सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण एक सच्ची खगोलीय घटना है. बस इसे मानने या स्वीकारने की सबकी अपनी सोच और अपना विश्वास है. यह सर्वदा सत्य है कि ब्रह्माण्ड में सभी ग्रह एवं उपग्रह गतिशील हैं. इसी प्रक्रिया में पृथ्वी सूरज की परिक्रमा करती है और चंद्रमा पृथ्वी की. इसी क्रम में सूर्य और पृथ्वी के बीच में जब चन्द्रमा आ जाता है तो पृथ्वी पर कुछ समय के लिए एक साया-सा फैल जाता है, इस घटना को ही ‘सूर्य ग्रहण’ का नाम दिया गया है. यह आमतौर पर अमावस्या के ही दिन होता है. ग्रहण का आध्यात्म एवं विज्ञान दोनों ही क्षेत्रों में काफी महत्व है. हमारे हिंदू शास्त्रों में सूर्य ग्रहण के दिन होनेवाली तमाम घटनाओं के बारे में विस्तार से बताया गया है. साथ ही इसके धार्मिक पहलुओं पर भी कई रोचक गाथाएं उल्लेखित हैं.
ज्योतिष शास्त्र की नजर में सूर्य ग्रहण
ज्योतिष शास्त्र में सूर्य अथवा चंद्र ग्रहण प्रकृति का दिव्य एवं अलौकिक चमत्कार माना गया है. ज्योतिष के दृष्टिकोण से यह अद्भुत, अनोखा, ज्ञानवर्धन, ग्रहों और उपग्रहों की गतिविधियां एवं उनके EN स्वरूप को स्पष्ट करता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य ग्रहण तब होता है, जब सूर्य आंशिक अथवा पूर्ण रूप से चंद्रमा द्वारा अवरोध उत्पन्न होता है. इस तरह ग्रहण के लिए चंद्रमा का पृथ्वी और सूर्य के बीच आना आवश्यक है. ज्योतिष विज्ञान के अनुसार सूर्य ग्रहण के लिए कुछ बातें बहुत जरूरी है. मसलन उस दिन अमावस्या हो, चद्रमा का रेखांश राहु या केतु के पास हो, तथा चंद्रमा का अक्षांश शून्य के करीब हो.
वेदों के अनुसार सूर्य ग्रहण
हमारे वेद-पुराण बताते हैं कि प्राचीनकाल में हमारे ऋषि-मुनियों को ग्रह नक्षत्रों की हर घटनाओं की पल-पल की जानकारी रहती थी. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार महर्षि अत्रि को ग्रहण का ज्ञान देने वाले पहले आचार्य के रूप में जाना जाता है. ऋग्वेद के एक मंत्र में यह चमत्कार उल्लेखित भी है. इस मंत्र का आशय है, -हे सूर्य! राहु ने आप पर आक्रमण कर आपको अन्धकार से ढंक दिया है. इस वजह से मनुष्य आपको पूरी तरह से देख नहीं पाने से हतप्रभ एवं चिंतित हैं. तब महर्षि अत्रि अपने ज्ञान से छाया को हटाकर सूर्य का उद्धार करते हैं.
पुराणों में उल्लेखित सूर्यग्रहण
मत्स्य पुराण के अनुसार, सूर्य ग्रहण का संबंध राहु-केतु और उनके द्वारा अमृत पाने की कथा से है. मान्यता है कि समुद्र मंथन में जब अमृत-कलश निकला और भगवान विष्णु मोहिनी रूप धारण कर चालाकी से देवताओं को ही अमृत पिला रहे थे, तब स्वरभानु नामक दैत्य अमृत पीने की लालच में वेष बदलकर सूर्य और चंद्रमा के बीच में बैठ गया. लेकिन मोहिनी बने भगवान विष्णु ने उसे पहचान लिया. तब तक स्वरभानु के कंठ तक अमृत की बूंदे जा चुकी थीं. भगवान विष्णु ने तत्काल अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट दिया. लेकिन चूंकि वह दैत्य अमृत पी चुका था, इसलिए वह मरकर भी अमर हो गया. उस दैत्य का सिर राहु और धड़ केतु कहलाया. मान्यतानुसार तभी से जब भी सूर्य और चंद्रमा पास आते हैं राहु-केतु के प्रभाव से ग्रहण लग जाता है.
सूर्यग्रहण का वैज्ञानिक पहलू
वैज्ञानिकों के अनुसार, सूर्यग्रहण एक खगोलीय सत्यनिष्ठ एवं अवश्यंभावी घटना है. चंद्रमा जब परिक्रमा करते हुए सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है तो सूर्य की तेज रोशनी चंद्रमा के कारण धुमिल हो जाती है या दिखाई नहीं पड़ती. सूर्य पूर्ण या आंशिक रूप से ढकने लगता है. इसे ही सूर्यग्रहण कहते हैं.
महाभारत में सूर्यग्रहण का व्याख्यान
सूर्य ग्रहण का महाभारत के साथ कुछ विशेष संबंध माना जाता है. कहा जाता है कि जिस दिन महाभारत शुरू हुआ उस दिन सूर्य ग्रहण लगा हुआ था. जब महाभारत का युद्ध मध्यकाल यानी चरम पर था, तब भी सूर्य ग्रहण लगा हुआ था और युद्ध के आखिरी दिन भी सूर्य ग्रहण था. इस तरह 3 ग्रहणों से ग्रस्त होने के कारण ही महाभारत का युद्ध इतना भीषण युद्ध हुआ. एक घटना के अनुसार महाभारत के दौरान जब जयद्रथ ने अर्जुन की अनुपस्थिति में चक्रव्यूह रचकर अभिमन्यु का वध किया था तभी अर्जुन ने प्रतिज्ञा ली थी कि वह सूर्यास्त के पहले जयद्रथ को मार देंगे वरना अग्नि में जलकर भस्म हो जाएंगे. कौरवों ने जयद्रथ को बचाने के लिए सुरक्षा घेरा बना लिया था. लेकिन अचानक सूर्यग्रहण आ जाने के कारण सर्वत्र अंधेरा हो गया. तभी जयद्रथ ठहाके लगाते हुए अर्जुन के सामने आकर कहा कि अब तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते. अब अपनी प्रतिज्ञानुसार तुरंत अग्नि में प्रवेश करो. इसी बीच ग्रहण खत्म हो गया और सूर्य चमकने लगा. अर्जुन ने तुरंत जयद्रथ का वध कर दिया.
साल 2019 में होंगे तीन सूर्य ग्रहण
वर्ष 2019 का पहला सूर्य ग्रहण 6 जनवरी को लगा था. अब दूसरा सूर्य ग्रहण 2 जुलाई को लग रहा है. यह पूर्ण सूर्य ग्रहण होगा. यह ग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा. इस सूर्य ग्रहण का समय रात 11 बजकर 31 मिनट से 2 बजकर 15 मिनट तक रहेगा. जबकि इस साल का अंतिम सूर्य ग्रहण 6 दिसंबर को पड़ेगा. यह 8 बजकर 17 मिनट से 10 बजकर 57 मिनट तक रहेगा. यह ग्रहण भारत में दिखेगा.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार एक साल में तीन या उससे अधिक ग्रहण शुभ नहीं माने जाते हैं. ज्योतिषों के अनुसार ऐसा होता है तो प्राकृतिक आपदाओं और सत्ता परिवर्तन की संभावना होती है. लोगों को भी कष्ट का सामना करना पड़ सकता है. बीमारियां अपना प्रकोप फैलाती हैं. देश की आर्थिक स्थिति में भी गिरावट की संभावना होती है.