Shradh 2019 Special: क्यों खिलाते हैं श्राद्ध पर कौवों, कुत्तों और गाय को खाना, जानें क्या है पंचबलि कर्म
'श्राद्ध' शब्द 'श्रद्धा' से बना है, यानी विशेष दिनों में अपने पूर्वजों के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करना. श्राद्ध न करने वालों का कहना है कि जो मर गया है, उसके निमित्त कुछ करने का औचित्य नहीं है, क्योंकि उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है.
Shradh 2019 Special: 'श्राद्ध' शब्द 'श्रद्धा' से बना है, यानी विशेष दिनों में अपने पूर्वजों के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करना. श्राद्ध न करने वालों का कहना है कि जो मर गया है, उसके निमित्त कुछ करने का औचित्य नहीं है, क्योंकि उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है. यह मिथक है. हमारे वेद पुराणों में उल्लेखित है कि संकल्प से किए गए कर्म जीव चाहे जिस योनि में हो, उस तक अवश्य पहुंचता है और वे तृप्त होकर उन्हें आशीर्वाद भी देते हैं है. मान्यता तो यहां तक है कि श्राद्ध कर्म से ब्रह्मा से लेकर घास तक तृप्त होते हैं. श्राद्ध का अधिकार सर्वप्रथम पुत्र को है. उसके पश्चात क्रमश: पौत्र, प्रपौत्र, दौहित्र, पत्नी, भाई, भतीजा, पिता, माता, पुत्रवधू, बहन, भानजा भी सगोत्री माने जाते हैं. पूरे कुटुंब द्वारा श्राद्ध क्रिया करने से सभी को यथेष्ट फलों की प्राप्ति होती है.
भारतीय पंचांग के अनुसार भाद्रपद की पूर्णिमा से आश्विन की अमावस्या तक का समय श्राद्ध अथवा पितृपक्ष कहलाता है. मान्यतानुसार इन 16 दिनों पितर भिन्न-भिन्न रूपों में पृथ्वी पर उतरते हैं और अपने परिजनों से विशेष मान-सम्मान की उम्मीद रखते हैं. श्राद्ध के इन सभी 16 दिनों में तिथि अनुसार पितरों तक भोजन पहुंचने के लिए पहले पंचबलि यानी गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटियों को खाद्य सामग्री परोसी जाती है. इसके पश्चात ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाता है. ज्यादातर जगहों पर खीर-पुड़ी खिलाई जाती है. कहीं-कहीं पितरों के पसंद के अनुसार व्यंजन (जीवित रहते जो उन्हें पसंद थे) भी परोसे जाते हैं. पंचबलि कर्म में कुतब बेला में निम्न पांच स्थानों पर भोजन रखे जाने का विधान है.
श्राद्ध का आदर्श समयः
दिन 11.30 से 12.30 तक माना जाता है, इसे ही 'कुतप बेला' कहते हैं.
थम गोबलि:
घर के पश्चिम दिशा की ओर गाय को पंचबलि का एक अंश परोसकर उन्हें प्रणाम करते हुए 'गौभ्यो नम:' कहते हैं. गरुड़ पुराण में गाय को वैतरणी पार लगाने वाली कहा गया है. गाय में ही सभी देवता निवास करते हैं. उन्हें भोजन देने से सभी देवता तृप्त होते हैं. लेकिन गाय देशी होनी आवश्यक है.
श्वानबलि:
पंचबली का एक भाग पत्तों पर रखकर कुत्तों को खिलाते हैं. क्योंकि मान्यतानुसार कुत्ता यमराज का पशु होता है, श्राद्ध का एक अंश कुत्ते को खिलाने से यमराज प्रसन्न होते हैं. शिव महापुराण के अनुसार, कुत्ते को खाना खिलाते समय मन ही मन में ये पंक्तियां, ‘यमराज के मार्ग का अनुसरण करनेवाले श्याम और शबल नामक कुत्तों को खाने का यह भाग अर्पित करता हूं.’ बोलना चाहिए.
काकबलि:
पंचबली का एक भाग कौओं के लिए खाना छत पर रख कर उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया जाता panchbali-karmaहै. गरुड़ पुराण के अनुसार, कौवा यम का प्रतीक होता है, जो दिशाओं का फलित (शुभ-अशुभ संकेत बताने वाला) करता है. कौओं को पितरों का स्वरूप भी माना जाता है. श्राद्ध का भोजन कौओं को खिलाने से पितृ देवता प्रसन्न होते हैं और श्राद्ध करने वाले को आशीर्वाद देते हैं.
देवादिबलि:
देवताओं तक भोजन पहुंचाने के लिए देवादिबलि का विधान है. इसमें पंचबली का एक भाग अग्नि को समर्पित किया जाता है, जिससे ये देवताओं तक पहुंचता है. पूर्व दिशा की ओर मुंह करके गोबर (गाय के) से बने उपलों को जलाकर उसमें घी के साथ भोजन के 5 निवाले रखे जाते हैं. कहते हैं कि ऐसा करने से पितर भी तृप्त होते हैं.
पिपीलिकादिबलि:
पंचबली का एक हिस्सा चींटियों के लिए उनके बिल के पास रखा जाता है. चीटियां और अन्य कीट भोजन के इस हिस्से को खाकर तृप्त होते हैं. इस तरह गाय, कुत्ते, कौवे, चीटियों और देवताओं के तृप्त होने के बाद ब्राह्मण को भोजन दिया जाता है.