पौष मास की पूर्णिमा को शाकम्भरी पूर्णिमा अथवा शाकम्भरी जयंती के नाम से भी जाना जाता है. दक्षिण भारत में इन्हें बनाषण करी देवी भी कहते हैं. वस्तुतः यह शाकम्भरी नवरात्रि का अंतिम दिन होता है. दरअसल अधिकांश नवरात्र जहां शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहले दिन) से शुरू होते हैं, किंतु शाकम्भरी नवरात्र पौष माह की अष्टमी से आरंभ होकर पूर्णिमा पर खत्म होते हैं, और शाकम्भरी का उत्सव आठ दिन ही चलते हैं. यहां बता दें कि हिंदी तिथियों के घटने-बढ़ने की स्थिति में शाकम्भरी नवरात्र की समयावधि कभी 7 तो कभी 9 दिन की भी हो सकती है. आइये जानते हैं, शाकम्भरी नवरात्रि के बारे में कुछ विशेष जानकारियां..
कौन हैं शाकम्भरी देवी?
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार शाकम्भरी माता देवी भगवती का ही अवतार हैं. कहा जाता है कि देवी भगवती ने पृथ्वी को अकाल तथा खाद्य संकट से मुक्त करने हेतु शाकम्भरी के रूप में अवतार लिया था. इन्हें सब्जियों, फलों एवं हरी पत्तियों की देवी के रूप में भी जाना जाता है. माँ के शाकम्भरी रूप में हजारों आँखें होने के कारण इन्हें शताक्षी भी कहा जाता है. कहते हैं कि शाकम्भरी देवी हर किस्म के फलों एवं हरी सब्जियों में विराजमान होती हैं, इसलिए इन्हें साग वाहक भी कहा जाता है. प्रसाद में फल एवं हरी सब्जियां चढ़ाई जाती हैं. यह भी पढ़ें : Jan Nayak Karpoori Thakur Birth Anniversary: पीएम नरेंद्र मोदी ने कर्पूरी ठाकुर को जन्मशती श्रद्धांजलि अर्पित की, देखें ट्वीट
शाकम्भरी पूर्णिमा की मूल तिथि
शाकम्भरी पूर्णिमा प्रारंभः 09.50 PM (24 जनवरी 2024) से
शाकम्भरी पूर्णिमा समाप्तः 11.25 PM (25 जनवरी 2024) तक
शाकम्भरी पूर्णिमा पूजा विधि
पौष पूर्णिमा को ब्रह्म मुहूर्त में स्नान-दान करें, तथा देवी शाकम्भरी का व्रत-पूजा का संकल्प लें. पूरे घर एवं मंदिर तथा आसपास की अच्छी से सफाई करें. एक साफ चौकी लाल कपड़ा बिछाएं. तांबे के लोटे में स्वच्छ जल और कुछ बूंदें गंगाजल की मिलाकर चौकी के पास स्थापित करें. लोटे में सिक्का, सुपारी, अक्षत डालें, इस पर लाल कपड़े में लपेटकर नारियल रखें. चौकी पर माँ शाकम्भरी की तस्वीर अथवा मूर्ति स्थापित करें. अथवा माता पार्वती की तस्वीर रखें. देवी के सामने धूप-दीप प्रज्वलित करें.
‘ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भगवति माहेश्वरि अन्नपूर्णे स्वाहा’
देवी को पुष्प, चंदन, कुमकुम, अक्षत, सिंदूर एवं इत्र अर्पित करें, अब भोग के लिए ताजे फल एवं हरी सब्जियां चढ़ाएं. इसके बाद दुर्गा सप्तशती अथवा दुर्गा चालीसा का पाठ करें. अंत में दुर्गा जी की आरती उतारें. अगले दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान एवं दुर्गाजी की पूजा कर व्रत का पारण करें.
माँ भगवती ने क्यों लिया शाकंभरी अवतार?
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार धरती पर भयंकर सूखा पड़ा. चारों ओर जल के लिए त्राहि-त्राहि होने लगी. इस वजह से खाद्य-पदार्थों की भी उपज नहीं हुई. पानी और खाद्य पदार्थों की गंभीर समस्याओं से मुक्ति के लिए जनता ने माँ दुर्गा से प्रार्थना किया. तब माँ भगवती भगवती सब्जियों, फलों एवं पत्तियों में लिपटी प्रकट हुईं. लोगों ने सब्जियों, फलों और हरी पत्तियों में लिपटी देवी को देखकर उनका नाम शाकंभरी देवी रखा. सभी ने उनकी विधि-विधान से व्रत के साथ पूजा-अनुष्ठान किया. तब देवी प्रसन्न हुईं. इसके बाद मूसलाधार बारिश हुई, जिसकी वजह से जल का अभाव खत्म होने के साथ खेतों में फसलें भी भारी तादाद में पैदा हुई.