Shukravar Vrat 2021: व्यवसाय में मुनाफा एवं शिक्षा में सफलता पाने के लिए करें शुक्रवार को संतोषी माता का व्रत! जानें पूजा-विधि, नियम एवं कथा!
माता संतोषी ( Photo Credits: File Photo )

सनातन धर्म में माता संतोषी को सुख, शांति, संतोष एवं समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता संतोषी भगवान श्रीगणेश की पुत्री हैं. प्रत्येक शुक्रवार को संतोषी माता की पूजा करने से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं तथा घर में सुख, शांति, एवं खुशहाली आती है. मंदी में चल रहे व्यवसाय में तेजी आती है, और व्यवसाय में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की औऱ मुनाफा होता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार परीक्षा में सफलता के लिए भी शुक्रवार का व्रत बहुत फलदायी माना जाता है. इस व्रत में खट्टे फल अथवा खट्टे व्यंजनों से परहेज रखना चाहिए

पूजा विधिः

शुक्रवार की सुबह-सवेरे सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र पहनकर माता संतोषी के व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. अब घर के मंदिर के सामने एक चौकी पर स्वच्छ लाल वस्त्र बिछाकर इस पर गंगाजल छिड़कें. अब इस पर माता संतोषी का चित्र स्थापित करें. तस्वीर के सामने तांबे के एक कलश में जल भरकर उसके ऊपर मिट्टी का दीया रखें. दीये पर प्रसाद स्वरूप गुड़ एवं भुने हुए चने रखें. अब माता संतोषी के सामने धूप-दीप प्रज्जवलित कर पुष्प, रोली एवं अक्षत अर्पित करें. माता के सामने गुड़ एवं भुने हुए चने का प्रसाद चढ़ायें. पूजा करते समय माता संतोषी के मंत्रों का जाप करें.

ॐ श्री संतोषी महामाया गजानंदम दायिनी

शुक्रवार प्रिये देवी नारायणी नमोस्तुते!

संतोषी माता की पूजा के नियम

माता संतोषी का व्रत एवं पूजा करने से मन को संतोष प्राप्त होता है, एवं घर-व्यवसाय तथा ऑफिस में चल रहे संकट एवं तनाव से मुक्ति मिलती है. शुक्रवार के दिन भले ही घर का एक ही सदस्य व्रत एवं पूजन रखे, लेकिन इस दिन घर में किसी भी सदस्य को खट्टी चीजें नहीं खानी चाहिए. इससे व्रत अधूरा रह जाता है और मनोकामनाएं पूरी होने की संभावना कम होती है. जिस शुक्रवार के दिन इस पूजा का उद्यापन किया जाता है, उस दिन सात बच्चों को शुद्ध शाकाहारी खाना खिलाकर फल एवं दक्षिणा देकर विदा किया जाता है. इस दिन इन सातों बच्चों को भी खट्टी चीजें नहीं खानी चाहिए.

संतोषी माता की व्रत कथा

किसी नगर में एक बुजुर्ग महिला और उसका बेटा रहता था. बेटा विवाह के योग्य हुआ तो माँ ने उसकी शादी करवा दी. बुजुर्ग महिला बड़े कठोर स्वभाव वाली थीं. वह बहू से खूब काम लेती थीं. आये दिन उसे डांटती एवं फटकारती रहती थी. कभी उसे खाना देती, कभी उसे भूखे पेट ही सोने के लिए भेज देती थी. बेटा माँ को बहुत प्यार करता था, इसलिए उसकी सारी हरकतें देखकर भी चुप रह जाता था. आये दिन किच-किच से तंग आकर लड़के ने माँ से कहा कि वह शहर जा रहा है. जाने से पहले बेटे ने अपनी पत्नी से कोई निशानी मांगी तो पत्नी ने कहा कि उसके पास तो कुछ भी नहीं है. तब लड़का पत्नी की कोई निशानी लिये बिना शहर चला गया. शहर जाकर वह पत्नी को भूल गया.

एक दिन बहु घर के किसी काम से बाहर गई तो देखा कि एक मैदान में कुछ स्त्रियां पूजा-पाठ कर रही हैं. उसने उन लोगों से व्रत एवं पूजा का विधान पूछा, फिर वह भी हर शुक्रवार को व्रत रखती एवं पूजा करती. कहते हैं कि माता संतोषी उसके व्रत एवं पूजन से बहुत प्रसन्न हुई. इसके बाद मां संतोषी के आशीर्वाद से बहु के पास उसके पति ने पत्र एवं पैसे भेजना शुरु किया. बहु ने अब व्रत का उद्यापन करने का संकल्प लिया. अगले दिन संतोषी माता की कृपा से बहु का पति खूब धन-धान्य कमाकर वापस आया. अब तक सास का भी व्यवहार अब बदल चुका था. पति की वापसी के बाद बहु की सारी परेशानियां दूर हो गयीं, और उसे एक पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई.