हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख माह के कृष्णपक्ष की एकादशी को बरुथिनी एकादशी कहते हैं. इस बार वरुथिनी एकादशी में वैधृति योग के साथ विष्कुंभ योग भी बन रहा है. ज्योतिष शास्त्र में वैधृति व विष्कुंभ योग के दौरान शुभ कार्यों करने पर सफलता नहीं मिलती. इसलिए इस योगकाल में शुभ कार्य नहीं करना चाहिए. लेकिन शुभ मुहूर्त पर इस व्रत को विधि-विधान से करने से पूर्व एवं इस जन्म के पाप मिट जाते हैं. आज शुक्रवार का दिन होने से इस व्रत का महात्म्य बढ़ जाता है, क्योंकि आज का दिन विष्णु प्रिया मां लक्ष्मी को समर्पित माना जाता है. जानें इस पूजा का महत्व, पूजा विधि, मुहूर्त एवं क्या है पौराणिक कथा.
वरुथिनी एकादशी महत्व
हिंदू धर्म में मान्यता है कि वरुथिनी एकादशी के दिन श्रीहरि के नाम से उपवास रखने एवं विधिवत पूजा-अर्चना करने से समस्त कष्टों से मुक्ति मिलती है, दरिद्रता दूर होती है.ऐसी भी मान्यता है कि इस व्रत को करने से कन्यादान एवं हजारों सालों के तप के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है, तथा घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है, तथा देह-त्यागने के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है.
पूजा विधि
एकादशी की प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान-ध्यान कर सूर्य को अर्घ्य देते हुए इस मंत्र का जाप करें. ‘ऊँ सूर्याय नम:’ अब भगवान विष्णु के व्रत का संकल्प लेते हुए, बताये गये मुहूर्त पर भगवान विष्णु जी के मंदिर में जाकर दक्षिणावर्ती शंख से विष्णु जी का अभिषेक करते हुए पूजा शुरु करें. सर्वप्रथम विष्णु जी के सामने धूप-दीप प्रज्जवलित करते हुए उन्हें चंदन का तिलक लगायें. फूलों का हार पहनाकर पांच मौसमी फल, तुलसी अर्पित करें. इस दरम्यान निरंतर ‘ऊँ नमों भगवते वासुदेवाय नम:’ का मंत्र जपते रहें. इसके पश्चात कथा का वाचन कर भगवान विष्णु जी की आरती उतारें. पूजा सम्पन्न होने के पश्चात ब्राह्मण अथवा गरीबों को श्रद्धा एवं सामर्थ्य के अनुसार दान दें और व्रत का पारण करें. यह भी पढ़ें : Varuthini Ekadashi 2021 HD Images: शुभ वरुथिनी एकादशी! शेयर करें भगवान विष्णु के ये WhatsApp Stickers, Facebook Greetings, Photos और वॉलेपपर्स
पौराणिक कथा
प्राचीनकाल में नर्मदा नदी के किनारे मांधाता नामक दानवीर राजा थे. वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे. एक बार राजा जंगल में एक वृक्ष के नीचे कठिन तपस्या में लीन थे. तभी एक जंगली भालू ने उन पर हमला कर उनका पैर चबाने लगा. तपस्या में लीन राजा ने बिना विरोध किये विष्णुजी से इस संकट से उबारने की प्रार्थना की. विष्णु जी प्रकट हुए और सुदर्शन चक्र भालू का सर काट दिया, लेकिन तब तक राजा के पैरों को भालू चबा चुका था. दर्द से कराहत राजा को देख विष्णु जी ने कहा -वत्स विचलित न हो, वैशाख मास के कृष्णपक्ष की एकादशी, जो वरुथिनी एकादशी के नाम से जानी जाती है, उस दिन तुम व्रत रहते हुए मेरे वराह रूप की पूजा करना. तुम्हारे पैर पहले जैसे हो जायेंगे. भालू ने तुम्हारे साथ जो किया है, यह तुम्हारे पूर्वजन्म के पापों का फल है. इस वरुथिनी एकादशी के व्रत से तुम्हें सारे पापों से मुक्ति मिल जायेगी. राजा मांधाता ने वैसा ही किया. व्रत का पारण करते ही वह पहले की तरह हष्ट-पुष्ठ हो गया.
शुभ मुहूर्त में करें पूजा
ब्रह्म मुहूर्त- 04.00 AM से 04.43 AM, तक, (08.05.2021)
अभिजित मुहूर्त- 11.39 AM से 12.32 PM तक, (08.05.2021)
विजय मुहूर्त- 02.18 PM से 03:11 PM तक, (08.05.2021)