Ramdas Navami 2023: कौन थे समर्थ गुरु स्वामी रामदास? जानें शिवाजी ने संपूर्ण राज्य स्वामी समर्थ के नाम क्यों किया था?
Ramdas Navami 2023

महाराष्ट्र सदियों से संतों की धरती रहा है. यहां एक से एक महान संत पैदा हुए हैं, संत गजानन महाराज, संत एकनाथ, संत ज्ञानेश्वर, संत नामदेव, संत तुकाराम, संत गोरोबा एवं संत रामदास जैसे ख्यातिप्राप्त संतों ने महाराष्ट्र को पवित्र भूमि बनाने में अहम भूमिका निभाई है. आज एक ऐसे ही महान संत समर्थ गुरु स्वामी रामदास जी के बारे में बात करेंगे, जिनकी स्मृति में आज 15 फरवरी 2023 को पूरे देश में 'रामदास नवमी' के नाम से मनाई जा रही है.

बचपन में बहुत शरारती थे

समर्थ रामदास का जन्म चैत्र शुक्लपक्ष की नवमी (1608) को जालना (महाराष्ट्र) के जाम्ब नामक गांव में माँ राणुबाई की गर्भ से हुआ था. इनका मूल नाम नारायण सूर्याजीपंत कुलकर्णी था. लोग उन्हें नारायण कहकर पुकारते थे. वह बहुत शरारती थे. गांव वाले अकसर उनकी शिकायत राणुबाई से करते थे. प्रचलित है कि बचपन में ही सूर्याजीपंत ने भगवान राम के दर्शन कर लिये थे, तभी से उनका नाम रामदास पड़ा. एक दिन रामदास से परेशान होकर माँ ने कहा, नारायण तुम्हारे बड़े भाई पूरे परिवार की चिंता करते हैं, तुम भी कुछ करो. नारायण को यह बात चुभ गई, वे उठकर चले गये. थोड़ी देर बाद माँ ने नारायण को ढूंढा तो वे कहीं नहीं दिखे. वह परेशान हो गईं. किसी ने बताया नारायण कमरे में ध्यान लगाकर बैठा है. माँ ने पूछा, -यहां क्या कर रहे हो, नारायण ने कहा -मैं पूरे विश्व की चिंता कर रहा हूं. इसके बाद से नारायण की दिनचर्या, विचार आदि में क्रांतिकारी परिवर्तन आया. उन्होंने युवाओं को उनकी सेहत और खानपान की महत्ता के बारे में समझाया कि शरीर स्वस्थ होगा, तो देश भी स्वस्थ रहेगा. व्यायाम-कुश्ती आदि की ओर प्रेरित करने हेतु उन्होंने हनुमान जी की मूर्ति स्थापित करवाई, ताकि वहां लोग आकर कुश्ती एवं कसरत आदि कर सकें. यह भी पढ़ें : Slap Day 2023 Messages: हैप्पी स्लैप डे! पार्टनर और दोस्तों के साथ शेयर करें ये फनी WhatsApp Wishes, Shayaris, GIF Greetings, Photo SMS

छत्रपति शिवाजी ने स्वामी रामदास को बनाया था गुरु

कहते हैं शिवाजी को धर्मनिरपेक्ष शासक बनाने में स्वामी रामदास की अहम भूमिका थी. उन्हीं के सुझाव पर शिवाजी की सेना में हिंदू के साथ मुस्लिम नियुक्त किये थे. एक दिन भिक्षा मांगते हुए वह शिवाजी के पास पहुंचे, तो उन्हें भिक्षा मांगते देख शिवाजी दुखी हो गये. उन्होंने स्वामी गुरु रामदास को पूरे राज्य का स्वामी बनाने का लिखित आदेश उन्हें दिया, ताकि उन्हें भिक्षा ना मांगनी पड़े. रामदास जी यह सुन हैरान होते हुए उस कागज को वहीं फाड़कर फेंक दिया. शिवाजी ने छमा मांगते हुए कहा, महाराज कोई गलती हुई क्या? स्वामीजी ने कहा, ‘तुमने जिस राज्य का मुझे मालिक बनाया है, क्या तुम उसके मालिक हो? तुम उसके केवल रक्षक हो. तुम्हारे साथ 10 हजार सैनिक भी जान की बाजी लगाकर राज्य की रक्षा करते हैं. क्या वे भी राजकीय संपत्ति लुटायेंगे?’ स्वामीजी ने उन्हें समझाया, संतों का राजपाट केवल उतना ही चाहिए, जितना उनके लिए जरूरी है. रामदास का इशारा शिवाजी समझ गये कि प्रजा की संपत्ति को अपने नाम, अहंकार और सम्मान के लिए खर्च नहीं करना चाहिए. उन्होंने स्वामी जी से छमा याचना की कि आगे से ऐसी गलती नहीं होगी.

समाधि

स्वामी समर्थ गुरु रामदास ने अपने जीवन का अंतिम समय महाराष्ट्र में सतारा के पास पाली के किले में बिताया. उन्होंने फाल्गुन कृष्णपक्ष नवमी के दिन समाधि ली. उसी समय से इस किले का नाम सज्जनगढ़ पड़ा. आज भी उसी स्थल पर उनकी समाधि है. इस दिन देश भर में स्वामीजी के अनुयायी 'दास नवमी' पर्व के रूप में मनाते हैं. इस दिन लोग बड़ी श्रद्धा एवं आस्था के साथ स्वामी जी की कविताओं का पाठ करते हैं, जुलूस निकाले जाते हैं, और स्वामी जी को श्रद्धांजलि दी जाती है.