वरुथिनी एकादशी का ही अपभ्रंश है बरुथनी एकादशी, जो हिंदू कैलेंडर माह वैशाख माह कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीहरि एवं माता लक्ष्मी की संयुक्त पूजा एवं व्रत करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है, साथ ही सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. बहुत से लोग इस दिन रामचरितमानस का पाठ अथवा श्री सत्यनारायण भगवान की कथा का आयोजन भी करते हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 3 मई 2024 को वरूथिनी एकादशी मनाई जाएगी. आइये जानते हैं वरुथिनी एकादशी के महत्व, मंत्र, मुहूर्त, पूजा विधि एवं व्रत कथा इत्यादि के बारे में.. Vikata Sankashti Chaturthi 2024: कब है विकट संकष्टी चतुर्थी? इस दिन क्यों पढ़ते हैं गणेश कवच? जानें क्या है गणेश कवच एवं इसका महात्म्य!
वरुथिनी एकादशी की मूल तिथि एवं शुभ मुहूर्त
वैशाख कृष्ण पक्ष एकादशी प्रारंभः 11.24 PM (03 मई 2024 शुक्रवार)
वैशाख कृष्ण पक्ष एकादशी प्रारंभः 08.38 PM (04 मई 2024 शनिवार)
इस तरह उदया तिथि के मानकों के अनुसार वरूथिनी एकादशी 04 मई को मनाई जाएगी.
व्रत का पारणः 05.37 AM से 08.17 AM तक (05 मई 2024 रविवार)
मनोरथ पूर्ति को लिए इन शुभ योगों में करें वरुथिनी एकादशी पूजा
वरूथिनी एकादशी के दिन तीन अत्यंत शुभ योगों का निर्माण हो रहा है. इन शुभ योगों में व्रत एवं पूजा करने से भगवान श्रीहरि का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है.
त्रिपुष्कर योगः 08.38 PM 10.07 PM तक
इंद्र योगः सूर्योदय से 11.04 AM तक
वैधृत योगः 11.04 AM तक के बाद पूरे दिन रहेगा
एकादशी व्रत पूजा विधि
एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्ति होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान भास्कर को जल चढ़ाएं. मंदिर की सफाई कर गंगाजल का छिड़काव करें. एक चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाकर श्रीहरि एवं माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें, और धूप-दीप प्रज्वलित कर निम्न मंत्र का जाप करते हुए पूजा प्रारंभ करें.
'ॐ गोपाय स्वाहा'
अब श्रीहरि को पीला फूल, पीला चंदन, पान, सुपारी, तुलसी दल और अक्षत अर्पित करें और माता लक्ष्मी को लाल चुनरी चढ़ाएं. भोग में केसर की खीर, दूध की मिठाई एवं फल चढ़ाएं. अब श्रीहरि एवं माता लक्ष्मी के सामने हाथ जोड़कर पूजा-अनुष्ठान में हुई गल्तियों के लिए छमा याचना करें, अंत में श्रीहरि की आरती उतारें, और प्रसाद का वितरण करें. अगले दिन मुहूर्त के अनुसार स्नान-ध्यान के पश्चात पारन करें.
वरुथिनी एकादशी व्रत कथा
प्राचीनकाल में नर्मदा तट पर तपस्वी राजा मान्धाता का राज्य था. एक दिन वह वन में तप कर रहे थे, अचानक एक भालू उन्हें खींचते हुए जंगल में ले गया. राजा भयभीत हुए, मगर तप-नियमों के अनुसार उन्होंने क्रोध या हिंसा करने के बजाय श्रीहरि को याद किया. श्रीहरि प्रकट हुए, उन्होंने चक्र से भालू को मार डाला. भालू ने राजा का पैर चबा डाला था, श्रीहरि ने कहा, वत्स मथुरा जाकर वरूथिनी एकादशी के व्रत के साथ मेरे वराह अवतार की प्रतिमा का पूजा करो. भालू का काटना तुम्हारे पूर्व जन्म के पाप का फल था. राजा ने मथुरा जाकर वैसा ही किया. व्रत के प्रभाव से राजा का पैर पहले से स्वस्थ एवं सुंदर हो गया. कहने का आशय जो भी व्यक्ति किसी भय से पीड़ित है, उसे वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से सारे भय समाप्त होते हैं और उसे मोक्ष मिलता है.