में ललिता देवी का विशेष उल्लेख है. श्रद्धालु ललिता जयंती पर आध्यात्मिक विकास, समृद्धि एवं समग्र कल्याण के लिए देवी का आशीर्वाद पाने की मनोकामनाएं करते हैं.

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हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष माघ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ललिता जयंती मनाई जाती है. शास्त्रों के अनुसार माता ललिता को 10 महाविद्याओं में से तीसरी महाविद्या माना जाता है. ललिता जयंती पर जो श्रद्धालु पूरी श्रद्धा एवं समर्पण के साथ व्रत एवं अनुष्ठान करते हैं, देवी ललिता के आशीर्वाद से उन्हें सौभाग्य एवं पूर्णता की प्राप्ति होती है. ललिता जयंती के अवसर पर श्रद्धालु व्रत रखते हैं एवं भक्ति भाव से ललिता जयंती का उत्सव मनाते हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 24 फरवरी 2024, शनिवार को ललिता जयंती मनाई जाएगी. आइये जानते हैं देवी पुराण के अनुसार कौन हैं ललिता देवी और क्या महत्व है साथ ही जानें उनकी जयंती, एवं उत्सव सेलिब्रेशन आदि..

ललिता जयंती की तिथि एवं मुहूर्त

माघी पूर्णिमा प्रारंभः 03.33 PM (23 फरवरी 2024, शुक्रवार)

माघी पूर्णिमा समाप्तः 05.59 PM (24 फरवरी 2024, शनिवार)

क्यों मनाई जाती है ललिता जयंती?

मान्यता है कि देवी ललिता की पूजा करने से सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं. मां ललिता को राजेश्वरी, षोडशी, त्रिपुर सुंदरी आदि नामों से भी जाना जाता है. ललिता जयंती के दिन देवी ललिता का व्रत एवं पूजा-अनुष्ठान करने से जातक को मोक्ष की प्राप्ति होती है, तथा व्यक्ति जन्म एवं मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है, इसलिए ललिता जयंती पर ललिता देवी की सच्ची आस्था, श्रद्धा एवं पूर्ण समर्पण से पूजा की जाती है.

देवी ललिता की पौराणिक कथा?

देवी पुराण के अनुसार एक बार नैमिषारण्य में यज्ञ हो रहा था. राजा दक्ष ने देखा उनके सम्मान में सारे देवता खड़े हो गये, मगर शिवजी नहीं खड़े हुए. क्रोधित हो दक्ष ने शिवजी को अपने महायज्ञ में नहीं बुलाया. शिवजी की अनुमति लिए बिना देवी सती यज्ञ में पहुंच गईं, लेकिन दक्ष द्वारा शिवजी का अपमान करने पर सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर आत्मदाह कर लिया. शिवजी को यह बात पता चली, तो उनके गणों ने महायज्ञ को विध्वंस कर दिया. शिवजी सती के शव को कंधे पर उठाकर ब्रह्मांड में भ्रमण करने लगे, सृष्टि की सारी गतिविधियां रुक गई. तब विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव के टुकड़े-टुकड़े कर शिवजी को सती-मोह से मुक्त कराया, इस प्रकार जहां-जहां शव के टुकड़े गिरे, वहीं शक्तिपीठ की स्थापना हुई. भगवान शिव को हृदय में धारण करने के कारण सती नैमिष में लिंग्धारिणी नाम से विख्यात हुईं, इन्हें ललिता देवी के नाम से पुकारा जाने लगा.

ललिता जयंती महोत्सव

ललिता जयंती पर शक्ति स्वरूपा मां ललिता की पूजा की जाती है. इस दिन श्रद्धालु उपवास रखते हैं और देवी ललिता की पूजा-अनुष्ठान करते हैं. ललिता देवी का स्वरूप बहुत उज्जवल और दिव्यमान है. कालिका पुराण के अनुसार देवी की दो भुजाएं हैं, वह गौर वर्ण की, रक्तिम कमल पर विराजित हैं. ललिता देवी की विधि-विधान से पूजा करने से सुख एवं समृद्धि की प्राप्त होती है. दक्षिणमार्गी शाक्तों के मतानुसार देवी ललिता को चंडी का स्थान प्राप्त है. इनकी पूजा पद्धति देवी चण्डी के समान की जानी चाहिए. इनकी पूजा के साथ ललितोपाख्यान, ललिता सहस्रनाम, ललिता त्रिशती का पाठ किया जाता है. दुर्गा का एक रूप भी ललिता के नाम से पुकारा जाता है

 

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