भारत भूमि पर कई सिद्धहस्त संतों ने जन्म लिया, जिन्होंने ताउम्र जनमानस कल्याण के लिए कार्य किये साथ ही आध्यात्मिक विकास में भी उनकी अनमोल भूमिका रही है. इन्हीं में एक संत थे संत रामकृष्ण परमहंस. जिनके अनमोल विचारों से विवेकानंद भी बहुत प्रेरित हुए और उन्हें अपना गुरु माना. स्वामी विवेकानंद जी ने रामकृष्ण परमहंस को लोकहित वाले विचारों को गति प्रदान करने के लिए रामकृष्ण मठ की स्थापना की. आइये जानें श्रीरामकृष्ण परमहंस के जीवन से जुड़ी कुछ अनमोल बातें...
हिंदू पंचांग के अनुसार श्री रामकृष्ण परमहंस का जन्म फाल्गुन मास की द्वितीया को शुक्लपक्ष विक्रम संवत को पश्चिम बंगाल के हुगली के कमरपुकुर में हुआ था. उनके माता-पिता खुदीराम चट्टोपाध्याय और चंद्रमणि देवी थे. कहते हैं कि रामकृष्ण के माता-पिता ने उनके जन्म से पहले कई अलौकिक घटनाओं का प्रत्यक्ष अनुभव किया था. एक बार पिता खुदीराम गया के लिए तीर्थयात्रा पर जा रहे थे तो उन्हें भगवान विष्णु ने स्वप्न में दर्शन दिया और कहा कि उनका जो अगला लड़का होगा उसके रूप में खुद भगवान विष्णु अवतार लेंगे. रामकृष्ण की माँ चन्द्र देवी को भी भगवान विष्णु ने सपने में कहा कि उनका जो अगला बच्चा होगा वह दैवी गुणों से संपूर्ण होगा और वह भगवान के समान ही होगा. उसके कुछ ही समय बाद चन्द्र देवी ने श्रीरामकृष्ण को जन्म दिया था. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष उनकी 128 वीं जयंती मनायी जायेगी. हिंदू धर्म को पूरा सम्मान देने वाले रामकृष्ण देवीकाली के प्रचंड भक्त थे. रामकृष्ण परमहंस पर उनके पिता का गहरा असर था.
दक्षिणेश्वर मंदिर में श्री रामकृष्ण परमहंस एक पुजारी के रूप में
रामकृष्ण परमहंस जब 16 साल के थे, उनके भाई रामकुमार उनके काम में हाथ बटाने के लिए कोलकाता लेकर गए थे. सन 1855 में राणी रासमणि ने दक्षिणेश्वर में देवी काली का मंदिर बनवाया था और उस मंदिर में रामकुमार एक मुख्य पुजारी थे. जब उनकी मृत्यु हो गयी तो श्री रामकृष्ण परमहंस को उस मंदिर का पुजारी बना दिया गया. रामकृष्ण माँ काली की पूजा में इस कदर लिप्त हो जाते थे कि घंटों काली देवी का ही ध्यान करते थे, इस दौरान वह एक पुजारी की जिम्मेदारियों का भी निर्वहन नहीं करते थे. धीरे धीरे श्री रामकृष्ण परमहंस देवी काली के ध्यान में इतने व्यस्त रहते थे की उन्हें देवी के चारो तरफ़ भव्य आभा दिखने लगी थी.
पत्नी में भी देखते थे माँ की झलक
बंगाल में बाल विवाह की प्रथा है. गदाधर का भी विवाह बाल्यकाल में हो गया था. उनकी बहुत कम उम्र की पत्नी शारदामणि जब दक्षिणेश्वर आयीं, तब गदाधर रामकृष्ण परमंहस हो चुके थे. माँ शारदामणि का कहना है. ठाकुर के दर्शन एक बार पा जाती हूँ, यही क्या मेरा कम सौभाग्य है? परमहंस जी अकसर कहते थे- जो माँ जगत् का पालन करती हैं, जो मन्दिर में पीठ पर प्रतिष्ठित हैं, वही तो यह हैं." ये विचार उनके अपनी पत्नी माँ शारदामणि के प्रति थे.
मानवता का उपदेश
रामकृष्ण का मानना था कि जगत की हर पुरुष एवं स्त्री पवित्र हैं. उनका मानना था कि भगवान को मोक्ष से नहीं प्राप्त किया जा सकता. ईश्वर को अपने सही कार्य करके ही प्राप्त किया जा सकता है. वे अकसर मानवता की बात करते हुए कहते थे कि मनुष्य के प्रति दयालु होना यानी भगवान के प्रति दयालु होना होगा. ईश्वर प्रत्येक मानव के भीतर व्याप्त है, क्योंकि वे सभी मानव समाज को एक समझते थे.
श्री रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु
सन 1885 में श्री रामकृष्ण परमहंस को गले का कैंसर हुआ था. कलकता में अच्छे डॉक्टर से उपचार के लिए उनके भक्त श्यामपुकुर के घर में रखा गया था. लेकिन जैसे-जैसे समय गुजरता जा रहा था उसके साथ साथ उनकी तबियत भी अधिक ख़राब होती गयी. अंततः उनकी तबियत बिगडती गयी और 16 अगस्त 1886 में कोसिपुर के घर में उनकी मृत्यु हो गयी.