Republic Day 2022: आदरणीय मुख्य अतिथि महोदय, गुरुजनों, उपस्थित भाइयों-बहनों एवं बच्चों! आप सभी को गणतंत्र दिवस की 72वीं वर्षगांठ की हार्दिक शुभकामनाएं! यह हमारी खुशनसीबी है कि हम एक ऐसे गणतांत्रिक देश के नागरिक हैं, जिसका लोहा दुनिया के बड़े-बड़े मुल्क मानते हैं. हमारे लिए गणतंत्र दिवस महज एक पर्व ही नहीं है, बल्कि गर्व और सम्मान का दिन है, क्योंकि 72 साल पूर्व आज के ही दिन हमारा संविधान लागू हुआ था. लेकिन आज के परिवेश को देखते हुए क्या हम कह सकते हैं कि हम गणतांत्रिक मूल्यों की कसौटी पर खरे उतरे हैं या क्या आम आदमी इस संविधान से पूर्णत अथवा अंशतः लाभान्वित हो रहा है?
मित्रों, जैसा कि आप भी जानते होंगे कि हमारा संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित एवं निर्मित संविधान है. इस संविधान को तैयार करते समय हमारे संविधान लेखकीय टीम ने दुनिया की तमाम शक्तियों के संविधानों को सर्च किया, और उनके संविधानों के सार को अपने संविधान में सम्मिलित कर इसे विशाल एवं भव्यतम स्वरूप देने की कोशिश की. मसलन संसदीय प्रणाली ब्रिटिश संविधान से, मौलिक अधिकार अमेरिकी संविधान से तथा मौलिक कर्तव्य पूर्व सोवियत संघ से, राज्य के नीति निर्देशक तत्व आयरलैंड से तो सशोधन प्रक्रिया दक्षिण अफ्रीका के संविधान से लिया गया, लेकिन इसके बावजूद भारतीय गणतंत्र के समक्ष बहुत सी चुनौतियां आज भी मुंह फैलाए हमारे सामने खड़ी हैं, जिसकी वजह से हम कह सकते हैं कि हम संविधान में लिये गये विचारों को अपने जीवन में उतारने में फिलहाल सफल नहीं हुए हैं..
सर्वप्रथम हम देश में व्याप्त भ्रष्टाचार की बात करेंगे. मित्रों बड़े दुर्भाग्य के साथ हमें यह कहना पड़ रहा है कि हमारी आजादी के साथ ही भ्रष्टाचार का जो अंकुरण हुआ, वह आज विशालकाय वृक्ष बन चुका है. बढ़ता भ्रष्टाचार देश के सार्वभौमिक विकास को प्रभावित रहा है. आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है कि 2019 में भ्रष्टाचार के संदर्भ में जारी एक सर्वे में 180 देशों की सूची में भारत 86वें नंबर पर पाया गया. स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है. विकास कार्य अवरुद्ध होने से आम लोग मूलभूत सेवाओं एवं सुविधाओं तक से वंचित हुए हैं. कोरोना काल में तो भ्रष्टाचार और ज्यादा मुखर हुआ है. जब आम लोग अस्पतालों में महंगे इलाज के कारण असमय मृत्यु का वहन करने को विवश हुए. ऐसे में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या हमारा संवैधानिक ढांचा एक गरीब को मूलभूत सुविधा नहीं दे सकता, उसके जीवन को नहीं बचा सकता? नेता, मंत्री, सरकारी अफसरों के खिलाफ आये दिन रिश्वत एवं जमाखोरी की खबरें सुनते हैं, मगर हमारा संविधान उनके सामने पंगु बन गया है. आखिर खोट कहां और क्यों है? यह भी पढ़ें : National Voters Day Quotes 2022: राष्ट्रीय मतदाता दिवस पर ये हिंदी कोट्स WhatsApp Stickers, HD Images और Wallpapers के जरिए भेजकर दें शुभकामनाएं
हमारे देश का दूसरा सबसे बड़ा जहर है सांप्रदायिकता का. हमारे संविधान में देश को धर्मनिरपेक्ष रखा गया है ताकि देश के हर नागरिक को समान अधिकार मिलें, किसी के साथ रंग-भेद, धर्म-भेद, अथवा जाति-भेद ना रखा जाये. लेकिन राजनैतिक पार्टियों ने इस कानून की भी धज्जियां उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. सत्तालोलुप नेता आज भी समाज को धर्म और जातियों में बांटकर अपनी रोटियां सेंकने में व्यस्त हैं, जिसके कारण विभिन्न धर्मों एवं जातियों के बीच मनमुटाव लगातार बढ़ रहा है. देश की अखण्डता और धर्मनिरपेक्षता का शपथ लेने के साथ ही मंत्री और नेता संविधान की धज्जियां उड़ाना शुरु कर देते हैं. इसका परिणाम यह होता है कि जैसा राजा वैसी प्रजा...
साथियों जब हम देश के विकास की बात करते हैं तो हमारे सामने निरंतर बढ़ती जनसंख्या भी बहुत अहम भूमिका निभाती है. भारत में विश्व का मात्र 2.4 प्रतिशत भू भाग है, जिसमें विश्व की लगभग 15 प्रतिशत आबादी निवास करती है. यह गहन चिंता का विषय है और इसके समग्र सामाजिक एवं आर्थिक विकास पर गंभीर असर पड़ते हैं. देश के आर्थिक मोर्चे पर प्राप्त उपलब्धियां आबादी के लगातार बढ़ते रहने से धूमिल हो रही हैं. इससे बड़ी त्रासदी क्या हो सकती है कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए संविधान संशोधन 1976 में हो गया था, लेकिन कानून आज तक नहीं बना. देश में बढ़ती जनसंख्या विस्फोट के कारण बेरोजगारी, महंगाई, कुपोषण एवं तमाम समस्याएं आये दिन मुंह उठाती हैं लेकिन देश में व्याप्त गंदी सियासत के चलते जनसंख्या विस्फोट पर नियंत्रण के लिए कोई कानून संसद में आज तक नहीं बन सका.