भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर 10 अवतार लिये थे, जिसमें सातवें अवतार में उन्होंने राजा दशरथ एवं कौशल्या के पुत्र श्री राम के रूप में जन्म लिया था. महर्षि वाल्मीकि रामायण में उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में परिभाषित किया गया है. उनके अनुसार श्रीराम ने अधर्म पर विजय पाने के लिए रावण का वध कर सीताजी को उसके चंगुल से छुड़ाया था. यहां बता दें कि विष्णु जी का अवतार होकर भी उन्होंने आम मनुष्य की तरह विषम परिस्थितियों में भी धैर्य एवं स्वयं पर नियंत्रण रखते हुए सफलता पाई थी. जीवन के अंतिम पलों तक सदा न्याय और सत्य का साथ दिया. इसीलिए पुराणों में उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम बताया गया. आज भी हर माता-पिता अपने पुत्र को श्री राम के आदर्शों पर चलने का आशीर्वाद देते हैं. यहां श्रीराम के ऐसे ही 10 गुणों की बात करेंगे, जिसे अपना कोई भी आदर्श पुरुष की मिसाल बन सकता है.
आदर्श पुत्र
आज ऐसे अनेक उदाहरण मिलेंगे, जब आज की पीढ़ी अपने जन्मदाता माता-पिता को बोझ मानकर उनके लिए वृद्धाश्रम या अन्य विकल्पों की तलाश करने लगते हैं. लेकिन वहीं दशरथ पुत्र श्री राम एक ऐसे आदर्श पुत्र थे, उन्होंने अपने पिता के वचन को निभाने के लिए अपना राजपाट छोड़ अपनी नवविवाहिता पत्नी के साथ वनवासी परिधान में 14 साल के वनवास के लिए प्रस्थान कर गये. इसीलिए दुनिया आज भगवान श्रीराम को आदर्श-पुत्र कहती है, और हर माता-पिता अपने बच्चों के राम जैसा बनने की सीख देते हैं. यह भी पढ़ें : Ram Navami 2023: दिल्ली पुलिस ने जहांगीरपुरी में रामयात्रा, रमजान की नमाज के लिए अनुमति देने से इनकार किया
सत्य
श्री राम के जीवन में तमाम तरह के संकट आये, उन्हें 14 वर्ष का वनवास हुआ, वन में पत्नी सीता का अपहरण हुआ, ऐसे कई अवसर आये, लेकिन उन्होंने असत्य का सहारा नहीं लिया. सत्य और अच्छे स्वभाव के रास्ते पर चलना आसान नहीं होता. अकसर हम किसी भय, स्थिति या समस्या से मुक्ति पाने के लिए असत्य का सहारा लेते हैं, लेकिन श्रीराम जीवन पर सत्य के साथ रहे.
क्रोध प्रबंधन
क्रोध व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु होता है. इस पर नियंत्रण रखना सामान्य मनुष्य के वश की बात नहीं हो सकती, और जिसने अपने क्रोध प्रबंधन पर नियंत्रण कर लिया वह सामान्य मनुष्य नहीं हो सकता. इसी आदर्श को प्रभु श्रीराम ने अपने जीवनकाल में तमाम समस्याओं और विजयों का सामना करने के बाद भी बामुश्किल अपना क्रोधित पक्ष दिखाया. आज के युवाओं के लिए श्रीराम का यह गुण प्रेरक साबित हो सकता है
वीरता
दशरथ-पुत्र श्री राम गुरु विश्वामित्र की दिशा निर्देशन में काफी छोटी उम्र में शस्त्र एवं शास्त्र विद्या से पारंगत हो चुके थे, यही वजह थी कि उन्होंने बालि, कुंभकर्ण, मेघनाद एवं रावण जैसे महान बलशाली राक्षसों का संहार किया. हालाँकि, इतना बहादुर होने के बावजूद प्रभु श्रीराम ने कभी भी अपने कौशल का प्रदर्शन नहीं किया और जनता के साथ विनम्र बने रहे. यह उन लोगों के लिए एक सबक है जिन्हें लगता है कि उनसे ज्यादा बहादुर और कोई नहीं हो सकता. उनकी बहादुरी के साथ उनका अहंकार जुड़ा रहता है.
भ्रातृत्व प्रेम
वाल्मीकि ने रामायण में श्रीराम के भातृत्व-प्रेम के कई भावपूर्ण दृश्य रेखांकित किया है, जो आज के आम जीवन में कम ही देखने को मिलेंगे, वह आदर्श भाई ही था, जिसने पिता का वचन निभाते हुए छोटे भाई भरत को सत्ता सौंप कर वन के लिए निकल प्रस्थान कर गये, और भरत ने भी श्रीराम के हक का सम्मान करते हुए उनकी खड़ाऊं को सिंहासन पर रखकर शासन किया. वह श्रीराम ही थे, जो लक्ष्मण के मूर्छित होने पर आम मनुष्य की तरह विलाप कर रहे थे.
जनता का सम्मान
आज दुनिया भर में शासन के नाम पर भ्रष्टाचार पनप रहा है. जनता की परवाह किसी को नहीं है. लेकिन श्रीराम जैसा जनता की भावनाओं का सम्मान करने वाले राजा कम ही देखने को मिलेंगे, वह श्री राम ही थे, जिन्होंने शूद्र व्यक्ति के कहने पर अपनी गर्भवती पत्नी सीता जी का त्याग कर दिया था.