Shakambhari Jayanti 2023: हिंदी पंचांग के अनुसार 6 जनवरी 2023 को पौष पूर्णिमा का व्रत रखा जायेगा. इस दिन का महत्व इसलिए और बढ़ जाता है क्योंकि इसी दिन मां शाकंभरी की जयंती भी मनाई जाती है. यह दिन शाकंभरी पूर्णिमा के नाम से भी लोकप्रिय है. हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार माँ शाकंभरी देवी दुर्गा का सौम्य रूप है, इनका प्रकाट्य पृथ्वी पर अन्न जल की समस्याओं को दूर करने के लिए हुआ था, मान्यता है कि इस दिन देवी शाकंभरी की पूजा-अर्चना करने से घर में कभी भी अन्न-जल की समस्या नहीं होती, जीवन में सुख और शांति बनी रहती है. आइये जानते हैं कब और कैसे हुआ देवी शाकंभरी का प्रकाट्य तथा क्या है इनकी पूजा विधि, एवं शुभ मुहूर्त इत्यादि.
कौन हैं देवी शाकंभरी देवी!
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार देवी शाकंभरी आदिशक्ति दुर्गा के अवतारों में एक मानी हैं. दुर्गा के सभी अवतारों में से शाकंभरी, रक्तदंतिका, भीमा, भ्रामरी आदि सर्वाधिक लोकप्रिय हैं. दुर्गा सप्तशती की मूर्ति रहस्य में देवी शाकंभरी का वर्ण नीला बताया गया है. उनके नेत्र नील कमल समान बताये गये हैं. ये कमल के फूल पर विराजमान हैं. इनके एक हाथ में कमल पुष्प और दूसरे हाथ में बाण है. माँ शाकंभरी का संपूर्ण स्वरूप इस श्लोक में देखा जा सकता है.
शाकंभरी नीलवर्णा नीलोत्पल विलोचना।
मुष्टिंशिली मुखापूर्ण कमलं कमलालया।।
शाकंभरी जयंती शुभ मुहूर्त!
पौष पूर्णिमा प्रारंभः 02.14 AM (06 जनवरी 2023, शुक्रवार)
पौष पूर्णिमा समाप्तः 04.37 AM (07 जनवरी 2023, शनिवार)
कैसे करे शाकंभरी पूजा-अनुष्ठान!
पौष पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान-ध्यान करें. स्वच्छ वस्त्र पहनें. अब घर के मंदिर के सामने उत्तर-पूर्व दिशा चौकी बिछाकर उस पर लाल रंग का वस्त्र बिछाएं. इस पर माँ दुर्गा की प्रतिमा अथवा तस्वीर स्थापित करें. प्रतिमा के समक्ष धूप-दीप प्रज्वलित करें और मन ही मन माँ शाकंभरी का ध्यान करें.
'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भगवति माहेश्वरि अन्नपूर्णे स्वाहा।।'
अब देवी शाकंभरी के समक्ष हल्दी, कुमकुम, अक्षत, इत्र, दूध की मिठाई सोलह श्रृंगार के सामान अर्पित करें. इसके अलावा माँ शाकंभरी को ताजे फल, मिश्री, मेवा, शाक-सब्जियां एवं सब्जियों का भोग चढ़ाएं. पूजा के पश्चात माता शाकंभरी को प्रसन्न करने के लिए जरूरतमंदों को अनाज, सब्जी एवं फल का दान करें, अथवा किसी देवालय में भंडारा आदि के लिए पैसे दान करें.
शाकंभरी देवी की कथा!
एक बार पृथ्वी पर दुर्गम नामक दैत्य ने भयंकर आतंक मचा रखा था. उसके आतंक के कारण पृथ्वी पर 100 साल तक बारीश नहीं होने से भयंकर सूखा पड़ा. दैत्य ने ब्रह्माजी के चारों वेद भी चुरा लिया था. लोगों में त्राहिमाम् त्राहिमाम मचने लगा. पृथ्वी पर जीवन खत्म होने की कगार पर आ गया. पृथ्वी का संकट खत्म होते देख आदिशक्ति माँ दुर्गा शाकंभरी के रूप में प्रकट हुईं. लेकिन पृथ्वी पर जन संकट देख देवी की आंखों से अश्रु की धारा बह उठी. यह अश्रु पृथ्वी के संपर्क में आते ही पृथ्वी पर जल का प्रवाह हो गया. इसके पश्चात देवी शाकंभरी दुर्गम दैत्य का वध कर पृथ्वी पर जनसंचार को पुनः प्रारंभ कर दिया.