देश अपनी आजादी (15 अगस्त 1947) की 77वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है. सरकारी और गैरसरकारी संस्थाएं जश्न की योजनाएं बना रही हैं. हम जानते हैं कि यह आजादी हमें आसानी से नहीं मिली है. हजारों क्रांतिकारियों ने कुर्बानियां दी हैं. यहां ऐसे ही एक क्रांतिकारी की बात कर रहे हैं, जिसने जलियांवाला बाग नृशंस हत्याकांड के मुख्य अपराधी को उसी के देश में जाकर मौत की सजा दी. जी हां हम क्रांतिकारी उधम सिंह की बात कर रहे हैं. आज उनकी पुण्यतिथि 84वीं (31 जुलाई) पर आइये जानते हैं उनके जीवन के अदम्य साहस की गाथा और कुछ रोचक फैक्ट.
जन्म और शिक्षा
उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को एक कंबोज सिख परिवार में हुआ, उनका नाम शेर सिंह रखा गया. लेकिन माता-पिता (तहल सिंह और नारायण कौर) की काफी कम उम्र में मृत्यु होने के कारण शेर सिंह और उनके बड़े भाई मुक्ता सिंह को अमृतसर में सेंट्रल खालसा अनाथालय पुतलीघर में शरण लेनी पड़ी. अनाथालय में पलते-बढ़ते सिंह भाइयों ने सिख दीक्षा संस्कार दिये गये. यहीं उन्हें शेर सिंह से उधम सिंह नाम दिया गया. इस नाम परिवर्तन के साथ-साथ संपूर्ण व्यक्तित्व अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ क्रांतिकारी परिवर्तन ने भी जन्म लिया, और उन्होंने देश को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी दिलाने की कसम खाई. यह भी पढ़ें : ओडिशा: सतर्कता अधिकारियों ने वरिष्ठ आबकारी अधिकारी की छह इमारतों और 52 भूखंडों का लगाया पता
जब 20 वर्षीय उधम सिंह ने खाई कसम
13 अप्रैल 1919, स्वर्ण मंदिर (पंजाब) के निकट जलियांवाला बाग में ब्रिटिश हुकूमत के जबरन थोपे कानून रॉलेट एक्ट के विरोध में आम सभा हो रही थी. बैसाखी का दिन होने के कारण वहां भारी तादाद में बच्चे और महिलाएं भी थीं. शांत पूर्ण चल रहे इस सभा पर अचानक ब्रिटिश अधिकारी जनरल डायर ने अंधाधुंध गोलियां चलवा दी. बाग का मुख्य फाटक बंद होने किसी को बाहर निकलने का अवसर नहीं मिला. इस भीषण गोलीकांड में 388 लोग मारे गये और करीब 12 सौ से ज्यादा लोग घायल हुए. जलियांवाला बाग की दशा देख 20 वर्षीय उधम रो पड़े. उन्होंने वहां की मिट्टी हाथ में लेकर कसम खाई कि जनरल डायर को वे अकेले सजा देंगे.
ऐसे मकसद में कामयाब हुए उधम
जनरल डायर को सबक सिखाने उसके पीछे लग गये. रिटायरमेंट के बाद डायर लंदन चला गया. 1934 में उधम भी लंदन पहुंचे. उन्होंने 9 एल्डर स्ट्रीट, कमर्शियल रोड स्थित एक घर में रहकर डायर की गतिविधियों पर नजर रखने लगे. 13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और सेंट्रल एशियन सोसायटी की मीटिंग में डायर भी उपस्थित था. खबर मिलते ही उधम ने पुस्तक के अंदरूनी हिस्से में पिस्तौल छिपाई और कैक्सटन हाल में पहुंच गये. मीटिंग खत्म कर डायर कुछ बोलने के लिए माइक के पास पहुंचा. उधम सिंह ने पलक झपकते रिवॉल्वर निकाली. दो गोलियां उसके सीने में उतार दिया. डायर ने पल भर में दम तोड़ दिया.
शहादत
संकल्प पूरा होने के साथ उन्होंने स्वेच्छा से खुद को पुलिस के हवाले कर दिया. लंदन में ही उन पर मुकदमा चला. 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया. 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई.
उधम सिंह संदर्भित कुछ रोचक फैक्ट्स!
* जनरल डायर को गोली मारने के बाद, उधम सिंह ने आत्मसमर्पण कर दिया. ब्रिटिश पुलिस उन्हें ब्रिक्सटन जेल ले गयी.
* डायर की हत्या के बाद हिरासत में उन्हें ‘राम मोहम्मद सिंह आज़ाद’ नाम का इस्तेमाल किया, जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतिनिधित्व करता था.
* देश के नाम शहादत देनेवाले उधम सिंह को श्रद्धांजलि स्वरूप उत्तराखंड सरकार ने एक जिले का नाम उधम सिंह नगर रखा.
* उधम सिंह द्वारा डायर की हत्या में प्रयुक्त हथियार (चाकू, गोलियां, एवं डायरी) स्कॉटलैंड यार्ड के ब्लैक म्यूजियम में रखे हैं.
* ब्रिटिश कोर्ट में मुकदमे की प्रतीक्षा के दौरान उधम सिंह 42 दिनों तक भूख हड़ताल पर थे. 43वें दिन अंग्रेजों ने उन्हें जबरन खाना खिलाया.