Pradosh Vrat 2021: भगवान शिव करेंगे साल की समाप्ति और नववर्ष 2022 का आगाज! जानें विशेष योग में होनेवाले शुक्र प्रदोष की महिमा, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त एवं व्रत-कथा?

हिंदी कैलेंडर के मुताबिक प्रत्येक मास की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत रखा है. पौष माह के कृष्णपक्ष का यह प्रदोष साल का अंतिम दिन होने से विशेष महात्म्य वाला माना जा रहा है. यह दिन भगवान शिव को समर्पित होने के कारण इस दिन भगवान शिव का व्रत एवं पूजा विधि विधान से की जाती है.

भगवान शिव (Photo Credits: Pixabay)

हिंदी कैलेंडर के मुताबिक प्रत्येक मास की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत रखा है. पौष माह के कृष्णपक्ष का यह प्रदोष साल का अंतिम दिन होने से विशेष महात्म्य वाला माना जा रहा है. यह दिन भगवान शिव को समर्पित होने के कारण इस दिन भगवान शिव का व्रत एवं पूजा विधि विधान से की जाती है. इस दिन शुक्रवार होने के कारण इसे शुक्र प्रदोष कहा जाता है, इसके महात्म्य स्वरूप इस दिन भगवान शिव एवं पार्वती जी की पूजा करने से जातक को सुख, सौभाग्य, आरोग्य एवं संतान प्राप्ति होने के साथ सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. जानें क्या है इस व्रत का महात्म्य, पूजा विधि, मुहूर्त एवं व्रत कथा.

विशेष योग में शुक्र प्रदोष व्रत का महात्म्य

साल का अंतिम प्रदोष शुक्रवार को पड़ रहा है. मान्यता है कि शुक्र-प्रदोष का व्रत एवं शिव-पूजा करने से व्यक्ति को जीवन में सुख, शांति, धन, कर्ज-मुक्ति, सम्पत्ति, दीर्घायु एवं आरोग्यता प्राप्त होगी. चूंकि पौष मास कृष्णपक्ष का यह व्रत श्रेष्ठतम सर्वार्थ सिद्धि योग में पड़ रहा है, और सर्वार्थ-सिद्धि योग में किये सारे कार्य पूरे होते हैं, इसलिए ज्योतिषियों का मानना है कि यह प्रदोष व्यक्ति के जीवन के सारे कष्ट दूर करेगा. इसके अलावा अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह प्रदोष वर्षांत के साथ नये वर्ष 2022 का आगाज करेगा, इसलिए इस प्रदोष व्रत से उम्मीद की जा रही है कि यह नववर्ष शिवजी की कृपा से कोरोना मुक्त साबित होगा.

शुक्र प्रदोष व्रत एवं पूजा का नियम

पौष मास की इस शुक्र प्रदोष के दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान एवं स्वच्छ वस्त्र धारण करने के पश्चात पूरे घर में गंगाजल का छिड़काव करें. इसके बाद हथेली में धन एवं पुष्प रखकर विधि-विधान से प्रदोष व्रत एवं शिव-पूजा का संकल्प लेते हुए मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करें. अब निम्नलिखित पंचाक्षरी शिव मंत्र का जाप करें

‘ ॐ नमः शिवाय, नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय’

तत्पश्चात शिव-लिंग पर बेल-पत्र एवं गाय का कच्चा दूध अर्पित करने के पश्चात शिवजी की षोडशोपचार विधि से पूजा करें एवं आरती उतारें. प्रदोष के दिन भगवान शिव की दो बार पूजा का विधान है. दूसरी पूजा सायंकाल के समय करनी चाहिए. इस पूजा के बाद प्रदोष व्रत की कथा सुननी चाहिए. अंत में शिव जी की आरती उतारने के पश्चात प्रसाद ग्रहण कर व्रत का पारण करें और प्रसाद दूसरों को भी वितरित करें. यह भी पढ़ें : Christmas 2021 Quotes: दुनिया भर में आज क्रिसमस की धूम, इन Wishes, Images, WhatsApp Messages, Greetings को भेजकर दें अपनों को बधाई

प्रदोष व्रत 2021 शुभ मुहूर्त

त्रयोदशी प्रारंभः 10.39 AM (31 दिसंबर, शनिवार 2021)

त्रयोदशी समाप्तः 07.17 AM (01 जनवरी, रविवार 2022)

प्रदोष पूजा का मुहूर्तः 05.35 PM से 08.19 PM (31 दिसंबर 2021)

सर्वार्थ सिद्धि योग कालः 07.14 AM से 10.04 PM (31 दिसंबर 2021)

प्रदोष व्रत कथा

प्राचीनकाल में एक नगर में तीन मित्र राजकुमार, ब्राह्मण कुमार और धनिक पुत्र रहते थे. तीनों के विवाह हो चुके थे, मगर धनिक पुत्र का गौना शेष था. एक दिन ब्राह्मण कुमार ने स्त्रियों की प्रशंसा करते हुए कहा- ‘नारीहीन घर भूतों का डेरा होता है.’ यह सुन धनिक पुत्र ने तुरंत अपनी पत्‍नी को लाने का निश्‍चय कर लिया. लेकिन उसके माता-पिता एवं सास-ससुर ने समझाया कि अभी शुक्र देवता डूबे हुए हैं, ऐसे में बहू-बेटियों की विदाई करवाना शुभ नहीं होता, लेकिन धनिक-पुत्र जिद करके पत्नी को घर लेकर आ गया. लेकिन विदाई के बाद शहर से निकलते ही बैलगाड़ी का पहिया निकल गया, दोनों को काफी चोट लगी. आगे बढ़ने पर डाकुओं ने उन पर हमला कर सारा धन लूट लिया. दोनों घर पहुंचे. घर पहुंचते ही धनिक पुत्र को सांप ने डस लिया. पिता ने वैद्य को बुलाया तो वैद्य ने बताया कि वह 3 दिन में मर जाएगा. ब्राह्मण कुमार को खबर मिली तो वह धनिक पुत्र के घर पहुंचा और उसके माता-पिता से कहा कि दोनों शुक्र प्रदोष व्रत करें. इसके पश्चात पति-पत्‍नी को वापस ससुराल भेज दें. धनिक पुत्र के कथनानुसार दोनों ससुराल पहुंचे. वहां पहुंचते ही वह ठीक हो गया.

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