Lalita Panchami 2019: हिन्दू कैलेंडर के अनुसार आश्विन शुक्लपक्ष के पांचवें दिन शक्तिस्वरूपा ललिता देवी (Lalita Devi) की पूजा-अर्चना की जाती है. इसे ‘ललिता पंचमी’ (Lalita Panchami) अथवा ‘ललिता पूर्णिमा’ के नाम से जाना जाता है. चूंकि यह पर्व शारदीय नवरात्रि में पड़ता है, इसलिए इस व्रत का महात्म्य नवरात्रि के अन्य दिनों से ज्यादा होता है. इस दिन श्रद्धालु ललिता देवी का व्रत रखते हैं और विधि-विधान के साथ इनका पूजा-अनुष्ठान करते हैं. इस दिन प्रयागराज स्थित ललिता देवी मंदिर (Lalita Devi Temple) में अभूतपूर्व मेला लगता है.
इसी संदर्भ में उपांग ललिता शक्ति का वर्णन पुराणों में वर्णित है. जिसके अनुसार पिता दक्ष द्वारा अपमान से आहत पुत्री सती अग्निदाह कर लेती है. सती के वियोग में भगवान शिव उनका पार्थिव शव अपने कंधों में उठाए चारों दिशाओं में घूमते हैं. तब भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र से सती की देह को विभाजित करते हैं. इसी स्थल पर माता सती के हाथों की उंगली गिरी थी, इसीलिए इन्हें उपांग ललिता देवी कहते हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस 2 अक्टूबर को ललिता पंचमी है.
ललिता पंचमी का महात्म्य
शिव महापुराण में ललिता पंचमी के व्रत एवं अनुष्ठान का विशेष महत्व बताया गया है. मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस दिन ललिता देवी का व्रत, पूजा एवं दर्शन करता है, देवी की उस पर विशेष कृपा बरसती है, उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. शक्तिरूपिणी ललिता देवी की कृपा से व्रत रखने वाले के जीवन में सर्वदा सुख शांति एवं समृद्धि बनी रहती है. उपांग ललिता पंचमी आश्विन मास के शुक्लपक्ष के पांचवे नवरात्र पर मनाई जाती है. इस दिन श्रद्धालु मां उपांग ललिता देवी का व्रत रखते हुए प्रातःकाल देवी की पूजा-अनुष्ठान करते हैं. महाशक्ति की देवी होने के कारण माँ की पूजा बड़ी श्रद्धा एवं निष्ठा के साथ की जाती है. कालिकापुराण के अनुसार देवी की दो भुजाएं हैं, यह गौर वर्ण की, लाल रंग के कमल पर विराजती हैं. विद्वानों के अनुसार देवी ललिता को चण्डी का स्थान प्राप्त है. इनकी पूजा देवी चण्डी के समान की जाती है और पूजा के दरम्यान ललिता सहस्रनाम और ललितात्रिशति का पाठ किया जाता है. यह भी पढ़ें: Kumbh Mela 2019: कुंभ मेले में जाएं तो ललिता देवी शक्तिपीठ के दर्शन करना न भूलें, जहां गिरी थीं माता सती के हाथों की 3 उंगलियां
पौराणिक कथा
नवरात्रि शक्ति-पर्व के रूप में विख्यात है और ललिता पंचमी के बारे भी कहा जाता है कि वह भांडा नामक राक्षस का संहार करने के लिए अस्तित्व में आयी थी, क्यों कि भांडा राक्षस के अत्याचार से सभी लोग पीड़ित थे. ललिता पंचमी का उल्लेख शिव महापुराण में विस्तार से किया गया है. इसी महापुराण के अनुसार दुष्ट राक्षस भांडा का वध करने के लिए ललिता देवी इसी दिन यानी अश्विन मास के शुक्लपक्ष की पंचमी के दिन प्रकट हुई थीं. कहा जाता है कि राक्षस भांडा की उत्पत्ति कामदेव के शरीर के राख से हुई थी. नवरात्रि का व्रत एवं पूजा अनुष्ठान रखने वाले इस दिन स्कंदमाता की पूजा करते हैं.