Varuthini Ekadashi Vrat 2022: वरूथिनी एकादशी को श्रीहरि के वामन अवतार की होती है पूजा! जानें व्रत का महात्म्य, व्रत-अनुष्ठान के नियम एवं व्रत कथा!

वैशाख मास के कृष्णपक्ष के 11वें दिन वरुथिनी एकादशी का व्रत एवं पूजा करने का विधान है. इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है. वरुथिनी अथवा बरुथिनी का शाब्दिक अर्थ है ‘संरक्षित’. मान्यता है कि विष्णु भक्त वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से किसी भी किस्म की बुरी अथवा नकारात्मक शक्तियों से का विनाश होता है, तथा जीवन में सुख, समृद्धि एवं सौभाग्य आता है.

वरुथिनी एकादशी 2022 (Photo Credits: File Image)

वैशाख मास के कृष्णपक्ष के 11वें दिन वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) का व्रत एवं पूजा करने का विधान है. इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है. वरुथिनी अथवा बरुथिनी का शाब्दिक अर्थ है ‘संरक्षित’. मान्यता है कि विष्णु भक्त वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से किसी भी किस्म की बुरी अथवा नकारात्मक शक्तियों से का विनाश होता है, तथा जीवन में सुख, समृद्धि एवं सौभाग्य आता है. अमूमन वरुथिनी एकादशी अप्रैल अथवा मई माह में पड़ती है, इस वर्ष 2022 को यह वरुथिनी एकादशी 26 अप्रैल दिन मंगलवार को पड़ रहा है. आइये जानें, क्या है इस व्रत का महात्म्य, पूजा विधि एवं व्रत कथा?

वरूथिनी एकादशी का महात्म्य?

विष्णु पुराण में वरुथिनी एकादशी व्रत का महात्म्य वर्णित है. मान्यता है कि वरुथिनी एकादशी व्रत का विधि-विधान से व्रत एवं पूजा करने से भक्त के बुरे दिन समाप्त हो जाते हैं और सुख एवं ऐश्वर्य के साथ जीवन जीने के बाद मोक्ष प्राप्त करते हैं. वरुथिनी एकादशी के दिन दान-पुण्य करने से भक्त अपने पूर्वजों एवं देवताओं के आशीर्वाद से अक्षुण्य पुण्य का प्राप्ति होती है.

वरूथिनी एकादशी व्रत एवं अनुष्ठान के नियम?

एकादशी के नियमों के अनुसार दशमी तिथि की संध्याकाल में सात्विक भोजन करना चाहिए, अगले दिन यानी वरूथिनी एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र पहनें. भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए एकादशी व्रत एवं पूजा का संकल्प लेते हुए विशेष प्रार्थना (मनोकामना) करें. एक छोटी चौकी को पानी से धोकर पूजा स्थल के सामने रखकर उस पर पीले रंग का आसन बिछाएं. इस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित गंगाजल से स्नान कराएं. विष्णुजी के समक्ष धूप-दीप जलाकर उनके आह्वान संबंधित मंत्रोच्चारण करें.

मंगलम भगवान विष्णु मंगलम गरुड़ ध्वजा

मंगलम पुंडरीकाक्ष मंगलाय तनो हरी ।

अब विष्णु जी के मस्तक पर रोली और अक्षत का तिलक लगाने के पश्चात उन्हें फूलों का हार पहनाएं, तुलसी दल, पीला चंदन, नारियल, सुपारी, पान पीला पुष्प, पीले रंग की खोये की मिठाई, मौसमी फल अर्पित करें. महिलाएं सिंदूर लगाएं. विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें और अंत में विष्णु जी की आरती उतारें. पूरे दिन फलाहारी उपवास रखते हुए ज्यादा से ज्यादा समय भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी का ध्यान एवं भजन-कीर्तन करें.

पूजा का शुभ मुहूर्त एवं ब्रह्म योग का समय

पूजा का शुभ मुहूर्तः 11.53 A.M. से 12.45 PM तक

इस बार वरुथिनी एकादशी के दिन प्रातःकाल से ब्रह्म योग बन रहा है. ब्रह्म योग प्रात काल से शुरु होकर शाम 07.06 बजे तक रहेगा.

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा

धर्म कथाओं के अनुसार एक बार भगवान शिव ने क्रोधित होकर ब्रह्मा जी का पांचवा सिर काट दिया. ब्रह्मा जी ने पश्चाताप करते हुए भगवान शिव को याद कर छमा याचना करते हुए श्राप से मुक्ति होने का उपाय पूछा. शिवजी ने कहा वैशाख मास के कृष्णपक्ष की 11वीं तिथि के दिन बरुथिनी एकादशी का उपवास एवं पूजा अनुष्ठान करने का सुझाव दिया. शिवजी के इस सुझाव पर ब्रह्मा जी ने पूरे विधि-विधान से बरुथिनी एकादशी का व्रत एवं पूजा किया. इस तरह वे शिवजी के श्राप से मुक्त हुए. मान्यता है कि बरुथिनी एकादशी का विधि-विधान से पूजा एवं व्रत करने से एक हजार साल की तपस्या के समान पुण्य की प्राप्ति होती है.

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